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गायत्री देवी : खामोश हुई खूबसूरती

पूर्व राजमाता गायत्री देवी का निधन

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गायत्री शर्मा

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खूबसूरती ऐसी कि जिसे देखते ही हर कोई उनका कायल हो जाए और सादगी ऐसी कि हर कोई उन्हें 'लाजवाब' कहे। ऐसी ही खूबसूरत महिला थी जयपुर की पूर्व महारानी राजमाता गायत्री देवी। जो आज हमारे बीच नहीं रही।

यह सच है कि खूबसूरती को तभी परिपूर्ण माना जाता है जब वह शारीरिक ही नहीं अपितु आंतरिक व वैचारिक भी हो। जिस तरह खूबसूरती हर महिला की पहली पहचान होती है, परंतु गुण व संस्कार भी तो महिला की ही पहचान होते हैं, जिसे वह अपनी आने वाली पीढ़ियों में हस्तांतरित करती है।

खूबसूरती व्यर्थ होती है अगर खूबसूरत महिला योग्य व गुणवान न हो। लेकिन अपनी अप्रतिम खूबसूरती के साथ सेवा, ममता, प्रेम जैसे अन्य कई गुणों की खान थी जयपुर की पूर्व राजमाता गायत्री देवी।

सौंदर्य और सेवा की मिसाल पूर्व राजमाता गायत्री देवी हम सभी को अलविदा कहकर चली गईं और अनाथ कर गई उन सभी जयपुरवासियों को, जिन्हें कभी पूर्व में अपनी संतान समझकर अपना असीम ममत्व व स्नेह प्रदान किया था। यह महिला कोई साधारण महिला नहीं थी, बल्कि यह एक जीती जागती मिसाल थी, संघर्ष, बदलाव व देश की एक गौरवशाली विरासत की।

सवाई मानसिंह द्वितीय भी गायत्री देवी की खूबसूरती, बहादुरी व उनकी अदाओं के मुरीद होकर उन्हें अपना दिल दे बैठे थे। वे जब-जब भी लंदन जाते, तब-तब अपनी इस प्रेमिका से मुलाकात करते।
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जहाँ राजमाता ने शानो-शौकत का दौर देखा, वहीं उन्होंने राजमहल में दहाड़-दहाड़कर रोती चिंघाड़ती तन्हाइयों को भी देखा। दर्द की हर सिसकी को गायत्री देवी ने महसूस किया। अपने जीवन के कई उतार-चढ़ावों की लहरों में चट्टान की तरह सीना ताने खड़ी राजमाता गायत्री देवी ने एक के बाद एक कई दुखों को झेला।

प्रजा से प्रेम रखने वाली राजमाता ने बीमार होने के बावजूद भी अपनी प्रजा का साथ नहीं छोड़ा व उन्हें अपनी उपस्थिति की गरमाहट का एहसास कराने वो लंदन से जयपुर चली आई।

राजस्थान के राजघराने की इस बहू ने अपने नगर जयपुर के संतोकबा दुर्लभजी मेमोरियल हॉस्पिटल में अपनी अंतिम साँस ली व अपनी प्रजा पर आशीष लुटाते हुए इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

आइए रूबरू होते हैं एक ऐसी ही शख्‍सियत जयपुर की पूर्व महारानी राजमाता गायत्री देवी के जीवन के उतार-चढ़ावों से और जानते हैं इस महिला के संघर्ष की दास्ताँ को -

कूचबिहार में जन्मीं थीं गायत्री देवी :
पूर्व राजमाता गायत्री देवी का जन्म कूच बिहार के पूर्व महाराजा जीतेंद्र नारायण भूप बहादुर के परिवार में 23 मई 1919 में हुआ था। पाँच भाई बहनों में उनका नंबर चौथा था। इस राजकुमारी का बचपन बेहद ही ठाठ-बाट में बीता। महारानी की शिक्षा शांति निकेतन और स्विट्जरलैंड में हुई थी। बचपन से ही महारानी गायत्री देवी (बचपन का नाम आयशा) प्रतिभावान बालिका थी, जिनके हर शौक लड़कों की तरह थे।

'जो काम लड़के कर सकते हैं, वह मैं क्यों नहीं' इस तरह के ऊर्जावान विचारों की समर्थक गायत्री देवी ने दुनिया की परवाह किए बगैर अपने हर शौक को पूरा किया। उन्हें इस बात की फिक्र नहीं थी कि दुनिया वाले क्या कहेंगे। वो वही करती, जो वो करना चाहती थी।

खूबसूरती में थी लाजवाब :
अब तक रंग-बिरंगी पेंटिंगों व फिल्मों में दिखाई देने वाली खूबसूरत राजकुमारियों की तरह गायत्री देवी भी खूबसूरती की मिसाल थी। फिल्म 'जुबैदा' की जुबैदा के समान राजकुमारी को घुड़सवारी, पोलो आदि का शौक था। वह खुलेपन की समर्थक थीं। गायत्री देवी वो सौभाग्यशाली महिला थीं, जिसे प्रसिद्ध 'वोग मैग्जीन' ने दुनिया की दस खूबसूरत महिलाओं की सूची में शुमार किया था।

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सवाई मानसिंह भी दिल दे बैठे :
सवाई मानसिंह द्वितीय भी गायत्री देवी की खूबसूरती, बहादुरी व उनकी अदाओं के मुरीद होकर उन्हें अपना दिल दे बैठे थे। वे जब-जब भी लंदन जाते, तब-तब अपनी इस प्रेमिका से मुलाकात करते। इसका कारण दोनों की विचारधाराओं का मेल भी हो सकता है, महाराज और महारानी दोनों ही घुड़सवारी व पोलो के शौकीन थे। कई बार तो उनकी मुलाकात खेल के मैदान में होती थी।

जब मुलाकातें बढ़ने लगी तो धीरे-धीरे दोनों के बीच प्यार भी बढ़ने लगा और यह प्यार इस हद तक बढ़ा कि सवाई मानसिंह द्वितीय ने गायत्री देवी को विवाह का प्रस्ताव ‍तक रख दिया।

गायत्री देवी बँधी विवाह बंधन में :
9 मई 1940 को जयपुर के अंतिम महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने गायत्री देवी से विवाह कर उन्हें अपनी तीसरी धर्मपत्नी का दर्जा दिया। महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय की मौजूदा दो महारानियों ( मरूधर कँवर और किशोर कँवर) के साथ ही महारानी गायत्री देवी उनकी तीसरी रानी बनी। सन् 1939 से 1970 तक गायत्री देवी जयपुर की महारानी बनी रहीं। महाराज और महारानी के जीवन में खुशियों की स्तक लेकर आया उनका पुत्र प्रिंस जगत सिंह जिसका जन्म 17 अक्टूबर 1949 में हुआ।

दन से जयपुर में ब्याहकर आई गायत्री देवी ने धीरे-धीरे खुद को राजस्थान के रीति-रिवाजों में ढालना शुरू कर दिया परंतु कुछ रीति-रिवाज ऐसे थे, जिनका महारानी ने घोर विरोध किया जैसे पर्दाप्रथा।

जहाँ राजमाता ने शानो-शौकत का दौर देखा, वहीं उन्होंने राजमहल में दहाड़-दहाड़कर रोती चिंघाड़ती तन्हाइयों को भी देखा। दर्द की हर सिसकी को गायत्री देवी ने महसूस किया। अपने जीवन के कई उतार-चढ़ावों की लहरों में वो चट्टान की तरह सीना ताने खड़ी रही।
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जिंदादिल महिला थीं गायत्री देवी :
जयपुर की महारानी गायत्री देवी एक जिंदादिल महिला थीं, जो हर वो कार्य करती, जो उसे करना पसंद था। उन्हें बंधनों में घुट-घुटकर जीना पसंद नहीं था, वह पंछी की तरह उड़ना और कोयल की तरह गाना चाहती थीं। महारानी गायत्री देवी ने अपने जीवन के हर क्षण का लुत्फ उठाया। फिर चाहे वह महँगी कारों में घूमने का शौक हो या फिर लड़कों की तरह सूट-बूट पहनने का शौक।

गायत्री देवी को कार चलाने का बड़ा शौक था। जयपुर राजघराने के रूढ़िवादी रिवाजों की परवाह किए बगैर महारानी अपनी कार लेकर अकेले ही जयपुर की सैर को निकल जाती थी।

इसी तरह घुड़सवारी की शौकीन गायत्री देवी अपने महाराजा के साथ घोड़े पर बैठकर घुड़सवारी भी करती थीं। शिकार की शौकीन इस महिला ने महज 12 साल की उम्र में बाघ का शिकार किया था। इसके अलावा गायत्री देवी को पोलो, बैडमिंटन, टेबल टेनिस आदि खेलों में भी विशेष रुचि थी।

परिवर्तन की प्रवर्तक :
विचारों के खुलेपन की समर्थक महारानी ने जब देखा कि जयपुर की बालिकाएँ व महिलाएँ आज भी पर्दाप्रथा की आड़ में शिक्षा से वंचित रहकर अपने जीवन को बर्बाद कर रही हैं तो उन्हें इस बात का बहुत दुख हुआ और महारानी ने इसका विरोध भी किया। बालिकाओं की शिक्षा के लिए 1943 में जयपुर में पहला पब्लिक स्कूल 'महारानी गायत्री देवी पब्लिक स्कूल' (एमजीडी) प्रारंभ करने का श्रेय भी महारानी गायत्री देवी को ही जाता है।

राजनीति में सक्रिय भूमिका :
राजमहलों में शानो-शौकत का जीवन बसर करने वाली महारानी गायत्री देवी से आम जन की पीड़ा कभी छुपी नहीं थी। लड़कों की तरह बहादुर व खुली विचारधारा की समर्थक गायत्री देवी ने तत्कालीन सक्रिय राजनीति में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। सन् 1962 में गायत्री देवी स्वर्गीय राजगोपालाचार्य की पार्टी 'स्वतंत्र पार्टी' की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी। इसके बाद 1962, 1967 व 1971 के चुनावों में गायत्री देवी जयपुर संसदीय क्षेत्र से 'स्वतंत्र पार्टी' के टिकिट पर लोकसभा की सदस्य चुनी गईं।

जनता के बीच महारानी गायत्री देवी का वर्चस्व इतना अधिक था कि सन् 1962 में जनता की प्रिय महारानी गायत्री देवी ने अपने प्रतिद्वंदी को लगभग साढ़े तीन लाख वोटों के अंतर से हराकर एक रिकॉर्ड कायम किया, जिसके कारण गायत्री देवी का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में शामिल किया गया। इंदिरा गाँधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दिनों में 'कोफेपोसा एक्ट' के अंतर्गत दोषी पाए जाने पर गायत्री देवी ने अपने जीवन के कुछ माह तिहाड़ जेल में बिताए थे।

समाजसेवा में सक्रिय :
इस खूबसूरत महारानी के भीतर एक रहमदिल औरत भी छिपी थी, जिससे किसी का दुख नहीं छुपा था। समाज सेवा के कार्यों में महारानी ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। इसी के साथ ही महारानी सवाई बेनीवोलेंट ट्रस्ट, महारानी गायत्री देवी सैनिक कल्याण कोष, सवाई मानसिंह पब्लिक स्कूल और सवाई रामसिंह कला मंदिर की अध्यक्ष थीं।

दुख ने नहीं छोड़ा साथ :
कहते हैं सुख के बाद दुख आता ही है। उसी तरह शानो-शौकत का एक अच्छा दौर बीत जाने के बाद महारानी गायत्री देवी के जीवन में एक के बाद एक करके दुख ने दस्तक देनी शुरू कर दी। सन् 1970 में सवाई मानसिंह द्वितीय इस दुनिया को अलविदा कह अपनी इस खूबसूरत महारानी को अकेला कर गए। महाराजा के निधन के बाद तो जैसे दुख और अकेलापन ही महारानी के सच्चे साथी बन गए।

महारानी के जीने की आस अब उनका पुत्र, पुत्रवधू और पोते थे लेकिन जब गायत्री देवी की बहू राजकुमारी प्रिया (थाईलैंड क‍ी तत्कालीन राजकुमारी) अपने पति को छोड़कर व बेटों (देवराज और लालित्य) को लेकर थाईलैंड चली गई। तब से पत्नी और बेटों के दूर चले जाने के गम में महारानी के इकलौते पुत्र जगत सिंह ने भी खुशियों से किनारा कर लिया और खुद को शराब में डूबो दिया। तब से महारानी और भी दुखी रहने लगी थी।

इसके बाद पति की मौत के सदमे से उबरी जयपुर की पूर्व राजमाता महारानी गायत्री देवी को सन् 1977 में अपने इकलौते पुत्र प्रिंस जगत सिंह की मौत ने इतना बड़ा झटका दिया कि इस सदमे से वो पूरी तरह टूट गई और उन्होंने जीने की आस को छोड़कर अकेलेपन व आँसुओं को अपना नया साथी बना लिया।

पूर्व राजमाता गायत्री देवी के साथ जैसे एक युग का अंत हो गया और दफन हो गए राजा-महाराजाओं के जीवन के कई राज व अनसुलझे रहस्य, जिनकी गुत्थियाँ अब इतिहास की किताबों में अंकित हो जाएगी। आज भले ही पूर्व राजमाता गायत्री देवी हमारे बीच नहीं हैं परंतु उनके सराहनीय कार्य सदैव हमारी प्रेरणा बनकर हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे। गायत्री देवी अमर रहें इन्हीं शब्दों के साथ उन्हें वेबदुनिया की अश्रुपूरिश्रद्धांजलि।

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