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पं. जी. एम. हिंगे
मकर संक्रांति को सूर्य के संक्रमण काल का त्योहार भी माना जाता है। एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है। सूर्य जब धनु राशि से मकर पर पहुँचता है तो मकर संक्रांति मनाते हैं।सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। यह परिवर्तन मास में एक बार आता है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व, इसलिए अधिक है कि इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण देवताओं का अयन है। यह पुण्य पर्व है। इस पर्व से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। उत्तरायण में मृत्यु होने से मोक्ष प्राप्ति की संभावना रहती है। पुत्र की राशि में पिता का प्रवेश पुण्यवर्द्धक होने से साथ-साथ पापों का विनाशक है। इस दिन प्रातःकाल उबटन आदि लगाकर तीर्थ के जल से मिश्रित जल से स्नान करें। यदि तीर्थ का जल उपलब्ध न हो तो दूध, दही से स्नान करें। किंतु तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है। स्नान के उपरांत नित्य कर्म तथा अपने आराध्य देव की आराधना करें। |
सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। यह परिवर्तन मास में एक बार आता है। सूर्य के धनु राशि से मकर राशि पर जाने का महत्व, इसलिए अधिक है कि इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाता है। उत्तरायण देवताओं का अयन है। यह पुण्य पर्व है। |
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भगवान भास्कर के दर्शन करके उन्हें अर्घ्य देना चाहिए। ताँबे के लोटे में कुंकु, रक्त चंदन, लाल पुष्प आदि मिश्रित जल से पूर्व मुखी होकर तीन बार सूर्य को जल दें। पश्चात अपने स्थान पर ही खड़े होकर सात परिक्रमा करें। उसके बाद सूर्याष्टक, गायत्री मंत्र तथा आदित्य हृदय स्रोत का पाठ करें। |
पुण्यकाल में दाँत माँजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना व मैथुन काम विषयक कार्य कदापि नहीं करना चाहिए। सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण की ओर से तथा 6 महीने उत्तर की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है। |
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पाठ के बाद देवदर्शन कर देवताओं के निमित्त पूजन सामग्री, मुद्रा आदि चढ़ाएँ तथा गौ एवं पक्षियों को चारा, अनाज, तिल गुड़ आदि खिलाएँ। अपने परिचितों, संबंधियों मित्रों आदि को उनकी पात्रता तथा अपनी क्षमता अनुसार तिल गुड़ से बने खाद्य पदार्थ, खिचड़ी, वस्त्र, सुहाग सामग्री, मुद्रा आदि का दान करें।
ज्योतिष विज्ञान में सूर्य का विशेष महत्व है। सूर्य पूर्व दिशा का पुरुष, रक्त वर्ण, पित्त प्रकृति और क्रूर ग्रह है। सूर्य आत्मा, स्वभाव, आरोग्यता, राज्य और देवालय का सूचक तथा पितृ कारक है। सूर्य आत्मबल का, आत्मविश्वास का कारक है। सूर्य का- नेत्र, कलेजा, मेरुदंड आदि पर विशेष प्रभाव पड़ता है इससे शारीरिक रोग, सिरदर्द, अपचन, क्षय, महाज्वर, अतिसार, नेत्र विकार, उदासीनता, खेद, अपमान एवं कलह आदि का विचार किया जाता है।
सूर्य एक माह में अपनी राशि बदलता है। सूर्य जब भी किसी भी राशि में प्रवेश करता है तो उस दिन को राशि की संक्रांति कहते हैं। मकर संक्रांति को सूर्य के संक्रमण काल का त्योहार भी माना जाता है। एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा एक-दूसरे का मिलना ही संक्रांति होती है। सूर्य जब धनु राशि से मकर पर पहुँचता है तो मकर संक्रांति मनाते हैं।
पुण्यकाल में दाँत माँजना, कठोर बोलना, फसल तथा वृक्ष का काटना, गाय, भैंस का दूध निकालना व मैथुन काम विषयक कार्य कदापि नहीं करना चाहिए। सूर्य पूर्व दिशा से उदित होकर 6 महीने दक्षिण दिशा की ओर से तथा 6 महीने उत्तर दिशा की ओर से होकर पश्चिम दिशा में अस्त होता है। उत्तरायण का समय देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन का समय देवताओं की रात्रि होती है, वैदिक काल में उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन को पितृयान कहा गया है। मकर संक्रांति के बाद माघ मास में उत्तरायण में सभी शुभ कार्य किए जाते हैं।
वृषभ, सिंह, वृश्चिक, कुंभ, संक्रांति विष्णुपद संज्ञक है। मिथुन, कन्या, धनु, मीन संक्रांति को षडशीति संज्ञक कहा है। मेष, तुला को विषुव संक्रांति संज्ञक तथा कर्क, मकर संक्रांति को अयन संज्ञक कहा गया है। महाभारत के युद्ध में जब भीष्म पितामह को मृत्यु शैया पर लेटना पड़ा था, तब अपनी इच्छामृत्यु के लिए उन्होंने इसी उत्तरायण की प्रतीक्षा की थी, इसलिए उत्तरायण पर्व को भीष्म पर्व भी कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन भीष्म पितामह ने शरीर का त्याग किया था।