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कौन से चिह्न देते हैं जीवन की शुभता

इन चिह्नों को अपनाएं, जीवन में शुभता लाएं

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हमें फॉलो करें चिह्न

* प्रगति और सफलता के लिए धारण करें यह शुभ चिन्ह

* इन प्रतीकों को धारण करें और पाएं हर दिशा से शुभता

प्रत्येक राशि का चिह्न निर्धारित हैं। उसका अपना महत्व है तथा उसके अनुरूप जातक का व्यवहार रहता है।

मोटे तौर पर यह माना जाता है कि प्रतीक चिह्नों को विशेष धातु चांदी, सोना, तांबा इत्यादि में विशेष काल में ढलवा कर मंत्रित करने के उपरांत धारण करने से उस राशि ग्रह के कुप्रभाव से रक्षा होती है, यह मान्यता है।

राशि चिह्नों के अतिरिक्त कुछ अन्य भी चिह्न हैं, जिनके धारण करने से मनुष्य को उत्तम भाग्य, सर्व सुख प्राप्त होंगे ऐसी मान्यता आदिकाल से चली आ रही है, उदाहरण -



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लंगर- इसे सुरक्षा तथा सुंदर भविष्य हेतु प्रयुक्त किया जाता है।


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एंगल- इसे शास्त्रों के जानकार उत्तम ज्ञान प्राप्ति हेतु धारण करते हैं।


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लौंग- चार पत्तियों वाली लौंग उत्तम भाग्य, कीर्ति, स्वास्थ्य, संपत्ति का संकेत देती है। इसे उत्तम भाग्य तथा सुंदर भविष्य हेतु धारण किया जाता है।


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मछली- इसको मीन राशि का प्रतीक चिह्न माना गया है। इसे संगीत, कला तथा साहित्य के क्षेत्र के जिज्ञासु धारण करते हैं।

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आंख- सूर्य का प्रतीक चिह्न है। बौद्धिकता एवं संपूर्णता हेतु धारण किया जाता है।


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घोड़े की नाल- यह सर्वाधिक मंगलकारी चिह्न है, यह मान्यता है। इसे घर की चौघट पर ठुकवाने से अमंगल प्रवेश नहीं होता है तथा इसी की अंगूठी को शनि की साढ़ेसाती में धारण करने से कठिन समय में आराम मिलता है।


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चाबी- प्रेम तथा उत्तम स्वास्थ्य का प्रतीक चिह्न है।


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सर्प- हिन्दुओं में इसे भगवान के रूप में पूजा जाता है एवं सूर्य के पश्चात यह प्रत्यक्ष देव है। देवाधिदेव महादेव के गले में आभूषण बने, विष्णु की भी शैया बने तथा श्रीकृष्ण ने इन पर नर्तन किया है।

इस प्रतीक चिह्न को धारण करने से मंगल होता है तथा वैद्यराज, डॉक्टर इसे उत्तम ज्ञान हेतु धारण करते हैं। संतान के कष्ट निवारण के रूप में भी इनका प्रयोग किया जाता है। इनकी अंगूठी बनवाकर सूर्य धारण किया जाता है।

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स्वस्तिक- हिन्दुओं का सर्वाधिक पूजनीय चिह्न यह मंगलमय देव ग‍णपतिजी का चिह्न है। सर्वमंगल हेतु इसे धारण करने की मान्यता है। इसे चांदी से बनवाना चाहिए। इसे अंगुली (सूर्य) या गले में धारण किया जा सकता है।


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त्रिशूल- यह शक्ति का प्रतीक चिह्न है। इस शक्तिमार्ग के साधक सिद्धि प्राप्ति हेतु धारण करते हैं। यह मंगलकारी त्रिशक्ति, त्रिदेव का प्रतीक चिह्न है।

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ओम- सृष्टि का प्रथम शब्द 'ॐ' है जिसकी उत्पत्ति ब्रह्मा के कंठ को चीरकर होने से इसे ब्रह्मनाद की भी कहा जाता है। अपने आप में अनन्य ऊर्जा समेटे हुए हैं।

इस चिह्न को स्वर्ण अथवा चांदी में उत्तम भाग्य तथा सर्व सुख हेतु धारण किया जाता है।

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क्रॉस- पवित्र ईसा मसीह की सलीब जो बाद में ईसाई धर्म का मानक प्रतीक चिह्न बना। यह चिह्न पवित्र माना जाता है एवं धारक को अमंगल से सुरक्षित रखता है।

इसके अतिरिक्त कई ऐसे प्रतीक चिह्न हैं, जो कि शुभ और मंगलकारी हैं लेकिन सबकी व्याख्या संभव नहीं है।

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