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संपूर्ण वास्तु हैं भगवान श्रीगणेश

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हमें फॉलो करें वास्तु शास्त्र में गणपति
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हिंदू धर्म में भगवान श्री गणेश का अद्वितीय महत्व है। पूजा-पाठ हो या विधि-विधान, हर मांगलिक, वैदिक कार्यों को प्रारंभ करते समय सर्वप्रथम भगवान गणपति का सुमरन करते हैं।

यह बुद्धि के अधिदेवता विघ्ननाशक हैं। गणेश शब्द का अर्थ है गणों का स्वामी। हमारे शरीर में पांच ज्ञानेन्द्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां तथा चार अंतःकरण हैं तथा इनके पीछे जो शक्तियां हैं उन्हीं को चौदह देवता कहते हैं।

गणेश की महत्ता बताते हुए वास्तुविद् मनोज जैन कहते हैं कि जीवन के हर क्षेत्र में गणपति विराजमान हैं। देवताओं के मूल प्रेरक यही हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कि गणपति सब देवताओं में अग्रणी हैं। उनके अलग-अलग नाम व अलग-अलग स्वरूप हैं, लेकिन वास्तु में गणेशजी का बहुत महत्व है। गणेशजी अपने आपमें संपूर्ण वास्तु हैं।

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धर्मग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि गणेशजी की स्थापना व पूजा-पाठ विधि-विधान से की जाए तो नौ ग्रहों का दोष भी आसानी से दूर हो जाता हैं। गणेशजी की सवारी मूषक हो या फिर उनका पहनावा या फिर बात की जाए उनके प्रिय भोग मोदक की। उनके शरीर का हर हिस्सा किसी न किसी ग्रह के दोष को दूर करता है।

हमारे पुराणों में कहा गया है कि हमें श्वेत गणपति की पूजा करनी चाहिए। इससे जीवन में भौतिक सुख एवं समृद्धि का प्रवाह होता है। मूषक जासूसी से सूचनाएं एकत्र करने का प्रतीक है। यह राहु के दोष को भी दूर करता है। गणेशजी के हाथी जैसे मुख की अलग ही मान्यता है। गणेश का गजमुख बुद्धि का अंकुश, नियंत्रण, अराजक तत्वों पर लगाम लगाने का प्रतीक माना जाता है।

ऐसे महान देवाधिदेव श्रीगणेश की हम सही मंत्रोच्चार द्वारा पूजा-अर्चना कर हमारे घर के वास्तु दोष को दूर करके सुखी, संपन्न जीवन पा सकते हैं।

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