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सावधान! 20 अप्रैल से मचेगी तबाही, होगा तीसरा विश्वयुद्ध

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यह हम नहीं कह रहे हैं काशी के ज्योतिषियों ने ज्योतिषीय गणना में ग्रहों के आधार पर दावा किया है कि 20 अप्रैल से 26 जून के बीच आकाश मंडल में कुछ अशुभ खगोलीय घटनाएं देखने को मिलेंगी। इस अवधि में ग्रहों की चाल भी कुछ विशेष होगी। इस अवधि में मंगल और शनि दोनों ही ग्रह वक्री होंगे।
 

 
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी कहते हैं 20 अप्रैल से 26 जून 2016 के बीच गुरु चांडाल योग बन रहा है। यह योग बेहद अनिष्टकारी है। ऐसा योग हजारों साल बाद बन रहा है। इसका असर भारत समेत पूरी दुनिया में देखने को मिलेगा। ज्योतिषीय गणना के आधार पर उनका दावा है कि 20 अप्रैल से 26 जून के बीच ग्रहों का जो दुर्योग बन रहा है, वह बेहद अशुभ है।

इसके अलावा वृश्चिक राशि में 20 फरवरी से ही मंगल का प्रवेश हो चुका है और वह आगामी 18 सितम्बर तक वहीं रहेगा। इसके वक्री होने से ही तूफान, आंधी, भूकंप और ओले से नुकसान देखने को मिला है। वृश्‍चिक राशि में शनि पहले से ही विद्यमान है। यह दोनों ग्रह लगभग सात माह रहेंगे।
 
गौरतलब है कि उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा में हजारों श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और सैकड़ों की संख्या में लोग अब भी लापता हैं। उस समय भी इस तरह का समय राहू, शनि और मंगल का षडाष्टक योग चल रहा था। 

अगले पन्ने पर क्या होता है गुरु चांडाल योग...
 
 

गुरु चांडाल योग : आमतौर पर यही माना जाता है कि राहू और केतु केवल सूर्य तथा चंद्रमा को ही ग्रसित करते हैं परन्तु ये दोनों ग्रह अन्य ग्रहों को भी ग्रसित करते हैं। कालक्रम के अनुसार जब कभी देवगुरु बृहस्पति को राहू ग्रसित करता है, तो इस तरह बनने वाले योग को गुरु चांडाल योग कहा जाता है। इस समय यही योग बन रहा है। यह योग अत्यन्त अशुभ माना जाता है तथा बड़ी तबाही का संकेत देता है।
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बताया कि जब देवगुरु बृहस्पति को राहू ग्रसित करता है, उस योग को गुरु चांडाल योग कहते हैं। 21 फरवरी से 28 जुलाई तक आकाश मंडल में गुरु चांडाल योग है। बकौल पं. दीपक मालवीय शनि मंगल का वृश्चिक राशि में वक्री होना और इस दुर्योग को हवा देने वाला गुरु चांडाल योग धरती पर बड़ा ही अशुभ संकेत लेकर आ रहा है। इस अवधि में धरती के दो तिहाई भाग पर भारी तबाही मच सकती है।
 
बहरहाल, ज्योतिष शास्त्र में शनि, राहू और मंगल को क्रूर पापी ग्रह की मान्यता है। जब भी कभी इन ग्रहों की चाल बदलती है तो कुछ न कुछ अनिष्टकारी होता है। चांडाल योग के दौरान ही मंगल और शनि दोनों ही वक्री भी हो रहे हैं।
 
अगले पन्ने पर क्या होता है वक्री होना...
 

मंगल और शनि दोनों ही हुए वक्री : कोई भी ग्रह विशेष जब अपनी सामान्य दिशा की बजाए उल्टी दिशा यानि विपरीत दिशा में चलना शुरू कर देता है तो ऐसे ग्रह की इस गति को वक्र गति कहा जाता है तथा वक्र गति से चलने वाले ऐसे ग्रह विशेष को वक्री ग्रह कहा जाता है।
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उदाहरण के लिए शनि यदि अपनी सामान्य गति से कन्या राशि में भ्रमण कर रहे हैं तो इसका अर्थ यह होता है कि शनि कन्या से तुला राशि की तरफ जा रहे हैं, किन्तु वक्री होने की स्थिति में शनि उल्टी दिशा में चलना शुरू कर देते हैं अर्थात शनि कन्या से तुला राशि की ओर न चलते हुए कन्या राशि से सिंह राशि की ओर चलना शुरू कर देते हैं और जैसे ही शनि का वक्र दिशा में चलने का यह समय काल समाप्त हो जाता है, वे पुन: अपनी सामान्य गति और दिशा में कन्या राशि से तुला राशि की तरफ चलना शुरू कर देते हैं। वक्र दिशा में चलने वाले अर्थात वक्री होने वाले बाकि के सभी ग्रह भी इसी तरह का व्यवहार करते हैं।
 
गुरु चांडाल योग के साथ ही दो क्रूर ग्रह मंगल तथा शनि भी वक्री होंगे जो खंड प्रलय का संकेत देता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार जब धनु, मीन, वृष और वृश्चिक राशि के रहते हुए मंगल और शनि वक्रीय हों तो धरती पर खंड प्रलय का योग बनता है। यदि गुरु चांडाल योग के साथ यह अशुभ योग बने तो निश्चय ही किसी बड़े विनाश का कारण बनता है। ऐसा योग हजारों सालों में एक बार बनता है और इसका असर पूरे विश्व पर होता है।
 
मंगल और शनि का मिलन और वक्र दृष्टि : मंगल और शनिप दोनों शत्रु ग्रहों का एक ही राशि में सात महीने तक रहेगा वास। 25 मार्च से 13 अगस्त के बीच वक्री शनि के प्रभाव से तनाव की संभावना बनती है। मंगल और शनि का यह गठजोड़ देश में बड़ा हलचल पैदा करेगी, ऐसी संभावना ज्योतिषाचार्यो की ओर से जताई जा रही है। 
 
ज्योतिषाचार्य पं. राजीव शर्मा के अनुसार मंगल ग्रह अपनी वृश्चिक राशि में विराजमान हुआ है। जबकि वृश्चिक राशि में पहले से ही शनि बैठे हैं। उनके मुताबिक आमतौर पर मंगल ग्रह एक राशि में सिर्फ 45 दिन ही स्थान बनाता है, लेकिन इस बार मंगल पूरे सात महीने वृश्चिक राशि पर रहेगा। इस बीच मंगल तुला राशि में वक्री अवस्था में 17 जून को रात 11.44 बजे आएगा। फिर दोबारा वृश्चिक राशि में 12 जुलाई को दोपहर 2.18 बजे पहुंचेगा। यहां 18 सितंबर तक रहने के बाद धनु राशि में प्रवेश करेगा। ऐसे में वृश्चिक राशि में आने के साथ ही शनि के मिलन से स्थितियां भयावह बनी रहेंगी।
 
अगले पन्ने पर रत्नेश्वर महादेव मंदिर पर वज्रपात की घटना अनिष्ट का संकेत...
 

रत्नेश्वर महादेव मंदिर : काशी के ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि दत्तात्रेय घाट पर स्थित रत्नेश्वर महादेव के मंदिर पर वज्रपात (बिजली गिरना) होना कोई आम घटना नहीं है। यह आने वाले अनिष्ट का संकेत है। गुरु चांडाल योग में ऐसी घटनाएं आम हैं। जिस तरह से आकाश मंडल में खगोलीय घटनाएं चल रही हैं आने वाले समय में ग्रहों की चाल का असर धरती पर दिखेगा।
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संयोग से इस वर्ष उक्त सभी योग एक साथ घटित हो रहे हैं। मंगल वृश्चिक राशि में 6 माह के समय तक शनि के साथ युति करेंगे। आगामी 9 मार्च को पड़ने वाले सूर्य ग्रहण की राशि कुम्भ पर मंगल की दृष्टि 5 महीनों तक रहेगी जो कि एक बड़े भूकंप और युद्ध का योग है। ज्योतिष के शास्त्रीय ग्रंथों के अनुसार निम्न ग्रह स्थितियों में बड़े भूकंप आ सकते हैं। महर्षि गर्ग के अनुसार अमावस्या और पूर्णिमा के आसपास अधिकतर भूकंप आते हैं। यदि उस समय सूर्य या चंद्र ग्रहण भी हो तो बड़े भूकंपों की संभावना अधिक बनती है।
 
अगले पन्ने पर जानिए क्या होगा अप्रैल से जून के बीच...
 

ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी कहते हैं, जब धनु, मीन, वृष और वृश्चिक राशि के रहते हुए मंगल और शनि वक्रीय हों तो धरती पर मनुष्य, गाय, घोड़ा, हाथी को भारी नुकसान पहुंचता है। 20 अप्रैल से 26 जून 2016 के बीच गुरु चांडाल योग बन रहा है।
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दो तिहाई धरती पर होगा असर : ज्योतिष के हिसाब से शनि मंगल का वृश्चिक राशि में वक्री होना तथा साथ ही गुरु चांडाल योग का बनना बहुत बड़ा अशुभ संकेत है। ज्योतिषियों ने 20 अप्रैल से 26 जून के बीच भारत समेत पश्चिम के देशों में प्राकृतिक आपदा, भूकंप, महामारी, सुनामी, दैवी आपदा और तृतीय विश्व युद्ध के अलवा खंड प्रलय जैसे हालात उत्पन्न होने का अंदेशा जताया है।
 
आने वाले अगले दो महीनों में विश्व के विभिन्न देशों में प्राकृतिक आपदा, भूकंप, महामारी, सुनामी, दैवी आपदा, विश्व युद्ध और खंड प्रलय जैसे हालात उत्पन्न हो सकते हैं। ग्रहों की गणना के अनुसार इससे धरती के दो तिहाई से अधिक भाग पर भारी तबाही मच सकती है। 
 
2. वृषभ-वृश्चिक और मकर-कर्क  राशियों में पाप ग्रहों शनि, मंगल, राहू और केतु से पीडि़त होने पर उत्तर भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बड़े भूकंप आते हैं।
 
3. ग्रहण के समय यदि सूर्य-चंद्रमा, शनि, मंगल और गुरु पृथ्वी तत्व की राशियों अथवा नवमांशों में हों तब ग्रहण के आसपास बड़े भूकंप आते देखे गए हैं। वृषभ, कन्या और मकर को हिन्दू ज्योतिष में पृथ्वी तत्व की राशियां कहा जाता है।
 
4.जिस वर्ष मंगल एक राशि में 6 महीने तक रुकता है, यदि उस वर्ष वह शनि से स्थिति अथवा युति द्वारा कोई योग बना ले तो बड़े भूकंपों और युद्धों से जन-धन की भारी क्षति करता है। मेदिनी ज्योतिष के ग्रंथों के अनुसार यदि मंगल की दृष्टि ग्रहण की राशि पर पड़ रही हो तो उस वर्ष बड़े युद्ध, अकाल और भूकंपों से भारी क्षति पहुंचती है।
 
कितनी सचाई है इस बात में जानिए अगले पन्ने पर...
 

ग्रहों का धरती पर असर : जैसे सूर्य उदय और अस्त होता है, चंद्रमा उदय और अस्त होता है उसी तरह प्रत्येक ग्रह उदय और अस्त होता है। आकाश में देखने पर हमें मंगल, शुक्र और शनि ग्रह दिखाई देते हैं और समय-समय पर बुध और गुरु भी।
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चंद्र के कारण ही ज्वारभाटा उत्पन्न होता है और सभी पशु, पक्षी, मनुष्य आदि प्राणियों के दिमाग में भी परिवर्तन होने लगता है। मंगल के कारण धरती की अग्नि या धरती पर ताप बढ़ जाता है। जिस तरह अमावस्य और पूर्णिमा हमें प्रभावित करती है उसी तरह मंगल से होने वाले असर का भी प्रभाव होता है।
 
इस वक्त जब गुरु के सामने राहू आ रहा है तो इसका अर्थ है धरती पर राहू का असर होना। इसके अलावा शनि और मंगल वक्री हो रहे हैं। यह तीनों ही ग्रह पापी ग्रह माना गए हैं। पापी का अर्थ जब जब इनकी धरती पर असर होता है तब तब धरती पर उत्पात बढ़ जाते हैं। लोगों के दिमाग बदल जाते हैं। पूर्व के ज्ञान के आधार पर ही ज्योतिषविद् अब प्राकृतिक आपदा, भूकंप, महामारी, सुनामी, दैवी आपदा, युद्ध और खंड प्रलय जैसे हालात उत्पन्न होने का अंदेशा जताते हैं।
 
गौरतलब है कि उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा में हजारों श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी और सैकड़ों की संख्या में लोग अब भी लापता हैं। उस समय भी इस समय राहू, शनि और मंगल का षडाष्टक योग चल रहा था।
 
शनि और राहू की युति इस आपदा का कारण मानी गई थी। शनि एक जलीय तत्व प्रधान ग्रह है। इसका राहू के साथ संयोग होना अग्निकांड, भूस्खलन जैसे दु‍ष्परिणामों के रूप में सामने आता है। वन एवं पर्वतीय प्रदेश भी राहू के अंतर्गत माने गए हैं, अत: यह स्पष्ट है कि यह त्रासदी वर्तमान गोचर में इन दोनों ग्रहों के सम्मिलन का ही परिणाम था।
 
नेपाल का भूकंप भी सभी को याद होगा। 25 अप्रैल दिन शनिवार को दोपहर के समय नेपाल में भूकम्प के द्वारा भयानक तबाही आई। उस दिन अपरान्ह 1:40 मिनट तक पुनर्वसु नक्षत्र था। उत्तराफाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाती, मृगशिरा, अश्विनी और पुनर्वसु ये सात नक्षत्र वायव्य मण्डल के है। यदि इनमें से किसी भी नक्षत्र में भूकम्प आता है तो इसके सात दिन आगे कथित लक्षण बताए गए है। आकाश में बदली छायी रहती है, वर्षा के कारण नुकसान होता है, पृथ्वी से धूल उड़ती हुई और वृक्षों को तोड़ती हुई हवा चलती है और सूर्य की किरणें मन्द हो जाती है।
 
मैत्रे कुलूततड्डणखसकाशमीराः समिन्त्रचक्रचशः।
उपतापं यान्ति च घण्टिका भिभेदश्च मित्राणाम्।।
यदि शनि अनुराधा नक्षत्र में स्थित हो तो कुलूत, तगंण, खस (नेपाल) और कशमीर इन देशों में स्थित मनुष्य, मन्त्री, चक्रधर (कुम्हार, तेली आदि) और घण्टा बजाने वाले एंव शिल्पियों को पीड़ा सहनी पड़ती है।
 
17 अप्रैल को शनि अनुराधा नक्षत्र के दूसरे चरण में प्रवेश कर चुका था, जिसने 05 जून तक इसी अवस्था में भ्रमण किया। उस काल में शनि अपने प्रचण्ड विरोधी मंगल की राशि वृश्चिक में गोचर कर रहा था। सन् 2015 के शुरूआत में ही 15 दिन के अन्दर दो ग्रहण का पड़ना प्रकृति में बड़ा परिवर्तन का संकेत था। 20 मार्च को सूर्य ग्रहण और 04 अप्रैल दिन शनिवार को चन्द्र ग्रहण पड़ा था। ज्योतिष में सूर्य व चन्द्र ग्रहण को विशेष महत्व दिया जाता है। 15 दिन के अन्दर दो ग्रहण पड़ने के कारण समुद्र व पृथ्वी में अनेक परिवर्तन हुए और इसका परिणाम हमने धरती पर कई प्राकृतिक आपदा के रूप में देखा।

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