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ऋतु परिवर्तन का समय-चक्र

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हमें फॉलो करें ऋतु परिवर्तन समय चक्र
- दामोदर शर्म

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एक दिन के चौबीस घंटों में होने वाले मौसम परिवर्तन से हम सब वाकिफ है। समय चक्र की यह सबसे छोटी अवधि है। व्यावहारिक रूप से इसे हम प्रातःकाल, मध्याह्न, संध्याकाल एवं रात्रि में विभाजित करते हैं। इसी प्रकार एक वर्ष के बारह महीनों में होने वाले मौसमी परिवर्तन से हम वाकिफ हैं। समय-चक्र की इस अवधि को हम ठंड, गर्मी एवं वर्षाकाल में विभाजित करते हैं।

परंतु, मौसम में होने वाले दैनिक परिवर्तन से हम नावाकिफ हैं। जैसे कि ठंड के मौसम में कौन से दिनों में शीतलहर होगी? या ग्रीष्म ऋतु में लू कब चलेगी? या वर्षा ऋतु में कौन से दिन भीगे होंगे और कौन से शुष्क? आदि। प्रस्तुत आलेख में इन्हीं प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया गया है।

भारतीय पंचांग की काल गणना पद्धति में सूर्य की गति के साथ ही चंद्रमा की गति को भी समायोजित किया गया है सूर्य की गति से जहाँ साल में होने वाले ऋतु परिवर्तन की गणना की जाती है, वहीं हम चंद्रमा की गति से मौसम में होने वाले दैनिक परिवर्तन का भी अनुमान लगा सकते हैं।
एक दिन के चौबीस घंटों में होने वाले मौसम परिवर्तन से हम सब वाकिफ है। समय चक्र की यह सबसे छोटी अवधि है। व्यावहारिक रूप से इसे हम प्रातःकाल, मध्याह्न, संध्याकाल एवं रात्रि में विभाजित करते हैं।
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इस कार्य के लिए इंदौर शहर के समाचार-पत्रों में प्रकाशित दैनिक तापमान के आँकड़े संकलित किए गए। पिछले एक वर्ष के अधिकतम व न्यूनतम तापमान के आँकड़ों का विश्लेषण कर, उन्हें संलग्न ग्राफ के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है। इसके लिए पूर्णिमा (15), कृष्णपक्ष की अष्टमी, अमावस् या (30) व शुक्लपक्ष की अष्टमी के नजदीकी दिनों का औसत तापमान विचारार्थ लिया गया है।

आँकड़ों के संकलन एवं विश्लेषण के साथ ही साथ मौसम में होने वाले परिवर्तन को भी ध्यान में रखा गया है। तदनुसार जो निष्कर्ष निकाले गए, वे इस प्रकार हैं-

1. शुक्ल पक्ष तापमान में वृद्धि का परिचायक है, और कृष्णपक्ष तापमान में कमी का। अतः अमावस के आसपास जैसे कृष्णपक्ष की त्रयोदशी (शिवरात्रि) से शुक्ल पक्ष की पंचमी तक मौसम तुलनात्मक रूप से ठंडा होता है। इसके विपरीत, पूर्णिमा के नजदीक दिनों, जैसे शुक्ल पक्ष एकादशी से कृष्णपक्ष की चतुर्थी तक मौसम तुलनात्मक रूप से गर्म होता है।

2. चंद्रमा की गति से मौसम का पूर्वानुमान करते समय सूर्य की गति पर भी ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में कृष्ण पक्ष में तापमान में वृद्धि होती है, परंतु तापमान वे वृद्धि की दर शुक्ल पक्ष में तीव्र होगी। अतः गर्मी में लू चलने की अधिकतम संभावना वैशाख पूर्णिमा के दिनों में होगी।

3. इसी प्रकार शीत ऋतु में शुक्ल पक्ष में भी तापमान में कमी हो सकती है, परंतु तापमान में कमी की दर कृष्ण पक्ष में तीव्र होगी। अतः ठंड के मौसम में शीत लहर चलने की अधिकतम संभावना पौष माह की अमावस के दिनों में होगी।

4. गर्मी के मौसम में तापमान में असीमित वृद्धि का नियंत्रण जल और वायु की गतिशीलता से होता है। अतः ज्येष्ठ माह के अमावस वाले सप्ताह में मानसून पूर्व की ठंडी हवाओं का प्रवाह आरंभ हो जाता है। पूर्णिमा वाले सप्ताह में आँधी के साथ मानसून पूर्व की बारिश होने की संभावना बनती है।

5. इसी प्रकार ठंड के मौसम में तापमान में असीमित गिरावट का नियंत्रण भी जल और वायु की गतिशीलता से होता है। अतः पौष माह के अमावस एवं पूर्णिमा वाले सप्ताह में शीतलहर व मावठे की अधिकतम संभावना होती है। माघ मास के अमावस वाले सप्ताह में ठिठुराने वाली ठंडी हवा का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है।

6. वर्षा ऋतु में पूर्णिमा वाले सप्ताह में तेज बारिश की संभावना दोपहर बाद एवं संध्याकाल में होती है। अमावस वाले सप्ताह में वर्षा रात्रि एवं प्रातःकाल में होती है।

7. वर्षा ऋतु में दोनों पक्ष की अष्टमी वाले सप्ताह सामान्य होते हैं।

8. इसी प्रकार साल के बारह महीनों में भी अष्टमी वाले सप्ताह सामान्य होते हैं। पूर्णिमा एवं अमावस वाले सप्ताह असामान्य होते हैं।

9. साल के चार मास, कार्तिक, मार्गशीर्ष, फागुन और चैत्र समान्य, समशीतोष्ण होते हैं। अतः इन महीनों में पूर्णिमा एवं अमावस वाले सप्ताह भी सामान्य होते हैं।

संक्षिप्त निष्कर्ष-
हम एक दिन के चौबीस घंटों में होने वाले मौसमी परिवर्तन से वाकिफ हैं। अतः उसी तर्ज पर तुलनात्मक रूप से कह सकते हैं कि पूर्णिमा महीने का मध्याह्न काल है और अमावस रात्रिकाल। शुक्ल पक्ष की अष्टमी प्रातःकाल है और कृष्ण पक्ष की अष्टमी माह का संध्याकाल। तद्‍नुसार हम मौसम में होने वाले दैनिक परिवर्तन का अनुमान लगा सकते हैं।

उपयोगिता-
उपरोक्त निष्कर्ष एवं विश्लेषण का उपयोग हम हमारे दैनंदिन कार्य, जैसे कृषि-खेती, यात्रा, पारिवारिक एवं सामाजिक कार्यक्रमों आदि की योजना बनाने एवं तिथि निश्चित करने में कर सकते हैं।

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