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मौसम के पूर्वानुमान के प्राचीन रोचक नुस्खे

कृषि मौसम विशेषज्ञ थे घाघ और भड्डरी

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आजकल हमें विभिन्न स्रोतों से मौसम के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है, परंतु प्राचीनकाल में मौसम की जानकारी पुराने अनुभवों और कहावतों के आधार पर ही प्रचलित थी, जो कई मामलों में बिलकुल सटीक बैठती थी।

घाघ और भड्डरी की कहावतें हमारे देश में खासी प्रचलित है। घाघ और भड्डरी कृषि मौसम विशेषज्ञ महानतम कवि थे। उन्होंने खेती-किसानी के अलावा सेहत, समाज, विज्ञान, शगुन-विचार, जैसे सभी सरोकारों पर अपने अनुभवों का सार जनता के लिए प्रस्तुत किया।

मौसम के संबंध में घाघ और भड्डरी की कहावतें प्रस्तुत हैं-

शुक्रवार की बादली शनिचर छाय।
ऐसा बोल भडुरी बिन बरसे नहीं जाय

(शुक्रवार के दिन होने वाले बादल आकाश में शनिवार तक ठहर जाएं तो वर्षा अवश्य होगी।)

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अषाढ़ सुदी हो नवमी, ना बादल ना वीज।
हल फारो इंधन करो, बैठो चाबो बिज

(यदि आषाढ़ शुक्ल पक्ष नवमी को आकाश में बादल-बिजली कुछ नहीं हो तो वर्षा बिलकुल नहीं होगी और सूखा पड़ेगा।)


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सुधी अषाढ़ में बुध को, उदय भयो जी देख।
शुक्र अस्त सावन लखो, महाकाल अब रेख

(यदि आषाढ़ शुक्ल पक्ष में बुध उदय हो और सावन में शुक्र अस्त हो तो महा अकाल पड़ेगा)।


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सावन करे प्रथम दिन उगन न दिखे भान।
चार महीना
पानी बरसे, जानो इसे प्रमान।

(श्रावण वदी प्रतिपदा को यदि सूर्य नहीं निकले तो समझो कि चार महीने तक अच्‍छी वर्षा होगी।)


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सावन शुक्ल सप्तमी, छिपी के उगे भान।
जब लगि मेघ बरिसि है, तब लगि देव उठान

(श्रावण शुक्ल पक्ष सप्तमी के नि यदि सूर्य आकाश में नहीं दिखाई दे अर्थात बादलों में घिरा रहे तो निश्चित मानो कि देव उठनी ग्यारस तक वर्षा होगी।


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आमा सामा बादला, पूरब पश्चिम जाय।
पंच मिलावा माघजी, दस दिन झड़ी लगाय।

(पूर्वी और पश्चिमी हवा एकसाथ चले और आकाश में मंडराते बादल आमने-सामने अर्थात पूर्व से पश्चिम और पश्चिम से पूर्व की ओर जाएं तो समझो दस दिन की लंबी झड़ी लगेगी)।



पप्पयो पिऊ-पिऊ करे, मोरा घणी अजग्ग।
छम करे मोरयो सिरे, नदियां बहे अथग्य।

(पपीहा पिऊ-पिऊ की रट लगाए और मोर बुलंद आवाज में बोले तथा नाचते समय अपने पंख फैलाकर पंखों का छत्र बनाए तो नदी-नाले जल से भरपूर रहेंगे अर्थात वर्षा अच्‍छी होगी)।



ढेले ऊपर चील जो बोले
गली-गली में पानी डोले

(यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझो कि इतना पानी बरसेगा कि गली-गली में भर जाएगा।)



आदि न बरसे आर्द्रा, हस्त न बरसे निदान।
कहे भड्डरी सुनो घाघ, किसान भये पिसान।

(यदि आर्द्रा नक्षत्र के प्रारंभ में और हस्त नक्षत्र के अंत तक वर्षा नहीं हो तो किसान पिस जाएंगे अर्थात अकाल पड़ेगा।)

घाघ और भडुरी की मौसम की कहावतों के अलावा भी वर्षा के पूर्वानुमान के बारे में कई और धारणाएं प्रचलित हैं, जैसे यह कि फागुन वदी तृतीया को बादल व हवा हो तो अश्विन शुक्ल में तृतीया से षष्ठी तक वर्षा योग बनता है। फागुन माह की अमावस्या व पूर्णिमा को गुरुवार हो तो गरीब सुखी रहते हैं।

चैत्र एकादशी को बादल गरजकर वर्षा हो तो सावन-भादो में कम वर्षा होती है। आषाढ़ सुदी अष्टमी, नवमी व पूर्णिमा को बादल छाएं और गरजें तो वर्षा सब प्रकार से उत्तम होती है। आषाढ़ वदी अष्टमी को चंद्रमा बादल में दिखाई दे तो यह अच्छी वर्षा का संकेत है

(समाप्त)

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