जीरन क्षेत्र की ऐतिहासिक धरोहर जीरन का किला (गढ़ी) जर्जर होता जा रहा है। संरक्षण के खास उपाय नहीं होने से किले की दक्षिणी दीवार ढह चुकी है। पूर्व की दीवार भी जीर्ण-शीर्ण हो गई है। इधर पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने बताया कि किले के जीर्णोद्धार के लिए प्रोजेक्ट भोपाल भेजा गया है, जिसकी स्वीकृत होने पर ही कुछ किया जा सकता है। जो भी हो प्रोजेक्ट स्वीकृति की बाट जोहना जीरन गढ़ी पर काफी भारी पड़ रहा है।
इतिहास के जानकारों के अनुसार जीरन का किला चौदहवीं शताब्दी में बनाया गया था। जिसका निर्माण ग्वालियर रियासत ने करवाया था। बाद में किले को आमेट के राव को दे दिया गया था। चारों ओर से दीवारों से बंद इस किले में प्रवेश का एक ही मार्ग है, जहाँ बड़ा दरवाजा है। सुरक्षा की दृष्टि से भी यह किला काफी महत्वपूर्ण है। यह किला पहाड़ी पर स्थित है, जहाँ से देखने पर जीरन का विहंगम व मनोहारी दृश्य नजर आता हैं। वर्तमान में किले की दक्षिणी दीवार पूरी तरह ढह चुकी है। उत्तर-पश्चिम की आधी दीवार व सैनिकों के खड़े रहने की कोठियाँ भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं। पूर्व दिशा की दीवार व कोठियों की दशा भी ठीक नहीं है।
मंदिर और दरगाह एकता का प्रतीक
किले के अंदर वर्षों पुरानी किले वाले बाबा की दरगाह व किलेश्वर महादेव मंदिर है, जो हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल बने हुए हैं। किलेश्वर मंदिर में प्राचीन प्रतिमाएँ भी स्थापित हैं। यहाँ से एक प्रतिमा पूर्व में चोरी भी हो चुकी है। किलेश्वर मंदिर के सामने शनिदेव व गणपतिजी का मंदिर साथ ही हाथियों को बाँधने की शिलाएँ गड़ी हैं, जो किले के इतिहास का बखान करती हैं। शिवरात्रि पर किलेश्वर मंदिर पर विभिन्ना आयोजन होते हैं, वहीं किले वाले बाबा की दरगाह पर तीन दिवसीय उर्स का आयोजन भी होता है। क्षेत्रवासियों ने किले के जीर्णोद्धार के लिए कलेक्टर एवं पुरातत्व विभाग से माँग करते हुए बताया है कि यदि इस किले का कायाकल्प हो जाए तो यह अच्छा रमणीक स्थल बन सकता है। -निप्र
**प्रोजेक्ट बनाकर भेजा है
13वें वित्त आयोग के अंतर्गत जीरन गढ़ी के जीर्णोद्धार के लिए प्रोजेक्ट बनाकर भोपाल भेजा गया है, जिसके स्वीकृत होते ही गढ़ी का सुधार कार्य शुरू कर दिया जाएगा।
-पुष्पेंद्र रोकड़े, सब इंजीनियर, पुरातत्व विभाग, इंदौर