मीना सोनी
सनातन धर्म के मुताबिक 786 का मतलब ॐ होता है। राफेल पताई अपनी पुस्तक 'द जीविस माइंड' में बताते हैं कि पवित्र कुरान की सभी अरबी प्रतियों पर अंकित रहस्यमय अंक 786 है। अरबी विद्वानों ने परमात्मा के रूप में इस विशेष अंक का चुनाव निर्धारित कर इसे ईश्वर के समान दर्जा दिया। अगर इस जादुई संख्या को संस्कृत में लिखा जाए तो ॐ जादुई संख्या 786 के समान दिखाई देगा।
अंक ज्योतिष के अनुसार 786 को परस्पर में जोड़ते है तो 7+8+6=21 होता है। 21 को भी परस्पर जोड़ा जाए तो 2+1=3 अंक हुआ, जो कि लगभग सभी धर्मों में अत्यंत शुभ एवं पवित्र अंक माना जाता है। तीन उच्च महाशक्तियां ब्रह्मा, विष्णु और महेश। अल्लाह, पैगम्बर और नुमाइंदे की संख्या भी तीन तथा सारी सृष्टि के मूल में समाए प्रमुख गुण सत् रज व तम भी तीन ही हैं। अर्थात हिन्दू धर्म एवं मुस्लिम धर्म दोनों में ये दोनों धार्मिक प्रतीक मिलते जुलते हैं।
786 अंक से क्या है संबंध?
786 अंक हर मुसलमान बेहद पवित्र एवं अल्लाह का वरदान मानता है। यही कारण है कि इस धर्म को मानने वाले लोग अपने हर कार्य में 786 अंक के शामिल होने को शुभ मानते हैं। काल्पनिक दृष्टि से भी 786 अंक हिन्दू एवं इस्लाम दोनों धर्मों को अपने भीतर पाता है। इसके लिए सबसे पहले आपको 786 अंक को हिन्दी गिनती के हिसाब से लिखना होगा। यानी कि इस तरह से 7=७ 8=८ 6=६, इसके बाद यदि आप इन तीनों अंकों को इनके अनुसार लगाएं तो आप देखेंगे कि यह मिलकर ॐ बनाते हैं।
इस्लाम में 786 अंक का महत्व
नोट हो या मकान का नंबर या फिर मोबाइल का नंबर, गाड़ी का नंबर हो या फिर स्वयं हाथ पर इस अंक को गुदवाना। इस्लाम धर्म में इसकी महानता इन प्रयोगों से ही दिखाई देती है, लेकिन क्या आप इस अंक का इतिहास जानते हैं?
क्या कहता है इतिहास?
यूं तो कहते हैं कि यह अंक कब आया, कहां से आया और कैसे इस्लाम में प्रचलित हुआ इसका जवाब बहुत ही कम लोग सही रूप में बता पाते हैं लेकिन यहां हम एक कोशिश जरूर कर सकते हैं। इस्लाम धर्म में ‘बिस्मिल्ला’, यानी कि अल्लाह के नाम को 786 अंक से जोड़ कर देखा जाता है इसलिए मुसलमान इसे पाक अर्थात पवित्र एवं भाग्यशाली मानते हैं। कहते हैं यदि ‘बिस्मिल्ला अल रहमान अल रहीम’ को अरबी या उर्दू भाषा में लिखा जाए और उन शब्दों को जोड़ा जाए तो उनका योग 786 आता है।
एक पवित्र अंक
शायद इसलिए लोगों को अल्लाह के नाम का संबोधन देने के लिए एक विकल्प के रूप में 786 का पवित्र अंक उपयोग करने की सलाह दी गई। इस्लाम धर्म विज्ञान को नहीं मानता इसलिए कुछ मुस्लिम धर्म के अनुयायियों की मानें, तो लोगों को अल्लाह की इबादत से जोड़े रखने के लिए ही इस अंक का निर्माण किया गया होगा।
7 (सात)
7 सप्तश्लोकी दुर्गा के सात श्लोक। दुर्गासप्तशती के सात सौ श्लोक (गीताजी के सात सौ श्लोक)। हिन्दू पद्धति से विवाह संस्कार में सात जन्मों तक साथ निभाने के लिए अग्नि के सात फेरे। सात समंदर यथा हिन्द महासागर, प्रशान्त महासागर, बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, नील सागर, अटलांटिक सागर। सात आसमान, सात ऋषि यथा ब्रह्मा के सात मानस पुत्र-मरीची, अत्रि, पुलह, पुलस्त्य, क्रतु, अंगिरा, वशिष्ठ। सात नाड़ी चक्र। संगीत के सात स्वर यथा सा रे गा म प थ नि। सप्तग्रही एक ही राशि में सात ग्रहों का एकत्रित होना, काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, उग्र, प्रदीप्ता आदि सप्तग्रही। पृथ्वी पर उपस्थित सात द्वीप यथा जम्बू, कुश प्लक्ष, शाल्मली, क्रौंच, पुष्कर तथा शाक। शरीर की सात धातुएं यथा रस, रक्त, मांस वसा, अस्थि, मज्जा तथा शुक्र। सप्तकाल यथा अतल, वितल, सुतल रसातल, तलातल, महातल और पाताल। भारत में स्थित हिन्दुओं की सात पुरियां यथा काशी, कांची, उज्जयिनी, हरिद्वार, अयोध्या, मथुरा और द्वारका आदि। सात शक्तियां जिनका पूजादि शुभ कर्मो में उपयोग होता है ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, ऐन्द्री तथा चामुण्डा आदि। सात दिन का सप्ताह आदि।
8 (आठ)
8 देवी देवाताओं की स्तुतिवाले अष्टक स्त्रोत। चतुर्भुज ब्रह्मा के अष्टकर्ण आठ हाथ। हठयोग के अनुसार मूलाधार से ललाट तक भिन्न-भिन्न स्थानों के आठ कमल होते हैं। सर्प के आठ कुल यथा शेष, वासुकि, कम्बल, कर्कोटक पदम, महापदम, शंख तथा कुलिक। श्री कृष्ण की आठ मूर्तियां श्रीनाथ, नवनीतप्रिय, मधुरानाथ, विलनाथ, द्वारकानाथ, गोकुलनाथ, गोकुलचन्द्रमा तथा मदनमोहन (अष्टकोण)। अष्टगंध जो पूजन के कार्य में आता है। हवन में प्रयुक्त आठ प्रकार के द्रव्य यथा अश्वत्थ (पीपल), गूलर, सीकर, वट, तिल, सरसो, खीर तथा घृत। सोना, चाँदी, तांबा, रांका, जस्ता, सीसा, लोहा तथा पारा आदि अष्टधातुएं। अष्टभुजाधारी देवी। आठ प्रकार के मंगल प्रव्य यथा सिंह, हाथी, कलश, चामर, वैजन्ती, भेरी, दीपक तथा वृष। देवाधिदेव की अष्टमूर्तियां - शर्वं, भव, रूद्र, भीम, उग्र, पशुपति, ईशान, महादेव। योग क्रियाओं के आठ योग यथा यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारण, ध्यान तथा समाधि। आठ प्रकार की औषधियों का वर्ग यथा मेदा, महामेदा, ऋद्धि, वृद्धि, जीवक, ऋषभक, काकोली तथा भीरकाकोला। देवताओं और सिद्ध पुरुषों की आठ प्रकार की सिद्धियां यथा अणिमा, महिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व तथा कामावशायिता। अष्टाचक्र नाम के एक महाविद्वान् जिन्होंने अष्टावक्रगीता की रचना की।
6 (छ:)
6 ब्राह्मणों के छ: प्रकार की कर्म यथा वजन, याजन, अध्ययन, दान और प्रतिग्रह। छ: कोणों की आकृति षटकोण कहलाती है। हठयोग के अनुसार कुंडलियों के ऊपर के छ: चक्र। संगीत के छ: राग यथा भैरव, मल्हार, श्री, हिंडोला, मालकोस तथा दीपक। वेद के अंगभूत छ: शास्त्र यथा शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त, ज्योतिष और छंद। कर्मकांड के अनुसार छ: प्रकार की अग्रियां यथा गार्हपत्य। आहवनीय, दक्षिणाग्रि, आपसथ्य, सम्याग्रि और औकासनाग्रि। हिन्दू शास्त्र के अनुसार मनुष्य में छ: गुण पाए जाते हैं: जैसे ऐश्वर्य, ज्ञान, यश, श्री, वैराग्य और धर्म। हिन्दूशास्त्रों में छ: प्रकार के दर्शनशास्त्र प्रचलित है न्याय, वैशेषिक, सांख्य, वेदान्त, मीमांसा और योग। मनुष्य और प्राणीमात्र छ: प्रकार के स्वाद का आनन्द लेते हैं।
(इस लेख में व्यक्त विचार/विश्लेषण लेखक के निजी हैं। इसमें शामिल तथ्य तथा विचार/विश्लेषण वेबदुनिया के नहीं हैं और वेबदुनिया इसकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं लेती है)