12 Mah ki 12 Purnima Astorlogy: हिन्दुओं के चंद्रमास के अनुसार एक मास में 30 तिथियां होती हैं और इन 30 तिथियों को 2 पक्ष में विभाजित किया गया है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। एक पक्ष 15 दिन का होता है। कृष्ण पक्ष में अमावस्या आखिरी तिथि होती है और शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा आखिरी तिथि होती है। पूर्णिमा के बाद दूसरे माह का प्रारंभ हो जाता है। वर्ष के 12 माह के अनुसार 12 पूर्णिमा होती है। आओ जानते हैं सभी के नाम और महत्व को।
12 पूर्णिमा के नाम : वैसे तो सभी पूर्णिमा के नाम महीनों के नाम पर ही रखे गए हैं जैसे चैत्र माह की चैत्र पूर्णिमा और फाल्गुन माह की फल्गुन पूर्णिमा। परंतु कुछ पूर्णिमाओं को विशेष नामों से जाना जाता है। सभी पूर्णिमा का महत्व भी अलग अलग होता है।
1. चैत्र : इस दिन भगवान शिव के 11वें रुद्रावतार श्री हनुमान जी का जन्म हुआ था। वैसे मतांतर से कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी हनुमान जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। कुछ लोग से प्रेम पूर्णिमा भी कहते हैं जबकि पतिव्रत मनाया जाता है।
2. वैशाख : इसे वैशाख पूर्णिमा के अलावा बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। वैशाख पूर्णिमा के दिन सूर्य अपनी उच्च राशि मेष में और चांद भी अपनी उच्च राशि तुला में रहता है। मान्यता है कि बैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करके दान पुण्य करने से कुंभ में स्नान के समान पुण्य प्राप्त होता है। इस पूर्णिमा को पीपल पूर्णिमा भी कहते हैं क्योंकि इस दिन पीपल की पूजा करने से ग्रह और पितृ दोष का निवारण हो जाता है। वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन धर्मराज व्रत रखा जाता है।
3. ज्येष्ठ : ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को देव स्नान पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन तीर्थ स्नान, दान और व्रत करने से समस्त कामनाओं की पूर्ति होती है। साथ ही इस दिन विवाहित महिलाएं व्रत कर पति की लंबी आयु के लिए वट, यानि बरगद के पेड़ की उपासना करती है। इसलिए इसे वट पूर्णिमा भी कहते हैं। वट सावित्री का व्रत रखा जाता है। इसके आलावा इस दिन बिल्व पत्रों से उमा-महेश्वर की पूजा की जाती है।
4. आषाढ़ : आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन से लेकर अगले 4 माह तक अध्ययन, ध्यान और साधना के लिए सही समय रहता है। इस दिन महर्षि वेद व्यासजी की पूजा का खास महत्व होने के साथ ही गुरु शिष्य परंपरा के चलते गुरुओं और शिक्षकों का सम्मान किया जाता है। इस दिन कबीर जयंती भी रहती है।
5. श्रावण : श्रावणी पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का त्योहार होता है। भारत के दक्षिण भारत में पश्चिमी घाट सहित सभी समुद्री क्षेत्रों में हिन्दू कैलेंडर अनुसार श्रावण पूर्णिमा को नारियल पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन दोनों क्षेत्रों में दान, पुण्य के साथ गोदान करने से जीवन में चल रही समस्त समस्याओं से छुटकारा मिलता है।
6. भाद्रपद : भाद्रपद महीने की पूर्णिमा को व्रत और स्नान-दान करने से समस्त कष्टों से छुटकारा मिलता है और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। इसके साथ ही 16 दिनों का श्राद्ध पक्ष शुरू हो जाता है। साथ ही महिलाएं इस दिन उमा-महेश्वर का व्रत रखकर शिव और पार्वती की पूजा करती हैं।
7. आश्विन : अश्विनी पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा भी कहा जाता है जिसका खासा महत्व है। इस दिन चांद नीला दिखाई देता है। इस दिन चांद की रोशनी में दूध या खीर रखकर खाने का महत्व है। इस दिन कोजागर व्रत के साथ लक्ष्मी कुबेर की पूजा भी की जाती है। इस दिन के बाद से ही कार्तिक मास के स्नान-दान व्रत नियम आदि प्रारम्भ होते हैं।
8. कार्तिक : इसे कार्तिक के अलावा त्रिपुरारी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन दीपदान और विष्णु पूजा का खास महत्व रहता है। इस दिन को देव दिवाली भी कहा जाता है। इस दिन पुष्कर में मेला लगता है और इस दिन श्री गुरु नानकदेवजी की जयंती भी मनाई जाती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन किया गया दान-पुण्य अक्षय फलों की प्राप्ति कराता है। इसीलिए इस दिन अपनी बहन, भानजे, बुआ के बेटे, मामा को भी दान स्वरूप कुछ न कुछ दान देने से घर में धन-सम्पदा बनी रहती है। पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी का पीपल के वृक्ष पर निवास रहता है।
9. मार्गशीर्ष : मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष माह की इस पूर्णिमा को अगहन पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन गंगा आदि पवित्र तीर्थ स्थलों पर स्नान दान करने से समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
10. पौष : पौष की पूर्णिमा के दिन बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान करना बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है और जैन धर्म में पुष्यभिषेक यात्रा प्रारंभ होती है।
11. माघ : इस दिन दान-दक्षिणा का बत्तीस गुना फल मिलता है। इसलिए इसे माघी पूर्णिमा के अलावा बत्तिसी पूर्णिमा भी कहते हैं। माघ माह में अक्सर कुंभ मेले का आयोजन होता है। माघ की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है।
12. फाल्गुन : फाल्गुनी पूर्णिमा हिन्दू कैलेंडर का अंतिम दिन होती है। इसके अगले दिन से नववर्ष प्रारम्भ हो जाता है। फागुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
30 तिथियां अर्थात चंद्र कलाएं : 1.अमृत, 2.मनदा, 3.पुष्प, 4.पुष्टि, 5.तुष्टि, 6.ध्रुति, 7.शाशनी, 8.चंद्रिका, 9.कांति, 10.ज्योत्सना, 11.श्री, 12.प्रीति, 13.अंगदा, 14.पूर्ण और 15.पूर्णामृत। इसी को प्रतिपदा, दूज, एकादशी, पूर्णिमा आदि भी कहा जाता है। प्रत्येक कला आपके जीवन पर भिन्न प्रकार का प्रभाव डालती है।
खास बातें : पूर्णिमा की रात मन ज्यादा बेचैन रहता है और नींद कम ही आती है। कमजोर दिमाग वाले लोगों के मन में आत्महत्या या हत्या करने के विचार बढ़ जाते हैं। इस दिन किसी भी प्रकार की तामसिक वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। इस दिन शराब आदि नशे से भी दूर रहना चाहिए। इसके शरीर पर ही नहीं, आपके भविष्य पर भी दुष्परिणाम हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन चन्द्रमा का प्रभाव काफी तेज होता है इन कारणों से शरीर के अंदर रक्त में न्यूरॉन सेल्स क्रियाशील हो जाते हैं और ऐसी स्थिति में इंसान ज्यादा उत्तेजित या भावुक रहता है। एक बार नहीं, प्रत्येक पूर्णिमा को ऐसा होता रहता है तो व्यक्ति का भविष्य भी उसी अनुसार बनता और बिगड़ता रहता है। जिन्हें मंदाग्नि रोग होता है या जिनके पेट में चय-उपचय की क्रिया शिथिल होती है, तब अक्सर सुनने में आता है कि ऐसे व्यक्ति भोजन करने के बाद नशा जैसा महसूस करते हैं और नशे में न्यूरॉन सेल्स शिथिल हो जाते हैं जिससे दिमाग का नियंत्रण शरीर पर कम, भावनाओं पर ज्यादा केंद्रित हो जाता है। ऐसे व्यक्तियों पर चन्द्रमा का प्रभाव गलत दिशा लेने लगता है। इस कारण पूर्णिमा व्रत का पालन रखने की सलाह दी जाती है।