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लाल किताब- लग्नस्थ केतु

क्या कहती है लाल किताब लग्नस्थ केतु के बारे में

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केतु आकाश मंडल में दिखने वाले ग्रहों में से नहीं है। यह एक छाया ग्रह है। केतु को झंडे (पताका) का रूप भी माना जाता है। यह अत्यंत बलवान और मोक्षप्रद भी माना गया है। केतु धनु मतांतर से वृश्चिक राशि में उच्च का माना गया है, वहीं मिथुन मतांतर से वृषभ राशि में नीच का माना जाता है।

इस ग्रह का विशेषाधिकार पैरों के तलवों पर रहता है। यह नपुंसकलिंगी व तामस स्वभाव का है। यह गुरु के साथ सात्विक एवं चंद्र व सूर्य के साथ रहने का शत्रुवत व्यवहार करता है। अकेला केतु दृष्टिहीन होता है, न ही इसकी कोई अपनी दृष्टि होती है। यह मान्यता मैंने अपने अनुभवों से पाई है। केतु जिस ग्रह के साथ होता है, उन ग्रहों की दृष्टि अनुसार ही इसका प्रभाव होता है।

यह ग्रह सदैव वक्री रहता है। यह जन्म कुंडली में जहाँ होता है, ठीक वहीं से सातवीं राशि पर राहू होता है। केतु की मित्र राशियाँ मिथुन, कन्या, धनु, मकर और मीन हैं एवं शत्रु राशि कर्क, सिंह है। केतु दुर्घटना का कारक होकर अंगभंग या ऑपरेशन जैसी स्थिति भी करवा देता है। केतु क्रूर ग्रह है अतः त्वचा का रोग भी देता है।

इसकी शुभ दशा में आकस्मिक धनलाभ भी मिलता है। अशुभ दशा में अकस्मात धनहानि, एक्सीडेंट, ऑपरेशन, पदच्युत होना, सत्ता से हाथ धोना, व्यापार में हानि होकर कंगाल की स्थिति भी बना देता है। नीच का केतु बंधु-बाँधवों से विरोध कराता है व धन कुटुम्ब से असहयोग का कारक बनता है। प्रत्येक कार्य में हानि व असफलता का मुँह देखना पड़ता है।

लग्न में केतु 48 वर्ष से प्रभावी माना गया है। लग्न में केतु व द्वादश भाव में मंगल हुआ तो केतु का प्रभाव कभी बुरा नहीं होता। प्रथम भाव पर मंगल या सूर्य का प्रभाव रहा, तब भी केतु का बुरा असर नहीं रहेगा। जन्म पत्रिका में केतु की स्थिति कैसी भी मंदी स्थिति में हो लेकिन गुरु उच्च या मित्र या स्वराशि का होने पर गुरु का उत्तम प्रभाव होगा एवं पिता का मददगार होगा।

केतु दौलत के साथ जातक को भोगी भी बना देता है, यदि लग्न मेंकेतु उच्च का हो तो। लग्नस्थ केतु भारी आवाज लेकिन प्रभावशाली एवं जिद्दी भी बना देता है। व्यापार-व्यवसाय या नौकरी भले ही न हो लेकिन कल की फिक्र भी नहीं होगी, कोई न कोई हल निकल ही जाएगा। शादी के बाद केतु का कुप्रभाव शनि के उपाय करने से दूर होगा व शनि का शुभ प्रभाव होगा। यात्रा का योग बनेगा व तैयारी भी हो जाएगी लेकिन यात्रा नहीं होगी।

शनि व केतु दोनों नीच के हों तो पिता व गुरु दोनों को ही नष्ट कर देता है या इनसे किसी भी प्रकार नहीं बनती। अशुभ प्रभाव को नष्ट करने हेतु केसर का लंबा तिलक लगाएँ। बंदरों को गुड़ खिलाने से भी केतु का अशुभ प्रभाव जाता रहता है। काला या सफेद वस्त्र सुयोग्य को दान दें। इस प्रकार केतु जनित अशुभ प्रभाव से बचा जा सकता है।

इसका रत्न लहसुनिया है। इसे धारण करने से भी केतु का कुप्रभाव नष्ट हो जाता है। हीरा व लहसुनिया साथ कभी भी भूलकर न पहनें, नहीं तो जीवन से हाथ धोना पड़ सकता है।

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