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धनु लग्न में सूर्य मंगल

लग्न में हो तो भाग्यवृद्धि

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

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धनु लग्न गुरु प्रधान होने के साथ-साथ द्विस्वभाव लग्न है। धनु लग्न वाले जातक मिलीजुली कद-काठी के होते हैं। ये ईमानदार छवि के होते हैं। इनकी महत्वाकांक्षाएँ भी अधिक होती हैं। इनका स्वभाव गुरु की स्थिति पर निर्भर करता है।

गुरु यदि लग्न में हों तो गोल चेहरा व गेहुँआ रंग लिए होते हैं। स्वभाव से ईमानदार, प्रसन्नचित्त रहने वाले भी होते हैं। ऐसे जातक धर्म-कर्म को मानने वाले ईश्वरभक्त होते हुए विद्वान होते हैं। गुरु लग्न में पंचमहापुरुष योग में से एक हंस योग गुरु के केंद्र में स्वराशिस्थ होने से बनता है। गुरु के पंचम भाव पर मि‍त्र मंगल की राशि मेष पर होने से विद्या में उत्तम होते हैं।

संतान का सुख देरी से मिलता है। सप्तम बुध की राशि मिथुन पर पड़ने से पत्नी या पति का स्वभाव ठीक व सरल होता है, लेकिन सुंदर अधिक नहीं होता। गुरु की नवम दृष्टि सूर्य की सिंह राशि पर अतिरिक्त पड़ने से भाग्यशाली होकर धर्म-कर्म को जानने वाले यशस्वी होते हैं। गुरु यदि नीच का हो तो धन की बचत नहीं होती, व्यर्थ खर्च में व्यय होता है।

कुटुम्बीजन इनके धन का उपयोग करते हैं। कुछ व्यसनी भी हो सकते हैं। माता, भूमि, भवन से विशेष लाभ नहीं मिलता, लेकिन आयु के मामलों में भाग्यशाली होते हैं। गुरु पंचम में हो तो विद्या स्वप्रयत्नों से उत्तम हो। मंगल लग्न में हो तो धन अच्छा रहे। नवमेश सूर्य लग्न में हो तो ऐसा जातक भाग्यशाली होता है व भाग्य सदैव साथ देता रहता है। पंचमेश मंगल नवम में हो व नवमेश पंचम में लग्नेश लग्न में हो तो ऐसे जातक धन-संपत्तिवान, भाग्यवान, धर्मनिष्ठ, विद्यावान होते हैं। यश की इन्हें कोई कमी नहीं होती।

इस लग्न में गुरु-मंगल-सूर्य की स्थिति यदि लग्न में हो तो चतुर्थ में हो तो लक्ष्मीनारायण योग होने से ऐसे जातक लक्ष्मीपुत्र होते हैंधन-धान्य, वाहनादि से युक्त होकर यशस्वी होते हैं। ऐसे जातक प्रशासक, राजदूत, राजनीति में अग्रणी, मंत्री जैसे पद तक पहुँचने वाले होते हैं। पंचमेश द्वादश में स्वराशिस्थ होकर बैठा हो तो ऐसे जातक विद्या अध्ययन के लिए विदेश जाते हैं। लग्नेश गुरु द्वादश में हो तो माता से, बाहरी व्यक्तियों से, विदेश से या जन्मस्थान से दूर जाकर अच्छी सफलता अर्जित करते हैं। आयु उत्तम होती है।

धनु लग्न में यदि शनि उच्च का हो व शुक्र एकादशेश धन द्वितीय भाव में हो तो ऐसे जातक अपने जीवन में धनाढ्‍य बनते है। पंचमेश मंगल उच्च का हो तो विद्या भी अच्छी मिलती है। कुटुम्बियों का सहयोग भी रहता है। सप्तमेश, दशमेश बुध धन कुटुम्ब में हो तो पत्नी या पति से अच्छा धनलाभ होता है। ससुराल पक्ष भी मजबूत होता है। पिता से लाभ रहता है।

एक उदाहरण- कुंडली में जो धनु लग्न में जन्मा होकर लग्न में गुरु है वहीं पंचमेश मंगल लग्नस्थ गुरु को देख रहा है। मांगलिक होते हुए भी मंगल दोष नहीं लगता। गुरु लग्न में होने से जातक का चेहरा गोल, गेहुँवे रंग का है। गुरु की पंचम चंद्र पर पंचम दृष्टि गजकेसरी योग बना रही है। वहीं भाग्य पर मित्र दृष्टि इस प्रकार देखा जाए तो ऐसा बालक विद्यावान, सम्पत्तिवान, यशस्वी होगा।

मंगल की सप्तम से उच्च दृष्टि व सप्तमेश का द्वितीय में होना पिता, पत्नी से लाभकारी बनाएगा। भाग्येश सूर्य शनि की मकर राशि पर व शनि भाग्य में होने से राशि परिवर्तन राजयोग बनता है। इस बालक की पत्रिका में कई राजयोग हैं- जैसे गजकेसरी योग, हंस योग, लक्ष्मीनारायण योग, राशि परिवर्तन राजयोग। धनु लग्न वालों के लिए पुखराज, माणिक, मूँगा पहनना शुभ रहेगा। जब गुरु, मंगल, सूर्य शुक्र स्थित हो।

शुभ रंग पीला, सुनहरी, लाल। शुभवार गुरु, रवि, मंगल। शुभ तारीख 3, 1, 9 इनके जोड़ वाली भी। शुभ दिशा पूर्व रहेगी। इनके अच्छे मित्र मेष, मिथुन, सिंह, राशि वाले होंगे। गुरु मंगल सूर्य की महादशा या इनकी अंतर्दशा उत्तम रहेगी। शनि व बुध मारक रहेंगे। अत: नीलम व पन्ना नहीं पहनें।

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