ज्योतिष है वेदों का विज्ञान
ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। यूरेनस को एक राशि में आने के लिए 84 वर्ष, नेप्चून को 1648 वर्ष तथा प्लूटो को 2844 वर्षों का समय लगता है।हमारे सौर मंडल में सभी ग्रहों के मिलाकर 64 चंद्रमा खोजे गए हैं और असंख्य उल्काएँ सौर्य पथ पर भ्रमण कर रही हैं। अभी खोज जारी है, संभवत: चंद्रमा और उल्काओं की संख्याएँ बढ़ेंगी।वेदों में ज्योतिष के जो श्लोक हैं उनका संबंध मानव भविष्य बताने से नहीं वरन ब्रह्मांडीय गणित और समय बताने से है। ज्यादातर नक्षत्रों पर आधारित और उनकी शक्ति की महिमा से है। इससे मानव के वर्तमान और भविष्य पर क्या फर्क पड़ता है, यह स्पष्ट नहीं।
वेदों के उक्त श्लोकों पर आधारित आज का ज्योतिष पूर्णत: बदलकर भटक गया है। कुंडली पर आधारित फलित ज्योतिष का संबंध वेदों से नहीं है। भविष्य कथन के संबंध में वेद कहते हैं कि आपके विचार, आपकी ऊर्जा, आपकी योग्यता और आपकी प्रार्थना से ही आपके भविष्य का निर्माण होता है। इसीलिए वैदिक ऋषि उस एक परम शक्ति ब्रह्म (ईश्वर) के अलावा प्रकृति के पाँच तत्वों की भिन्न-भिन्न रूप में विशेष समय, स्थान तथा रीति से स्तुति करते थे।जो भी ज्योतिष या ज्योतिष विद्या नकारात्मक विचारों को बढ़ावा देकर भयभीत करने का कार्य करते हैं, उनका वेदों से कोई संबंध नहीं और जिनका वेदों से कोई संबंध नहीं उनका हिंदू धर्म से भी कोई संबंध नहीं। इसीलिए वर्तमान ज्योतिष विद्या पर पुन: विचार करने की आवश्यकता है।ज्योतिष अद्वैत का विज्ञान है। इस विज्ञान को सही और सकारात्मक दिशा में विकसित किए जाने की आवश्यकता है। यदि आप ज्योतिष विद्या के माध्यम से लोगों को भयभीत करते रहे हैं तो समाज अकर्मण्यता और बिखराव का शिकार होकर वेदोक्त ईश्वर के मार्ग से भटक जाएगा और कहना होगा कि भटक ही गया है।