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...अब 15 जनवरी से शुरू होंगे विवाह मुहूर्त

युवक-युवतियों को करना पड़ेगा लंबा इंतजार

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- हेमंत उपाध्याय
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परिणय सूत्र में बंधने की बाट जोह रहे युवक-युवतियों को 4 दिसंबर के बाद एक महीने से अधिक समय तक शादी के लिए इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि इसके बाद विवाह का मुहूर्त 15 जनवरी को ही है। मलमास की वजह से भी विवाह आदि कार्य नहीं किए जा सकेंगे। लिहाजा 4 दिसंबर, 15 जनवरी, 28 जनवरी और 13 अप्रैल को सर्वाधिक शादियां होंगी।

ज्योतिषियों का कहना है कि मार्गशीर्ष शुक्ल दशमी रविवार 4 दिसंबर को सर्वाधिक विवाह के मुहूर्त हैं। इसके लिए अधिकांश धर्मशालाएं, मैरिज गार्डन और होटलें बुक की जा चुकी हैं। जगह के अभाव में कई लोगों को वैकल्पिक साधनों का या सड़कों का ही विवाह समारोह के लिए उपयोग करने को मजबूर होना पड़ेगा।

4 दिसंबर से शादियां इसलिए बंद हो जाएंगी क्योंकि इसके बाद 15 जनवरी को ही पंचांगों ने विवाह के मुहूर्त निर्धारित किए हैं। दूसरी ओर 16 दिसंबर से मलमास या धनु संक्रांति लग रहा है। इसकी समाप्ति के बाद 15 जनवरी से फिर शादियों का सिलसिला शुरू होगा।

नहीं मिलता सूर्य का बल :- आचार्य रामचंद्र शर्मा वैदिक का कहना है कि मलमास में सूर्य धनु राशि का होता है। ऐसे में सूर्य का बल वर को प्राप्त नहीं होता। 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक मलमास रहेगा। वर को सूर्य का बल और वधू को बृहस्पति का बल होने के साथ ही दोनों को चंद्रमा का बल होने से ही विवाह के योग बनते हैं। इस पर ही विवाह की तिथि निर्धारित होती है।

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शर्मा के अनुसार 28 जनवरी को अबूज मुहूर्त है क्योंकि उस दिन वसंत पंचमी आएगी। तब किसी चीज का बल नहीं देखा जाता इसलिए सर्वाधिक शादियां और सामूहिक विवाह इसी दिन आयोजित किए जाते हैं। इसके बाद 13 अप्रैल से फिर विवाह की शुरुआत हो जाएगी।

क्या है मलमास : हिन्दू ग्रंथों और ज्योतिष शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि जिस चंद्रमास में सूर्य का राशि संक्रमण यानी एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश या संक्रांति न हो उसे अधिक मास या मलमास कहा जाता है। सूर्य को प्रत्यक्ष देवता माना जाता है और सभी धर्मकर्म आदित्य देवता को साक्षी मानकर ही संपादित किए जाते हैं।

जब गुरु की राशि में सूर्य आते हैं :- ज्योतिर्विद रामकृष्ण डी. तिवारी का कहना है कि जब गुरु की राशि में सूर्य आते हैं तब मलमास का योग बनता है। वर्ष में दो मलमास पहला धनुर्मास और दूसरा मीन मास आता है। सूर्य के गुरु की राशि में प्रवेश करने से विवाह संस्कार आदि कार्य वर्जित माने जाते हैं।

यह नियम मुख्य रूप से उत्तर भारत में लागू होता है जबकि दक्षिण भारत में इस नियम का प्रभाव शून्य रहता है। मद्रास, चेन्नई, बेंगलुरू में इस दोष से विवाह आदि कार्य मुक्त होते हैं।

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