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दो दिन मनाई जाएगी श्रीकृष्‍ण जन्माष्टमी

इस साल भी पड़ रही हैं दो अष्टमी

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भगवान श्रीकृष्ण का चरित्र मानव को धर्म, प्रेम, करुणा, ज्ञान, त्याग, साहस व कर्तव्य के प्रति प्रेरित करता है। भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को देश व विदेश में कृष्ण जन्म को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। उनका जन्म बुधवार को मध्यरात्रि में हुआ। उनके जन्म के समय वृषभ लग्न था व चंद्रमा वृषभ राशि में था। रोहिणी नक्षत्र में जन्मे कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन विविध लीलाओं से युक्त है।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्र कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ। इसलिए श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व रोहिणी नक्षत्र में ही मनाए जाने की परम्परा है। इस वर्ष भी दो अष्टमी पड़ रही हैं। इसलिए जन्माष्टमी का पर्व 21 व 22 अगस्त को मनाया जाएगा। 21 अगस्त को प्रातः 10 बज कर 31 मिनट पर अष्टमी प्रारंभ हो रही है जो 22 अगस्त को दिन में 11 बजकर 55 मिनट तक रहेगी।

रविवार 21 अगस्त को स्मार्त व शैव मतावलंबी व सोमवार, 22 अगस्त को वैष्णव मतावलंबी कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे। सोमवार 22 अगस्त को उदया तिथि अष्टमी में ही मध्य रात्रि रोहिणी नक्षत्र रहेगा। साथ ही चंद्रमा भी वृषभ राशि में रहेगा। इन दो संयोगों के कारण 22 अगस्त को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाना उचित है।

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अभीष्ट कामना सिद्धि का दिन जन्माष्टमी के दिन अपने पापों के शमन व अभीष्ट कामना सिद्धि का संकल्प लेकर व्रत धारण करना चाहिए। इस दिन प्रातःकाल तिल को जल में मिला कर स्नान करने का शास्त्रों में उल्लेख किया गया है।

स्नान के बाद शुभ्र वस्त्र धारण कर भगवान कृष्ण का ध्यान कर षोडशोपचार अर्थात शास्त्रों में उल्लेखित 16 विधियों से भगवान का पूजन-अर्चन करना अच्छा होता है। इस दिन निराहार व्रत कर कृष्ण के नाम का जप करना चाहिए।

रात्रि में भगवान के जन्म के समय शंख, घंटा, मृदंग व अन्य वाद्य बजाकर भगवान का जन्म उत्सव मनाना चाहिए। जन्म के बाद उन्हें धनिया-शक्कर की पंजीरी, मक्खन व खीर का भोग लगाना चाहिए। व्रत के दूसरे दिन व्रत का पारण कर मंदिरों में ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, रजत, स्वर्ण व मुद्रा दान करना चाहिए।

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