-
पं. अशोक पंवार 'मयंक'
दशम भाव का स्वामी अन्य भाव में होने से फल कथन में बदलाव आ जाएगा। यदि दशमेश लग्न में हो तो ऐसा जातक पिता का आज्ञाकारी एवं उनकी सेवा करने वाला होगा। मातृपक्ष से थोड़ा वैमनस्य रखने वाला होगा।
दशम भाव का स्वामी अशुभ हुआ तो पिता की मृत्यु छोटी आयु में ही हो जाती है। ऐसे जातक का जीवन पूर्वार्ध में कष्टमय व्यतीत होता है लेकिन आयु जैसे-जैसे बढ़ती जाती है वैसे-वैसे जातक सुखी होता जाता है। ऐसा जातक विद्वान, धनी, कवि एवं विख्यात होकर समाज और जाति में सम्मानित होकर यशस्वी होता है।
यदि दशम भाव का स्वामी द्वितीय भाव में हो तो वह लोभी वृत्ति का होता है। माता का इसके प्रति विशेष स्नेह होता है तथा वह जातक की सुख-सुविधाओं का ध्यान रखती है लेकिन इतने पर ही जातक प्रसन्न नहीं रहता, बल्कि माता में दोष ढूँढता रहता है। इसमें आलस्य अधिक होता है।
यदि दशमेश शुभ ग्रह हो तो उसे पिता का पूर्ण सुख मिलता है। वह पैतृक धन-संपदा का स्वामी होता है। ऐसा जातक राज्यपक्ष में मान-सम्मान पाने वाला होता है। यदि दशमेश की स्थिति तीसरे स्थान पर हो तो प्रायः अशुभ फल मिलते हैं, कारण इस अवस्था में दशमेश अपने स्थान से छठे स्थान में स्थित होता है। ऐसे जातक का अपने सहोदरों एवं कुटुंबीजनों से विरोध रहता है। उसे प्रत्येक कार्य में असफलता ही मिलती है।
यदि दशमेश शुभ ग्रह हो तो भाइयों, मित्रों एवं सहकर्मियों का पूर्ण सुख मिलता है। ऐसा जातक सत्यभाषी, पराक्रमी, सद्गुणयुक्त एवं सर्वसुख संपन्न होता है। यदि दशमाधिपति चतुर्थ स्थान में हो तो वह सभी सुखों को पाने वाला होता है। ऐसा व्यक्ति सदाचारी तथा माता-पिता की सेवा करने वाला होता है। उसे समाज एवं जाति में सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है तथा वाहन एवं गृह का भी उसे पूर्ण सुख मिलता है। उसे राज्यपक्ष से धन-मान की प्राप्ति होती है। पिता से लाभ पाने वाला राजनीति में सफल, जनता की रुचिनुसार चलने वाला होकर प्रसिद्ध होता है।
यदि दशम भाव का स्वामी पंचम भाव में स्थित हो तो ऐसा जातक सद्कर्मों को करने वाला, माता का पूर्ण सुख पाने वाला, राज्यपक्ष से मान पाने वाला, गाने-बजाने का शौकीन, मनोरंजन के प्रति रुझान वाला, पुत्रों से सुखी, पुत्रों द्वारा यश पाने वाला होता है। यदि दशमेश अशुभ हुआ तो जीवन नारकीय बन जाता है। यदि दशमेश छठे भाव में हुआ तो वह कलह करने वाला शत्रुभय से त्रस्त, आपदा के समय साहसहीन होता है। पिता के सुख से वंचित या बैर रखने वाला होता है तथा बाल्यावस्था कष्टमय व्यतीत होती है। चालाक होते हुए भी शत्रुओं के कुप्रभावों से बच नहीं पाता व धन से दुःखी होकर ऋणी रहता है।
दशमेश सप्तम जया भाव में हुआ तो उसकी स्त्री गुणवान, रूपवान, धर्मपरायण, शुभ गुणों से संपन्न, पति के साथ कदम मिलाकर चलने वाली होती है। यह सत्यप्रिय, सास-ससुर व परिवार के अन्य सदस्यों की सेवा करने वाली होती है। ऐसा जातक स्वयं भी स्वधर्म का पालन करने वाला, आगंतुकों का आदर करने वाला, ससुराल से लाभ पाने वाला होगा। यदि दशम भाव का स्वामी अशुभ, नीच राशि या शत्रु राशि का हुआ तो विपरीत फल देने वाला होगा। यदि दशमेश अष्टम भाव में हो तो जातक झूठ बोलने वाला एवं अपनी माता को सुख देने वाला होता है। स्वभाव से क्रूर एवं कपटी भी होता है। जाति व समाज में निन्दा पाने वाला पूर्व जन्म के कर्मों का फल पाने वाला भी होता है।
यदि दशमेश शुभ हुआ तो दीर्घायु व सम्मान पाने वाला, सुखी होता है। यदि दशमेश नवम भाव में हो तो जातक का कुटुंब परिवार संयुक्त होता है। यदि अलग भी रहे तो जातक परिवार की मदद करता है। ऐसे जातक सामाजिक, राजनीतिक प्रतिष्ठा पाने वाले होते हैं। यह उत्तम स्वभाव वाला एवं उसके अच्छे मित्र होते हैं। उसकी माता सुशील, धर्मपरायण, सुंदर गुणवती होती है। यदि दशमेश अशुभ ग्रह हो तो पिता के सुख से वंचित व अनेक कष्टों को पाने वाला होता है।
यदि दशमेश दशम भाव में स्वग्रही हुआ तो माता का सुख पाने वाला, ननिहाल से सुखी, पिता का भक्त, ऐसा जातक राजसुख पाने वाला, भाग्यशाली, देवगुरु, ब्राह्मणों की विधिपूर्वक सेवा करने वाला, राज्य पद, मान-सम्मान पाने वाला होता है। ऐसा जातक सभी सुख को पाने वाला होता है। यदि दशम भाव का स्वामी अशुभ हुआ तो सभी सुखों से वंचित होता है।
यदि दशम भाव का स्वामी एकादश भाव में हुआ तो उसकी माता दीर्घजीवी एवं सत्कर्मी होगी। उद्योग एवं व्यापार में उसे सफलता मिलती है तथा धन-मान प्राप्त कर यशस्वी होता है। पुत्र-पौत्रादि का सुख पाने वाला व पूर्ण सुखी होता है। यदि दशमेश की स्थिति अशुभ हुई तो सभी विपरीत फल मिलते हैं। दशम भाव का स्वामी द्वादश भाव में हो तो व्यापार-व्यवसाय, राजकाज में व्यस्त, माता से विरक्त, पिता से उसे कुछ भी लाभ नहीं मिलता। स्वप्रयत्नों से सफलता पाने वाला, स्वाभिमानी होता है। यदि दशमेश अशुभ हुआ तो दाम्पत्य जीवन सुखी नहीं रहता। द्वितीय विवाह भी हो सकता है।