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एस्ट्रोलॉजी को अपडेट करने की जरूरत

ज्योतिष : शास्त्र, कला या विज्ञान-2

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- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
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समय-समय पर ज्योतिष शास्त्र में उन्नति होती रही, लेकिन करीब दौ सौ सालों से ज्योतिष पर शोध किए जाने की आवश्यकता बनी हुई है। खगोल, भूगोल आदि सभी तरह का विज्ञान स्वयं को अपडेट करता रहता है, लेकिन ज्योतिष विद्या को कभी अपडेट करने का खयाल शायद ही किसी को आता हो। आधुनिक युग में बाजारवाद के चलते तो अब ज्योतिष एक विज्ञान नहीं व्यापार रह गया है। दूसरा यह कि इसमें इतना भ्रम है कि सही और गलत का फैसला नहीं कर सकते।

अपडेट करने की जरूरत इसलिए है कि लाखों वर्षों के सफर में धरती बहुत तरह के झटके झेलकर अब अपने स्थान पर नहीं रही है। पूरे तीन डिग्री अपनी धूरी से खसक गई है। उसी तरह ब्रह्मांड का कोई भी तारा ठीक उसी जगह नहीं है जहाँ वह लाखों साल पहले था। तापमान बदल गया है, मौसम बदल गया है और न जाने क्या-क्या बदला है इसका आकलन करना अभी बाकी है। असंख्‍य महातारों में से किसी एक तारे में एक प्रस्फोट होता है और ब्रह्मांड में एक नई सृष्टि की रचना हो जाती है। सब कुछ बदल गया है, लेकिन ज्योतिष विद्या वही प्राचीन है।

ग्रहों के देवता : प्रत्येक ग्रह के साथ एक देवी या देवता को जोड़कर उक्त देवी-देवता की जीवन कथा भी अब भ्रमपूर्ण हो चली है। जब राहु और केतु छाया ग्रह है और जिनका कोई अस्तित्व नहीं है तो फिर उनकी कथा का क्या मतलब। यह कथा कितनी सच और कितनी झूठ है यह कोई नहीं बता सकता।

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यह भी हो सकता है कि राहु और केतु नाम के दो राक्षस हुए हों और उन्ही के नाम पर छाया ग्रहों का नामकरण कर दिया गया हो, जैसे कि आधुनिक युग में प्लेटो ग्रह का नाम दार्शनिक प्लूटो पर रखा गया है। अब प्लूटो को पूजने से क्या प्लूटो ग्रह के दोष ठीक हो जाएँगे? यह भी हो सकता है कि ग्रहों की गति-दुर्गति, अच्छे और बुरे असर को मिथकीय रूप दिया गया हो। यह मामला अभी स्पष्ट होना बाकी है।

ज्योतिष की शिक्षा : ज्योतिष की शिक्षा देने वाले बहुत कम संस्थान है और ज्योतिषाचार्य की तादाद लाखों में। इन लाखों में से सिर्फ सैकड़ों ही ऐसे ज्योतिष हैं जिन्होंने विधिवत ज्योतिष की शिक्षा ली है बाकी सभी किताबी ज्ञान वाले हैं और फिर वे मनमाने फंडे बताकर लोगों को ठगने में माहिर हो चुके हैं। बातों को इस तरह गोलगोल घुमाते हैं कि जो न तो सच लगती है और ना ही झूठ। लेकिन यह भी सच है कि बहुत से ऐसे ज्योतिष हैं जिन्होंने विधिवत शिक्षा नहीं ली, फिर भी वे ज्योतिष का ज्ञान रखते हैं और अच्छा रखते हैं एवं शास्त्र सम्मत बातें ही कहते हैं। कुछ भी अपने मन से नहीं जोड़ते।

वैज्ञानिक की माने या ज्योतिष की : इंग्लैंड की प्रतिष्ठित संस्था रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी 1922 में ही विज्ञान कांग्रेस में घोषणा कर चुकी है कि राशि 12 नहीं 13 है। यानी सूर्य और अन्य ग्रह 13 राशि मंडल (तारा मंडल) से होकर गुजरता है। इस तेरहवें तारा मंडल को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है- ओफियुकस। यह एक यूनानी देवता का नाम भी है।

माना जाता है कि ज्योतिष शास्त्र की कुछ गणितीय समस्याएँ थी जिस कारण से 13वीं राशि को शामिल नहीं किया गया। पहली समस्या यह कि 13 का पूर्ण भाग नहीं हो सकता। कुंडली को 13 खानों में बाँटना मुश्किल था। ग्रहों को 30 डिग्री से कम का ज्यादा गति करवाने से ज्योतिष गणित गड़बड़ा जाता है।

360 डिग्री को 12 हिस्सों में बाँटना आसान हैं। विषम संख्‍या से कई तरह कि विषमताएँ पैदा होती है शायद इसिलिए 13वीं राशि को नजरअंदाज किया गया। दूसरी ओर पाश्चात्य जगत में 13 का अंक अशुभ माना जाता है इसलिए राशियों का तेरह होना उन्हें जमा नहीं। परम्परागत पाश्चात्य ज्योतिष भी 12 पर अड़ा रहा।

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हालाँकि वैज्ञानिकों की माने तो राशियाँ तो 88 होना चाहिए। दरअसल वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा को 88 तारा मंडलों में विभक्त किया है। तारामंडल अर्थात कुछ या ज्यादा तारों का एक समूह। इन तारा मंडलों में से ज्योतिष अनुसार 12 और वैज्ञानिकों अनुसार 13-14 तारा मंडलों में सूर्य और सौर्य परिवार के अन्य ग्रह भ्रमण करते हैं जिस वक्त चंद्र वृश्चिक तारा मंडल या राशि में भ्रमण कर रहा है उस काल में यदि किसी का जन्म हुआ है तो उसकी राशि वृश्चिक मानी जाएगी। तारा मंडल दरअसल मील के पत्थरों की तरह है जिससे आकाश गंगा के विस्तार क्षेत्र का पता चलता है। ऐसी कई आकाश गंगाएँ है।

जरूरी नहीं की ग्रह सिर्फ 12 से 13 राशियों में ही भ्रमण करते रहते हैं। कुछ ग्रह सैकड़ों सालों में तो कुछ थोड़े ही सालों में बारह राशियों को छोड़कर 88 में से किसी भी राशि में कुछ काल के लिए भ्रमण करने लगते हैं, तब ऐसे में शुभ और अशुभ विचारों के बारे में क्या सोचना चाहिए यह तय नहीं है।

जैसे मान लो कि गुरु के धनु राशि में प्रवेश करने के बाद ही विवाह आदि शुभ कार्य शुरू होते हैं, लेकिन 2007 में गुरु नासा की एफेमरिज अनुसार ओफियुकस राशि में भ्रमण कर रहा था और शुक्र हाइड्रा राशि में, लेकिन भारतीय ज्योतिषानुसार गुरु धनु राशि में था। अब आप ही बताएँ ज्योतिष की माने या वैज्ञानिकों की?

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