उनसे हर रोज़ न मिलने की शिकायत कैसी
दिल-ए-नादाँ ये हुकूमत पे हुकूमत कैसी
दी बुलन्दी मुझे ऊंचे से गिराने के लिए
ये ज़माने की शरारत है इनायत कैसी
मंज़िल-ए-यार भी है, सामने दिलदार भी है
ऎश-ए-फ़िरदोस है ऎ शेख इबादत कैसी
मिलने वाले तेरे समझे हैं,न समझोगे कभी
सब्र क्या चीज़ है होती है क़नाअत कैसी
सामने वादि-ए-पुरखार है मैं आबला पा
ऎ खुदा तेरी मदद चाहिए हिम्मत कैसी
नग़मा संजी है तेरी बुलबुल-ए-खुश लेह्जा अबस
कान फूलों के हैं बेकार समाअत कैसी
इश्क़ से मरते हो और इश्क़ पे मरते भी हो
मरज़ुलमौत से अहमद ये मोहब्बत कैसी