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कुशल प्रबंधन में सहायक ग्रह

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

जितनी सूक्ष्मता प्रबंधन विषय में आवश्यकता होती है, उससे कहीं अधिक बारीकियों और सूक्ष्म गणनाओं का विषय है- कुंडली विवेचन। कुशल प्रबंधन मानवीय श्रम के बेहतरीन संयोजन और कुशलतम व्यवस्थापन का नाम है। इसी प्रकार कुंडली की विवेचना भी सूक्ष्मतम गणनाओं और व्यापक अनुभव का फलितार्थ है। इन दोनों का तालमेल और सामंजस्य कुल मिलाकर एक ऐसे संस्थान की रचना करने के लिए पर्याप्त है जो अपने क्षेत्र में बेरोकटोक निरंतर शीर्ष की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

शून्य का जन्मदाता कहलाने वाला भारत वैदिक गणित और ज्योतिष विद्या में भी काफी पुराने समय से अग्रणी रहा है। वैदिक गणित को अमेरिका की सर्वोच्च स्पेस एजेंसी नासा ने भी अपनी पूरी-पूरी मान्यता प्रदान की है एवं कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों में इसकी विशेष कक्षाएं लग रही हैं। ठीक इसी प्रकार भारतीय ज्योतिष विद्या और कुंडली विवेचना को भी पाश्चात्य जगत्‌ में शनैः-शनैः मान्यता मिलती जा रही है। व्यक्ति विशेष के भूत, वर्तमान और भविष्य को एक एकीकृत रूप से खुली पुस्तक के रूप में सामने रख देने वाले शास्त्र को भारतीय ज्योतिष कहा गया है।

इन ज्योतिष शास्त्रों में व्यक्ति विशेष की जन्मकुंडली का सबसे बड़ा महत्व है, क्योंकि इसी से इसका सम्पूर्ण जीवन चरित्र छुपा होता है। यदि उस व्यक्ति विशेष के संपूर्ण गुण व दोषों से प्रबंधन कर्ता समय के पूर्व वाकिफ हो जाएं तो वह उसे सर्वोपयुक्त स्थान पर नियुक्त करते हुए संस्थान को अधिकतम लाभ दिला सकता है। प्रबंधन का प्रथम सूत्र ही यही है कि सक्षम व्यक्ति संस्थान के भविष्य को उज्ज्वल बनाते हैं और ज्योतिष शास्त्र यह बताने में सक्षम है कि कौन-सा व्यक्ति संस्थान के लिए लाभदायक रहेगा। उसके गुण-दोषों की विवेचना के साथ ज्योतिषशास्त्र में ग्रहों का भी अध्ययन सकारात्मक कहा जा सकता है।

प्रथम बुध क्योंकि बुध विचारशीलता की अभिव्यक्ति प्रदान करता है तो गणित से संबंधित भी इस ग्रह की विशेषता होती है। मंगल-मंगल उत्साहवर्धक, साहस महत्वाकांक्षा एवं उच्च मनोबल की अभिव्यक्ति देती है। गुरु-गुरु ज्ञान, अनुभव प्रथक्करण व निरीक्षण के साथ तत्व ज्ञान की अभिव्यक्ति करने वाला होता है। शनि-शनि कुशल प्रशासन व सत्ता में महत्व बढ़ाने वाला होता है। एक उत्तम प्रबंधक में उपरोक्त ग्रहों के गुणों का समावेश होना चाहिए।

कुशल प्रबंधन में मिथुन, धनु, सिंह, कुंभ, वृषभ, मकर लग्न विशेष महत्व रखती है। प्रबंधन में लग्नेश, पंचमेश भाग्यदेश, पराक्रमेश, चतुर्थेश एकादशेश, धनेश एवं दशमेश का बलवान होना बहुत महत्वपूर्ण रखता है। यदि लग्नेश बलवान हुआ तो वह जातक की कार्यक्षमता में वृद्धि करेगा। बाकी स्थानों का अपनी-अपनी जगह विशेष महत्व होता है यथा पंचम बुद्धि का, भाग्यदेश (नवम) भाग्यशाली, दशम कर्मेश कार्य का, तृतीय पराक्रम का, चतुर्थ जनता व कुर्सी का वो जहां बैठा है, द्वितीय भाव धन की बचत का व एकादश भाव आय का होता है।

यदि लग्नेश बली होकर लग्न में बैठा है जैसे मिथुन लग्न हो तो बुध लग्न में होना चाहिए। यदि धनु लग्न हो तो गुरु लग्न में हो या चतुर्थ भाव में हो या दशम भाव में हो, सिंह लग्न हो या सूर्य लग्न में हो या उच्च होकर नवम में हो या मंगल नवम में हो, कुंभ लग्न हो तो शनि नवम भाव में उच्च का हो या मकर राशि में हो, वृषभ लग्न हो और शुक्र लग्न में हो तो लग्न बलवान माना जाएगा। लग्नेश दशम में हो या दशमेश लग्न में हो और कर्मेश कर्मभाव में (दशम) में हो या उस स्थान पर उच्च का ग्रह हो। लग्नेश भाग्य (नवम) में हो लाभेश धनेश में हो या धनेश लाभेश में राशि परिवर्तन योग हो यह योग धनु लग्न में उत्तम होता है। लग्न में बुध हो या गुरु, सूर्य, शनि, मंगल भी हो सकता है। लेकिन यह गृह स्वराशि का मित्र राशि या उच्च के होना चाहिए। भाग्येश कमेश में हो, कमेश भाग्य में हो नवम भाव का स्वामी दशम में हो व दशम भाव का स्वामी नमव में हो व लग्नेश पंचम में हो व पंचमेश नवम में हो ऐसा जातक उत्तम प्रबंधक होता है। लग्नेश दशम में हो व दशमेश लग्न में हो व पंचमेश की युति या दृष्टि लग्न पर पड़ रही हो तब भी मैनेजमेंट में उत्तम सफलता पाता है। यहां पर तीन उदाहरण कुंडली दी जा रही है जो कुशल संस्थापक व प्रबंधक रहे हैं।

1. एक कुशल प्रबंधक जो दैनिक समाचार-पत्र में कार्यरत हैं। इनकी लग्न मिथुन है। लग्न में जनता व कुर्सी भाव का स्वामी लग्न में स्वराशि का होकर पंच महापुरुष में से एक योग भद्रयोग का निर्माण कर रहा है, वहीं कर्मभाव में पंचम भाव व द्वादश पंचम विद्या बुद्धि व द्वादश बाहरी भाव विदेश भाव व ऋण भाव का स्वामी शुक्र उच्च का होकर दशम कर्म भाव में बैठा है, अतः ऐसा जातक घाटे वाली संस्था में अत्युत्तम साबित होकर उस संस्था को ऊंचा उठाने में सफल होते हैं। इनकी पत्रिका में मालव्य योग, भद्र योग, नीच भंग, राजयोग एक-दूसरे भाव पर उच्च दृष्टि पड़ रही है।

2. श्री लक्ष्मण राव किर्लोस्कर जो कृषि उपयोग में लगने वाले उपकरणों के संस्थापक की है, कि कुंडली में बुध चतुर्थेश सूर्य पराक्रमेश, शुक्र पंचमेश व द्वादशेश है। वहीं कर्मेश एकादश में व एकाददेश मंगल पराक्रम में बैठा है व शनि भाग्येश होकर मंगल की राशि में बैठा है। अतः इन्होंने अपना भाग्य कृषि उपकरणों को बनाने में आजमाया भी कृषि उद्योग में किर्लोस्कर का नाम चलता है।

3. प्रसिद्ध न्यूज एजेंसी रायटर के संस्थापक श्री पॉल ज्यूलियस रायटर की कुंडली कहती हैं कि इनकी लग्न में उपरोक्तानुसार बुध लग्न है जो भद्रयोग का निर्माण कर रहा है। इन सभी की लग्नेश बली है। यहां पर विशेष विचारणीय बात यह है कि पंचम भाव का स्वामी शुक्र चंद्र की राशि है, वहीं चंद्र शुक्र की राशि में है, जो एक प्रकार राशि परिवर्तन बना रहा है। जिन्हें न्यूज एजेंसी के संस्थापक बनने का सौभाग्य रहा और आज विश्व की सबसे बड़ी न्यूज एजेंसी रायटर है। इस प्रकार यदि जातक के ग्रह योग देखकर प्रबंधक रखे जाएं तो वह संस्था दिनोंदिन उन्नति की ओर अग्रसर होगी।

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