सफलता उसी के कदम चूमती है जिसके ग्रह बलवान हों
समाज में प्रतिष्ठित पद पाना, उच्च शिक्षा, उच्च पद मिलना सफल राजनीतिज्ञ बनना आदि ये सब हर किसी को नहीं मिलता। यह जन्म के समय ग्रहों की अनुकूलता व बलवान होने पर ही निर्भर करता है।
पत्रिका क्या कहती है? अगर आपकी पत्रिका में लग्न, तृतीय (पराक्रम भाव), चतुर्थ (सुख भाव), पंचम (विद्या भाव), नवम (भाग्य) का बलवान होना व दशम (कर्म भाव) के साथ-साथ ग्रहों के अनुकूल होना भी आवश्यक हैइसके अलावा राजयोग भी सफलता की ओर ले जाते हैं।
किसी भी जातक, फिर वह स्त्री हो या पुरुष, की पत्रिका में जन्म के समय उपरोक्त भावों का बलवान होना चाहिए। लग्न से स्वयं को देखा जाता है। उसका निर्दोष होना चाहिए यानी लग्नेश नीच राशि का हो तो नीच भंग होना चाहिए। गुरु चन्द्र का समसप्तक योग होना सफलता के मार्ग में चार चांद लगा देता है।
इसके अतिरिक्त-
गुरु चन्द्र का लग्न व लग्नेश से संबंध हो,
पंचम भाव से संबंध हो,
नवम भाग्य भाव से संबंध हो,
दशम कर्म भाव से संबंध हो,
राशि परिवर्तन हो, जैसे लग्न का स्वामी नवम में हो व नवम भाव का स्वामी लग्न में हो,
लग्न व सप्तम भाव के स्वामी का राशि परिवर्तन हो,
पंचम व लग्न के साथ नवम भाव का स्वामी साथ हो,
पराक्रम यानी तृतीय भाव का स्वामी लग्न में हो व लग्न का स्वामी तृतीय भाव में हो,
इस प्रकार ग्रहों की युति सफलता के द्वार खोलती हैं।
एक आईएएस की चन्द्र कुंडली का उदाहरण हैं। कन्या राशि के हैं। गुरु की चन्द्र पर दृष्टि से गजकेसरी राजयोग बना, गुरु शुक्र साथ हैं। गुरु स्वराशि मीन का व शुक्र उच्च का, शनि बुध में, राशि परिवर्तन बुध मकर का, शनि मिथुन का, मंगल उच्च, मकर का सूर्य अपने घर को सप्तम भाव से देख रहा है।
इस प्रकार एक गजकेसरी योग, दूसरा राशि परिवर्तन योग, तीसरा मंगल उच्च का, चौथा गुरु स्वराशि मीन का होने, शुक्र का उच्च होने से कलेक्टर बनने के योग निर्मित हुए।
ऐसा नहीं है कि सफलता उसी के कदम चूमती है जिसके ग्रह बलवान हों मेहनत, दान, अच्छे कर्म, परोपकार और ईमानदारी से कमजोर ग्रहों को भी बलवान बनाया जा सकता है।