karka sankranti
श्रावण संक्रांति में सूर्य ने कर्क राशि में प्रवेश किया है। श्रावण संक्रांति मंगलवार, 16 जुलाई 2013, अष्टमी तिथि के दिन, चित्रा नक्षत्रकालीन वृश्चिक लग्न में 15.46 पर आरंभ हुई। श्रावण संक्रांति का पुण्यकाल प्रात:काल 9.22 से आरंभ हुआ।
संक्रांति के पुण्यकाल समय पर दान, जप, पूजा-पाठ इत्यादि का विशेष महत्व होता है। इस समय पर किए गए दान-पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है। ऐसे में शंकर भगवान की पूजा का विशेष महत्व माना गया है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है।
सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश ही कर्क संक्रांति कहलाता है। सूर्य के उत्तरायण होने को मकर संक्रांति तथा दक्षिणायन होने को कर्क संक्रांति कहते हैं। श्रावण से पौष मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना दक्षिणायन होता है। कर्क संक्रांति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं।
शास्त्रों एवं धर्म के अनुसार उत्तरायण का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है। इस प्रकार वैदिक काल से उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा जाता रहा है।
श्रावण संक्रांति का महत्व