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जानिए चैत्र अमावस्या के मुहूर्त, महत्व एवं उपाय

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* चैत्र अमावस्या 
 
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार चैत्र महीने में आने वाली कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को 'चैत्र अमावस्या' के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
 
 
धार्मिक एवं ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या तिथि बहुत महत्वपूर्ण होती है। ऐसा माना जाता है कि अमावस्या के दिन प्रेतात्माएं ज्यादा सक्रिय रहती हैं इसीलिए चौदस और अमावस्या के दिन बुरे कार्यों तथा नकारात्मक विचारों से दूरी बनाए रखने में हमारी भलाई है।


इन दिनों विशेषकर धार्मिक कार्यों तथा मंत्र जाप, पूजा-पाठ आदि पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
 
 
चैत्र अमावस्या के दिन स्नान और दान का शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेगा।
 
अमावस्या का समय 4 अप्रैल, गुरुवार दोपहर 12.51 बजे से आरंभ होकर 5 अप्रैल, शुक्रवार की दोपहर 2.21 बजे तक रहेगा। यह समय विशेष तौर पर स्नान-दान की दृष्‍टि से अधिक महत्व का माना गया है। गरुड़ पुराण के अनुसार इस अमावस्या के दिन पितर अपने वंशजों से मिलने जाते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत रखकर पवित्र नदी में स्नान, दान व पितरों को भोजन अर्पित करने से वे प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद देते हैं।

 
- हिन्दू पंचांग के अनुसार इस दिन दक्षिणाभिमुख होकर दिवंगत पितरों के लिए पितृ तर्पण करना चाहिए।

- पितृस्तोत्र या पितृसूक्त का पाठ करना चाहिए।

- इतना ही नहीं, प्रत्येक अमावस्या के दिन अपने पितरों का ध्यान करते हुए पीपल के पेड़ पर कच्ची लस्सी, थोड़ा गंगा जल, काले तिल, चीनी, चावल, जल तथा पुष्प अर्पित करें। 
 
-'ॐ पितृभ्य: नम:' मंत्र का जाप करके बाद पितृसूक्त का पाठ करना शुभ फल प्रदान करता है। जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, वे गाय को दही और चावल खिलाएं तो मानसिक शांति प्राप्त होगी।

 
- अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी परिक्रमा करें। प्रत्येक अमावस्या के दिन सूर्यदेव को ताम्र बर्तन में लाल चंदन, गंगा जल और शुद्ध जल मिलाकर 'ॐ पितृभ्य: नम:' का बीज मंत्र पढ़ते हुए 3 बार अर्घ्य दें।
 
- जो लोग घर पर स्नान करके अनुष्ठान करना चाहते हैं, उन्हें पानी में थोड़ा-सा गंगा जल मिलाकर तीर्थों का आह्वान करते हुए स्नान करना चाहिए। इस दिन सूर्यनारायण को अर्घ्य देने से गरीबी और दरिद्रता दूर होती है।

 
- मान्यताओं के अनुसार इस दिन किसी पवित्र नदी में स्नान करके पितृ तर्पण करना चाहिए तथा सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को भोजन करवाकर गरीबों को दान करना चाहिए।



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