गुवाहाटी। असम के विधानसभा चुनाव में एक सीट सबकी चर्चा का केंद्र बनी हुई है। लखीपुर विधानसभा क्षेत्र की इस सीट को 'असम के मधेपुरा' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहां बड़ी संख्या में बिहार और झारखंड से आकर बस गए यादव समुदाय के लोग रहते हैं।
लखीपुर की इस सीट का जातिगत समीकरण बिहार में लालू प्रसाद यादव का गढ़ माने जाने वाले मधेपुरा से काफी मिलता-जुलता है। लखीपुर में बड़ी संख्या में ग्वाला समुदाय के लोग रहते हैं, जो कि यादव समुदाय से हैं और यहां के चाय बागानों में भी काम करते हैं। यहां भूमिहार समुदाय के लोगों की संख्या भी काफी अधिक है।
लखीपुर विधानसभा सीट सिल्चर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जो कि असम के बराक घाटी में आता है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के प्रमुख तेजस्वी यादव ने 27 मार्च को लखीपुर में एक चुनावी रैली की थी जिसमें काफी अधिक संख्या में लोग देखे गए। यह रैली इस चुनावी सीजन में बराक घाटी में हुई अब तक की सबसे बड़ी रैली थी।
लखीपुर का चुनाव इसलिए भी दिलचस्प हो जाता है, क्योंकि इस सीट से मौजूदा विधायक कांग्रेस के राजदीप ग्वाला चुनाव से कुछ महीने पहले ही अपने पद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए हैं। भाजपा ने पूर्व कांग्रेस विधायक को 2021 के विधानसभा चुनाव में लखीपुर सीट से टिकट नहीं दिया है। हालांकि राजदीप के दिवंगत पिता दिनेश ग्वाला इस क्षेत्र में काफी लोकप्रिय नेता थे और लगातार 7 बार विधायक चुने गए थे। उनकी छवि वैसी ही थी, जैसी यादव समुदाय में लालू प्रसाद यादव की है।
दिल्ली स्थित राजनीतिक विश्लेषक रतन ज्योति दत्ता का इस पर कहना है कि समान राजनीतिक समीकरण होने के कारण लखीपुर की यह सीट असम की मधेपुरा है। यहां रहने वाले अधिकतर लोग पिछड़े वर्ग से आते हैं, जो कि कई वर्षों पूर्व बिहार और झारखंड से आकर यहां बस गए थे।
भाजपा ने इस बार यहां से कौशिक राय नामक एक भूमिहार प्रत्याशी को टिकट दिया है, जो कि इस क्षेत्र के लिए बाहरी हैं। कांग्रेस ने मुकेश पांडे नामक एक व्यापारी को टिकट दिया है जबकि नवगठित असम जातीय परिषद ने अलीमुद्दीन मजूमदार नामक एक मुसलमान उम्मीदवार को टिकट दिया है। हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सिल्चर सीट के अंतर्गत लखीपुर क्षेत्र से भाजपा बहुमत में थी। (वार्ता)