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आखातीज पर दें मटकी-खरबूजे का दान

आखातीज पर दान-धर्म से पाएँ पुण्य

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हमें फॉलो करें अक्षय तृतीया
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अक्षय तृतीया बैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है। इस बार 16 मई की तड़के 4.10 बजे से 17 मई की रात 2.30 बजे तक अक्षय तृतीया रहेगी। शास्त्रों में अक्षय तृतीया को युग की प्रारंभिक तिथि व कल्प की आदि तिथि माना जाता है। पंडित आशुतोष झा ने बताया कि अक्षय तृतीया पर किए जाने वाले सभी कार्य अक्षय होते हैं। इस दिन सभी देवताओं व पित्तरों का पूजन किया जाता है। पित्तरों का श्राद्ध कर धर्मघट दान किए जाने का उल्लेख शास्त्रों में है। भगवान नर-नारायण को सत्तू दान किए जाने की भी परंपरा है।

अक्षय तृतीया पर मिट्टी के जल पात्रों का दान आदि करने का विशेष महत्व है। दान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। हालाँकि 13 दिनों का पक्ष होने के कारण इस वर्ष अक्षय तृतीया पर विवाह के मुहूर्त नहीं हैं, फिर भी नगर में कई स्थानों पर वैवाहिक कार्य संपन्न किए जाएँगे। इनमें सामूहिक विवाह कार्यक्रम भी शामिल है। ज्योतिषियों ने 13 दिनों के पक्ष में होने वाले होने वाले वैवाहिक कार्यक्रमों के मुहूर्त को नेष्ट बताया है।

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पंडितों के अनुसार 16 संस्कारों में विवाह संस्कार प्रमुख है। ज्योतिषाचार्य पं. विशाल त्रिवेदी के अनुसार 13 दिनों का पक्ष होने के कारण अक्षय तृतीया पर अबूझ मुहूर्त होने के बाद भी माँगलिक कार्य वर्जित बताए गए हैं। विवाह के शुभ मुहूर्त की शुरूआत 28 मई से होगी। इसके साथ ही 29, 31 मई, 1 जून, 6, 17, 19, 20, 21, 23, 24, 27, 28 जून, 3 जुलाई, 4, 8, 9, 14 तथा 16 जुलाई को वैवाहिक कार्य किए जा सकते हैं।

शास्त्रों में कई प्रकार के दान का उल्लेख किया गया है, लेकिन विशेष तिथि या दिवस के दान भी बताए गए हैं। अक्षय तृतीया पर जल भरी लाल मटकी, फल (विशेषकर खरबूजा), दक्षिणा, वस्त्र इत्यादि का दान ब्राह्मणों को करना चाहिए। इस दिन किए गए धार्मिक कार्यों का फल अक्षय रूप से मिलता है।

ज्योतिषियों के हिसाब से भले ही आखातीज पर माँगलिक कार्य करना शुभ नहीं बताया गया है। जो लोग ज्योतिष की सलाह से कार्य नहीं करते हैं वे पाती के लग्न से विवाह कार्य संपन्न करेंगे या फिर विशेष पूजा के साथ लग्न आदि कराएँगे। अक्षय तृतीया के दिन पानी गिरने को शुभ माना जाता है। यह अच्छे मानसून का प्रतीक माना जाता है। वहीं गाँवों में किसान ठाकुर देव की पूजा कर खेतों में धान बोने का रस्म अदा करेंगे। स्नान-दान किए जाने की भी परंपरा है।

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