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गर्भाधान व ज्योतिषीय मान्यताएँ

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हमें फॉलो करें गर्भाधान ज्योतिष संतान गर्भपात
- पं. रामचन्द्र शर्मा 'वैदिक'

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जन्म कुंडली में त्रिकोण भावों को सबसे शक्तिशाली माना जाता है। लग्न व्यक्तित्व व व्यक्ति के स्वास्थ्य का भाव है। पंचम भाव बुद्धि, संतान तथा निर्णय क्षमता से संबंध रखता है। नवम भाव भाग्य का है। यह धर्म व चिंतन का भाव भी है। इन्हीं तीनों भावों को 'त्रिकोण' कहा जाता है। तंत्र-साहित्य में 'त्रिकोण' निर्माण तथा सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक है।

पंचम भाव संतान का है तथा इसका कारक बृहस्पति है। जातक के जीवन में संतान तथा भाग्य से इस भाव का गहरा संबंध है। बृहस्पति इसका कारक इसलिए है क्योंकि उसकी यहाँ उपस्थिति अपनी स्थिति व दृष्टि से त्रिकोण पर पूर्ण प्रभाव रखती है।

फलित-ज्योतिष का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है 'भावात्‌ भावम्‌'। अर्थात भाव से भाव तक। जिस भाव पर विचार करना है, उसे लग्नवत मानकर विभिन्न भावों पर विचार। पंचम भाव से पंचम अर्थात नवम भाव भी संतान विचार में महत्वपूर्ण है। नवम से नवम अर्थात पंचम भाव का भी भाग्य से गहरा संबंध है। पंचम को लग्नवत माना जाए तो लग्न भाग्यस्थान तथा भाग्यभाव से लग्न संतान का भाव है। स्वास्थ, संतान तथा भाग्य एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं।

संतान भाग्य से ही प्राप्त होती है। स्वस्थ संतान के लिए माता-पिता का स्वास्थ्य भी महत्वपूर्ण है। चंद्र, मंगल, रवि एवं बृहस्पति 'गर्भाधान' में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, बशर्ते कुंडली में संतान प्राप्ति के योग हों। चंद्रमा तिथि, रवि माह तथा बृहस्पति गर्भाधान का वर्ष बताता है। शनि एवं बृहस्पति की दशा गर्भ को पुष्ट करती है।

स्त्री के मासिक धर्म का संबंध चंद्रमा के भ्रमण तथा मंगल के प्रभाव से है। जन्म कालीन चंद्रमा से 3, 6, 10 या 11वें भाव में चंद्रमा हो तथा मंगल से संबंध हो तब का मासिक धर्म 'गर्भ धारण' का कारण बन सकता है। स्त्री व पुरुष की चंद्र राशि से प्रथम, पंचम, सप्तम या एकादश भाव में गोचरस्थ शनि व बृहस्पति गर्भ की स्थिति निर्मित करते हैं। लग्न से पंचम या नवम भाव से शनि तथा पंचम भाव से बृहस्पति का गोचर गर्भधारण करवा सकता है। मंगल-शुक्र की परस्पर युति या पूर्ण दृष्टि संबंध तथा उसका लग्न, पंचम या एकादश भाव से संबंध गर्भधारण की स्थिति निर्मित करता है।

फलित ज्योतिष में गर्भाधान के अनेक योगों का उल्लेख आया है। इसी तरह गर्भ के सुरक्षित या पुष्ट होने के योग भी प्राप्त होते हैं। गर्भाधान के समय व्यय भाव का स्वामी शुभ ग्रहों की संगति तथा प्रभाव में हो तथा चंद्रमा केन्द्र या त्रिकोण भाव में हो तो गर्भ सुरक्षित रहता है। लग्न पर सूर्य का प्रभाव हो तो बच्चे व माता दोनों सुरक्षित रहते हैं। गर्भाधान के समय रवि लग्न, तृतीय, पंचम या नवम भाव में हो तथा इनके स्वामी से एक भी संबंध हो तो गर्भ सुरक्षित रहता है तथा भाग्यशाली व दीर्घायु मानव जन्म होता है।

पंचम लग्न या एकादश भाव पर प्रसव के समय मंगल व शनि का प्रभाव हो, या इन भावों के स्वामी इन ग्रहों के प्रभाव में हों तब शल्य क्रिया से संतान का जन्म होता है। भारतीय ज्योतिष ने संतान संख्या, संतान का लिंग, संतानोत्पत्ति के समय स्त्री के आसपास का वातावरण, पिता की स्थिति, गर्भाधान के समय माता-पिता की मनःस्थिति पर विस्तार से प्रकाश डाला है। इसके लिए जन्म कुंडली के साथ सप्तमांश व नवांश कुंडली के विभिन्न योगों का फलित ग्रंथों में विस्तार से वर्णन है। 'गर्भपात' संतान चाहने वाले दंपतियों के लिए एक दुःखद स्थिति है। इसके अतिरिक्त समय से पूर्व अविकसित प्रसव भी कष्टदायक है। फलित ज्योतिष ने इस विषय पर भी प्रकाश डाला है।

लग्न या सप्तमांश कुंडली के पंचम भाव पर राहु एवं मंगल का संयुक्त प्रभाव बार-बार गर्भपात करवाता है। गर्भपात के समय पंचम भाव पाप-कर्तरी योग में हो या पंचम भाव या उसका स्वामी राहु-मंगल के संयुक्त प्रभाव में हो तब भी गर्भपात की स्थिति बन सकती है। गर्भाधान के समय लग्नव चंद्र लग्न के स्वामी ग्रहों का गोचरीय षडाष्टक योग हो तथा चतुर्थ भाव में पाप ग्रह हो तो भी गर्भपात होता है। 6 एवं 8 वें भाव के स्थायी ग्रह की अंतरदशा या प्रत्यंतर दशा में गर्भाधान न ही करें तो सुखद होगा।

प्रथम भाव का कमजोर होना तथा पंचम भाव पर राहु तथा व्यय पर शनि का प्रभाव 'गर्भ' को कमजोर करता है। पंचम व सप्तम भाव में पापग्रह तथा अष्टम भाव पर मंगल का प्रभाव गर्भपात करवा सकता है।

ज्योतिष की अपनी सीमाएँ हैं। वह केवल मार्गदर्शन कर सकता है। ग्रहजनित पीड़ा के उपाय बता सकता है लेकिन भाग्य तो भाग्य है। मार्गदर्शन व भावी संभावना का आभास देकर ज्योतिष गर्भपात को रोकने में मदद कर सकता है। यही कारण है कि भारत में संतानोत्पत्ति एक प्रमुख संस्कार है तथा इसके लिए विधिवत मुहूर्त की व्यवस्था भी है।

गर्भपात अगर ग्रहों के गोचर व दशाओं के कारण संभावित है तो उसे रोका जा सकता है। सर्वप्रथम डॉॅक्टर की सलाह मानें। पंचम भाव के स्वामी तथा बृहस्पति का रत्न धारण करें। संतानोत्पत्ति कार्य को धर्म व उद्देश्य मानें तथा संयोग के समय मन में किसी तरह के कुविचार वअशांति न लाएँ। बहुधा लड़ाई-झगड़ों का अंत शैया पर होता है तथा इससे जो संतान भविष्य में आएगी, उस पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। बार-बार गर्भपात की स्थिति में चांदी के सर्प का पूजन करें। संतान गोपाल महामंत्र का निरंतर जप करें। श्रीकृष्ण का पूजन मन को शांति देता है। आगे भगवदिच्छा गरीयसी।

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