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सूर्य की दृष्टि और कुंडली के 12 भाव

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जन्मकुंडली में विभिन्न भावों में बैठे ग्रह विशेष भावों पर दृष्टि रखता हो तो उनका विशेष प्रभाव पड़ता है। सर्वप्रथम सूर्य की दृष्टि का किस भाव में क्या फल मिलता है उस पर विचार किया जाए।

सूर्य यदि लग्न को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो जातक रजोगुणी, नेत्ररोगी, सामान्य धनी, पितृभक्त, एवं राजमान्य होता है।

दूसरे भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो धन तथा कुटुंब से सामान्य सुखी, संचित धननाशक एवं परिश्रम से थोड़े धन का लाभ करने वाला होता है।

तीसरे भाव को देखता हो तो कुलीन, राजमान्य, बड़े भाई के सुख स वंचित, उद्यमी एवं नेता होता है।

चौथे भाव को देखता हो तो 22 वर्ष पर्यंत सुखहानि लेकिन वाहन सुख प्राप्ति एवं सामान्यतः मातृसुखी होता है।

पांचवें भाव को पूर्ण दृष्टि से देखता हो तो प्रथम संताननाशक, पुत्र के लिए चिंतित, 21 वर्ष की आयु में संतान प्राप्त करने वाला एवं विद्वान होता है।

छठे भाव को देखता हो तो जीवनभर ऋणी, 22 वर्ष की आयु में स्त्री के लिए कष्टकारक होता है।
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सातवें भाव में सूर्य की दृष्टि व्यापारी बनाती है, ऐसा जातक जीवन के अंतिम दिनों में सुखी होता है।

आठवें भाव को देखता हो तो रोगी, व्यभिचारी, पाखंडी एवं निंदित कार्य करने वाला होता है।

नौवें भाव को देखता हो तो धर्मभीरू, बड़े भाई और साले के सुख से वंचित होता है।

दसवें भाव को देखता हो तो राजमान्य, धनी, मातृनाशक तथा उच्च राशि का सूर्य हो तो माता, वाहन और धन का पूर्ण सुख प्राप्त करने वाला होता है।

ग्यारहवें भाव को देखता हो तो धन लाभ करने वाला, प्रसिद्ध व्यापारी, बुद्धिमान, कुलीन एवं धर्मात्मा होता है।

बारहवें भाव को देखता हो तो प्रवासी, शुभ कार्यों में व्यय करने वाला, मामा को कष्टकारक एवं वाहन का शौकीन होता है।

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