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जब सूर्य हो अष्टम भाव में

बाहरी संबंधों में बाधा का कारण

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हमें फॉलो करें अष्टम सूर्य
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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

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अष्टम भाव आयु, दुर्घटनाओं, विपरीत राजयोग, सेक्स का भाव, गुप्त रोगादि का माना जाता है। यहाँ से पूर्व जन्म का लेखाजोखा भी देखा जाता है। इस भाव से जलीय यात्रा का भी विचार किया जाता है। इस भाव में स्वक्षेत्री सूर्य बैठे तो उसको स्वछंद बना देता है। ऐसा सूर्य स्त्री के लिए ठीक नहीं होता, बदनामी का कारण भी बन सकता है। वैसे अष्टम दोष सूर्य को नहीं लगता फिर भी ठीक नहीं होता। मेष का सूर्य द्वादश होने से बाहरी संबंधों में बाधा का ारण बनता है।

यदि मंगल सूर्य की राशि सिंह में हो तो विपरीत राजयोग देने से ऐसा जातक अपनी बुलंदियों तक पहुँच जाता है। एकादशेश सूर्य अष्टम में हो तो आय के मामलों मे बाधा का कारण बनता है। मिथुन का सूर्य दशमेश होने से व्यापार-व्यवसाय में, पिता से, अधिकारी वर्ग से कष्टकारक रहता है। भाग्येश सूर्य अष्टम में सम कर्क की राशि में होने के कारण कुछ कम हानिप्रद रहता है, फिर भी भाग्योन्नति में बाधा हो तो उस जातक को उत्तम माणिक पहनना चाहिए। कन्यागत सूर्य हो तो दाम्पत्य जीवन में बाधा का कारण बनता है। उसका जीवनसाथी रोगी रहता है।

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षष्टेश सूर्य अष्टम में नीच का होने से उस जातक को कर्जदार बनाएगा, उसे नाना, मामा से भी कष्ट रहेगा। वृश्चिक का सूर्य अष्टम में पंचमेश होने से विद्या, सन्तानादि के मामलों में बाधा का कारण बनता है। चतुर्थेश सूर्य अष्टम में धनु का मित्र राशि पर होने से कुछ राहत अवश्य देगा लेकिन माता को कष्ट, मकान, सुख में कमी लाता है। तृतीयेश मकर का सूर्य भाई, साझेदारी व शत्रु से कष्टकारी रहेगा।

कुंभ का अष्टम भावगत द्वितीयेश होने से धन कुटुम्ब से परेशानी का कारण बनता है। ऐसे जातक में वाणी का भी दोषी रहता है। यदि अशुभ फल मिलते हो तो मकान का द्वार दक्षिण दिशा में न रखें व गुड़ व गेहूँ आठ दिनों तक लगातार मन्दिर में चढ़ाएँ। इस प्रकार सूर्य के अशुभ प्रभाव में कमी महसूस करेंगे।

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