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संयम का महत्व

अथयोगानुशासनम्

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अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

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संयम स्वयं से प्यार करने का एक उपाय है। योगानुसार जिस व्यक्ति में संकल्प और संयम नहीं वह मृत व्यक्ति के समान है। ऐसा व्यक्ति ‍जीवनभर विचार, भाव और इंद्रियों का गुलाम बनकर ही रहता है। संयम और संकल्प के अभाव में व्यक्ति के भीतर क्रोध, भय, हिंसा और व्याकुलता बनी रहती है, जिसके कारण उसकी जीवनशैली अनियमित और अवैचारिक हो जाती है।

बिना संकल्पित हुए बगैर योग का आरंभ करना उचित नहीं है क्योंकि इसके बिना अभ्यास फलदायक नहीं हो सकता। संकल्प है तो संयम अर्थात धैर्य भी रखना जरूरी है। संयम का योग में बहुत ही महत्व है। योग आसन या प्राणायाम न भी करें तो चलेगा, लेकिन संयमित जीवनशैली है तो व्यक्ति सदा निरोगी और प्रसन्न चित्त बना रहता है।

संयमित रहें-
शारीरिक संयम-: भोजन कम और हल्का करें। भोजन में खटाई, चटपटी, अधिक नमकीन आदि पदार्थ नहीं लें। इससे भूख भी मिट जाती है और आलस्य भी नहीं रहता। साथ ही योगसाधना सुचारू रूप से चलती रहती है। योगाभ्यासी आवश्‍यकता से अधिक पानी नहीं पीता। पानी भी थोड़ा ही पीना चाहिए। कम बोलें, विवाद तो कभी भी नहीं करें। उचित नींद लें, लेकिन ज्यादा ना सोएं। ज्यादा या कम सोने से शक्ति क्षीण होती है।

मानसिक संयम- : किसी से भी शत्रुता नहीं रखनी चाहिए। काम, क्रोध, लोभ, मद, अहंकार आदि से दूर रहकर सतत विनम्र बने रहना जरूरी। इससे सांसारिक वातावरण का प्रभाव छू भी नहीं पाता। कभी किसी से छल नहीं करें और न स्वयं ही छले जावें। अहंकार और झूठ से सदा दूर रहें। मान-सम्मान, बढ़ाई या चंचलता से दूर रहें। संतोष धारण करें, क्षमा को अपनाएं।

सांसारिक संयम-: टोना, ज्योतिष, यंत्र, भूत, प्रेत, बाबा आदि सभी झूठ हैं। धातु-रसायन आदि भी झूठ हैं। नाटक-नौटंकी, सिनेमा, बाग-बगीचा आदि में अधिक नहीं जाएं। इनसे दूर रहने से मानसिक द्वंद्व और विरोधाभाष नहीं रहता।

संसार के प्रति तटस्थ भाव सदा रखें। सांसारिक बातों की अधिक चिंता नहीं करें, निश्चय होकर मन को स्थिर रखने का अभ्यास करें। सांसारिक घटनाक्रम मन को व्यग्र करते हैं जिससे शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है। संसार आपको बदले इससे पहले आप स्वयं बदल जाएं।

उपर्युक्त सभी संयमों का दृढ़ता से पालन करने से व्यक्ति को रोग, शोक, संताप नहीं सताते और वह निरोगी रहकर लम्बी उम्र जीता है। अतः सर्वप्रथम संयम को अपनाकर तब योग का अभ्यास करना चाहिए।

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