किरणबाला
' देखो तो किस कदर कंधे पर हाथ रखकर वह उस लड़के से बात कर रही है। जरा भी लाज-शर्म नहीं। पूरा कॉलेज उसे देख रहा है लेकिन वह है कि अपने प्रेमालाप में इस कदर खोई है कि उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। लगता है अपने माँ-बाप का नाम नीचा करके ही दम लेगी। मैं तो कहूँ कि इस तरह लड़कों के साथ कॉलेज में हरकत करने वाली लड़की को कॉलेज से ही निकाल देना चाहिए, क्योंकि ये लड़कियाँ ही दूसरी लड़कियों को बिगाड़ती हैं।'
यह टिप्पणी कॉलेज की एक महिला प्राध्यापक ने जब की, तो मैं सोच में पड़ गई कि प्रेमालाप में तो लड़का व लड़की दोनों ही संलग्न थे, तो फिर लड़की के चरित्र पर ही उँगली क्यों उठाई गई। शायद इसलिए कि वह एक लड़की है। मैडम चाहतीं तो यह भी कह सकती थी कि कैसा बेशर्म लड़का है।
वैशाली और रोहित की सगाई दो महीने रही, फिर किसी बात पर सगाई टूट गई। रोहित के पिता एक दिन जब किसी काम से घर आए, तो मैंने उनसे सगाई टूटने का कारण पूछा, वे तपाक से बोले 'चरित्रहीन थी लड़की।' उसके पहले से ही किसी लड़के के साथ प्रेम संबंध थे। ऐसी लड़की को भला बहू कैसे बनाते? बल्कि सच तो यह था कि लड़के का ही एक अन्य लड़की से अफेयर चल रहा था और इस वजह से उसने ही शादी करने से इंकार कर दिया था।
पुरुष प्रधान समाज में नैतिकता की सारी नसीहतें महिलाओं के लिए ही हैं। पुरुष तो जैसे दूध का धुला है। पुरुष चाहे कितना ही दुश्चरित्र हो पर उँगली सदैव महिला के चरित्र पर ही उठेगी। बलात्कार की घटनाओं में भी पीड़िता के प्रति लोगों की सहानुभूति नहीं होती अपितु इसके लिए उसके चरित्र को ही दोषी माना जाता है। गोया उसने जानबूझकर बलात्कार करवाया हो।
बलात्कार करने वाला खुलेआम घूमता है, लेकिन जहाँ-जहाँ पीड़िता जाती है, वहाँ-वहाँ उसके चरित्र पर उँगली उठाई जाती है। नारी सशक्तिकरण के चाहे जितने दावे किए जाएँ, लेकिन पुरुषों को खोट नारी के चरित्र में ही नजर आती है। यहाँ तक कि कोई विवाहिता किसी गैर मर्द के साथ दो पल हँस-बोल भी ले, तो पति की नजर में वह पतिता हो जाती है। पति की यह सोच क्या पत्नी की कोमल भावनाओं को ठेस नहीं पहुँचाती?
होस्टल में रहकर पढ़ने या नौकरी के कारण अपने घर-परिवार से दूर रहने वाली लड़कियों और महिलाओं को भी लोग शक की नजर से देखते हैं। यदि कभी वे किसी लड़के या पुरुष के साथ देखी जाती हैं तो उसके चरित्र पर संदेह किया जाता है। उसका चरित्र कितना ही अच्छा क्यों न हो, उसे कलंकित करने का प्रयास किया जाता है। एक उम्र के बाद यदि कोई लड़की शादी नहीं करती या फिर शादी न करने का फैसला लेती है तो उस अकेली औरत का भी समाज जीना हराम कर देता है।
उसके बारे में तरह-तरह की अफवाहें फैलाई जाती हैं। कोई कहता है कि इसका तो शुरू से ही चाल-चलन ठीक नहीं था, इसलिए कोई शादी करने को तैयार नहीं हुआ, तो कोई कहता है कि उसे तो आजादी चाहिए छुट्टा रहने की। यानी जितने मुँह उतनी बातें। यदि अकेली अविवाहित औरत अच्छा पहनती-ओढ़ती है, सजती-सँवरती है, तो उसे दुश्चरित्र करार दे दिया जाता है कि वह किसके लिए यह सब कर रही है? किसी को उसकी खुशी से कोई वास्ता नहीं।
लोगों को महिलाओं के प्रति अपनी धारणा बदलनी होगी। औरत का सम्मान करना सीखना होगा। उसे दोयम दर्जे की या हेय न समझें। वह पैरों की जूती नहीं है कि चाहे जैसा व्यवहार किया जाए। उसका अपना भी समाज में एक स्थान, स्वाभिमान और इज्जत है। उसके चरित्र पर अनावश्यक दोषारोपण करने का अधिकार किसी को नहीं है। जो लोग महिलाओं के चरित्र पर उँगली उठाते हैं, उन्हें पहले अपने चरित्र को देखना चाहिए।