गीता में लिखा गया है कि ये संसार उल्टा पेड़ है। इसकी जड़ें ऊपर और शाखाएं नीचे हैं। यदि कुछ मांगना और प्रार्थना करना है तो ऊपर करना होगी, नीचे कुछ भी नहीं मिलेगा। आदमी का मस्तिष्क उसकी जड़ें हैं। उसी तरह यह ज्योतिष विज्ञान भी वृहत्तर है जिसे समझना और समझाना मुश्किल है। यहां हम ज्योतिष विज्ञान का विरोध नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हम इसे विज्ञान मानते हैं। इसीलिए जरूरी है कि इस विज्ञान पर से धूल को झाड़ा जाए।
वर्तमान में ज्योतिष विद्या के कई भिन्न-भिन्न रूप प्रचलित हो गए हैं। अब इस विद्या के जानकार कम और इस विद्या से धनलाभ प्राप्त करने वाले बहुत मिल जाएंगे, जो मनमाने उपाय बताकर लोगों को भटकाने और डराने का कार्य ज्यादा करते हैं। निश्चित ही इससे ज्योतिष विद्या की प्रतिष्ठा गिर गई है। ऐसी कई फिल्में और सीरियल बन गए हैं जिसमें ज्योतिष या इस विद्या का उपहास उड़ाया गया है। इन बातों से आम लोगों के बीच ज्योतिष को लेकर गलत धारणा विकसित हो गई है। सबसे ज्यादा नुकसान धर्म को उठाना पड़ता है। ज्योतिष और धर्म अलग-अलग होते हैं। जब कोई व्यक्ति पूजा-पाठ या प्रार्थना करता है तो यह धर्म का हिस्सा है, न कि ज्योतिष का।
सवाल यह उठता है कि क्या ज्योतिष की धारणा से आपका वास्तविक जीवन नष्ट हो जाता है? आप प्रैक्टिकल नहीं रह जाते? आप यही सोचते रहते हैं कि अभी मेरा समय अच्छा नहीं चल रहा है, अभी राहु या शनि की महादशा चल रही है और मंगल दोष के कारण ही सबकुछ अमंगल हो रहा है। मंगल की शांति करवाना होगी। निश्चत ही ग्रह और नक्षत्रों से बढ़कर है ईश्वर या भगवान। जो मनुष्य भगवान में आस्था रखता है, उसके जीवन में ज्योतिष के लिए कोई जगह नहीं। ज्योतिष या धर्म यही कहता है कि यदि आपके कर्म अच्छे हैं, तो अच्छा होगा। कर्म के सिद्धांत को समझना होगा। कर्म कई प्रकार के होते हैं। आप जो स्वप्न देख रहे हैं या गहरी नींद में सो रहे हैं, वह भी आपका कर्म है।
( ज्योतिष का नकारात्मक पहलू )
जीवन को नकारात्मक दिशा में मोड़ता ज्योतिष:-
*लड़की को मंगल है, तो उपाय बताएं? गुण या नाड़ी नहीं मिल रहे हैं, तो उपाय बताएं? वर्तमान में ऐसे सवाल अक्सर पूछे जाते हैं। पहले ऐसा था कि लड़की या लड़के को मंगल है, तो उसके लिए मंगल ही ढूंढते थे। गुण नहीं मिल रहे हैं, तो दूसरा रिश्ता ढूंढते थे। लेकिन वर्तमान में उपाय बता दिए जाते हैं जिसके चलते कुछ रिश्ते हो जाते हैं। हालांकि आज भी कई ऐसे लड़के और लड़कियां हैं, जो अधिक उम्र के हो चले हैं और अभी तक मंगल और गुण ही मिला रहे हैं। समाज की ऐसी ही धारणाओं के कारण उपाय पूछे जाने से एक कदम आगे अब प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ गया है लेकिन इसमें जोखिम भी बढ़ गया है। अधिकतर प्रेम विवाह असफल हो चले हैं। हालांकि इसमें किसी कुंडली का दोष नहीं भी हो सकता है। लेकिन इन सब बातों से यह बात निकलकर सामने आती है कि ज्योतिष के कारण व्यक्ति कंफ्यूज जरूर हो गया है। उसके स्वाभाविक और वास्तविक जीवन पर जरूर प्रभाव पड़ा है।
*यदि कोई व्यक्ति ज्योतिष विद्या के माध्यम से लोगों को भयभीत कर रहा है, तो समाज अकर्मण्यता और बिखराव का शिकार होकर वेदोक्त ईश्वर के मार्ग से भटक जाएगा और कहना होगा कि भटक ही गया है। इस भटकाव के कई पहलू हैं जिसमें से एक पहलू यह है कि वह ईश्वर, भगवान या खुद से ज्यादा ज्योतिष पर विश्वास करता है। ग्रह-नक्षत्रों से डरकर उनकी भी पूजा या प्रार्थना करने लगता है। वह अपना हर कार्य लग्न, मुहुर्त या तिथि देखकर करता है और उस कार्य के होने या नहीं होने के प्रति संदेह से भरा रहता है। ऐसे में उसका वर्तमान, वास्तविक जीवन और अवसर हाथों से छूट जाता है। व्यक्ति जिंदगीभर अनिर्णय की स्थिति में रहता है। निर्णयहीन व्यक्ति में आत्मविश्वास नहीं होता है। डिसीजन पॉवर (निर्णय शक्ति) उसमें होता है, जो अपनी सोच से ज्ञान और जानकारी का उपयोग सही और गलत को समझने में करता है।
मनुष्य को डरपोक बनाता ज्योतिष:-
*जीवन में कुछ भी हो रहा है, तो ऐसा माना जाता है कि सब ग्रह-नक्षत्रों का खेल है। उदाहरण भी दिया जाता है कि भगवान राम भी ग्रह-नक्षत्रों के फेर या खेल से बच नहीं पाए। राम को वनवास हुआ, तो ग्रहों के कारण ही। हालांकि कोई व्यक्ति यह नहीं सोचता है कि श्रीराम के वनवास के और भी कारण थे। यह बात आंख मूंदकर इसलिए मान ली जाती है, क्योंकि आपके पास वे आंकड़े नहीं हैं जिससे कि यह सिद्ध कर सकें कि इन्हीं ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति में ही कुछ लोगों को वनवास नहीं, राजपाट मिला है। कोई यह नहीं सोचता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपना ही नहीं, अपने आसपास के सभी लोगों का जीवन भी संचालित किया था। कहना चाहिए कि उन्होंने ही संपूर्ण महाभारत कथा की रचना की थी। इसमें किसी ग्रह-नक्षत्र का कोई रोल नहीं था। वर्तमान का ज्योतिष ग्रह-नक्षत्रों से डराने वाला ज्योतिष है। जो लोग वेद, ईश्वर और कर्म पर भरोसा करते हैं, वे किसी से भी डरते नहीं है।
*बहुत से लोगों के मन में आजकल ज्योतिष विद्या को लेकर संदेह और अविश्वास की भावना है जिसका कारण वर्तमान में प्रचलित ज्योतिष और इसको लेकर किए जा रहे व्यापार से है। टीवी चैनलों में ज्योतिष शास्त्री ज्योतिष के संबंध में न मालूम क्या-क्या बातें करके समाज में भय और भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं। यही कारण है कि कई लोगों के मन में अब ज्योतिष को लेकर संदेह उत्पन्न होने लगा है, जो कि जायज भी है। वर्तमान में ज्योतिष विद्या विवादों के घेरे में है और इसका कारण वे ज्योतिषशास्त्री हैं, जो लोगों का मनगढ़ंत भविष्य बता रहे हैं या लोगों को ग्रह-नक्षत्र से डरा रहे हैं। डरपोक लोगों के बारे में क्या कहें, वे तो किसी भी चीज से डर जाएंगे।
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( ज्योतिष का सकारात्मक पहलू )
ज्योतिष विज्ञान या अंध विश्वास :-
ज्योतिष अद्वैत का विज्ञान है। इस विज्ञान को सही और सकारात्मक दिशा में विकसित किए जाने की आवश्यकता है। ओशो कहते हैं कि ज्योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्या कहते हैं? उनकी गणना क्या कहती है? यह तो सिर्फ ज्योतिष का एक डायमेंशन है, एक आयाम है। फिर भविष्य को जानने के और आयाम भी हैं। मनुष्य के हाथ पर खींची हुई रेखाएं हैं, मनुष्य के माथे पर खींची हुई रेखाएं हैं, मनुष्य के पैर पर खींची हुई रेखाएं हैं, पर ये भी बहुत ऊपरी हैं। मनुष्य के शरीर में छिपे हुए चक्र हैं। उन सब चक्रों का अलग-अलग संवेदन है। उन सब चक्रों की प्रतिपल अलग-अलग गति है। फ्रीक्वेंसी है। उनकी जांच है। मनुष्य के पास छिपा हुआ, अतीत का पूरा संस्कार बीज है।
ज्योति का अर्थ होता है प्रकाश और ज्योतिष का अर्थ होता है ज्योति पिंडों का अध्ययन। ज्योतिष शास्त्र का अर्थ प्रकाश वाले पिंडों की गतिविधियों को बताने वाला शास्त्र। हमारे सौर मंडल में अब तक 10 से 12 ग्रह खोजे गए हैं। सभी ग्रहों के मिलाकर 64 चन्द्रमा खोजे गए हैं और असंख्य उल्काएं सौर्य पथ पर भ्रमण कर रही हैं। यह सौरमंडल हमारी आकाशगंगा में हमारे कमरे में रखी एक सूई के बराबर है। हमारी आकाशगंगा की तरह ही कई अन्य आकाशगंगाएं हैं। धरती पर सिर्फ सूर्य का ही नहीं, बल्कि असंख्य तारों और ग्रहों का प्रकाश भी आ रहा है।
ग्रहों का मानव जीवन प्रभाव :-
हमारी धरती पर सूर्य का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है, उसके बाद चन्द्रमा का प्रभाव माना गया है। उसी तरह क्रमश: मंगल, गुरु, बुद्ध और शनि का भी प्रभाव पड़ता है। ग्रहों का प्रभाव संपूर्ण धरती पर पड़ता है, किसी एक मानव पर नहीं। धरती के जिस भी क्षेत्र विशेष में जिस भी ग्रह विशेष का प्रभाव पड़ता है, उस क्षेत्र विशेष में परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का प्रभाव संपूर्ण धरती पर रहता है और पृथ्वी एक सीमा तक सभी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। समुद्र में ज्वार-भाटा का आना भी सूर्य और चन्द्र की आकर्षण शक्ति का प्रभाव है। अमावस्या और पूर्णिमा का भी हमारी धरती पर प्रभाव पड़ता है। जब हम 'प्रभाव पड़ने' की बात करते हैं, तो इसका मतलब यह कि एक जड़ वस्तु चाहे वह चन्द्रमा हो, उसका प्रभाव दूसरी जड़ वस्तु चाहे वह समुद्र का जल हो या हमारे पेट का जल, पर पड़ता है। लेकिन हमारे मन और विचारों को हम नियंत्रण में रख सकते हैं। मन को नियंत्रण में रखने से भविष्य भी नियंत्रित हो जाता है।
जिस तरह चन्द्रमा के कारण धरती के समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है निश्चित ही वह चन्द्रमा हमारे शरीर में स्थित जल को भी प्रभावित करता है। जल के प्रभावित होने से व्यक्ति का मन प्रभावित होता है। इसी तरह प्रत्येक ग्रह या नक्षत्र का प्रभाव धरती पर पड़ता है, लेकिन उसका असर अलग-अलग क्षेत्र की प्रकृति के अनुसार अलग-अलग होता है। ठीक उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति पर उन ग्रह-नक्षत्रों का प्रभाव अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए जैसे यदि कहीं पर तूफान उठा है, तो उस तूफान के चलते कुछ लोग बीमार पड़ जाते हैं, कुछ वृक्ष उखड़ जाते हैं और कुछ मकान की छतें उड़ जाती हैं। लेकिन जो व्यक्ति मजबूत है, वह बीमार नहीं पड़ेगा, जो वृक्ष लचीला है, वह कभी उखड़ेगा नहीं और जिस मकान की छत मजबूत है, वह उड़ेगी नहीं। अत: जिस तरह तूफान का असर प्रत्येक व्यक्ति पर भिन्न-भिन्न होता है, उसी तरह ग्रह-नक्षत्रों का असर भी माना जाता है।
एक अन्य उदाहरण कि जिस प्रकार एक ही भूमि में बोए गए आम, नीम, बबूल अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार गुण-धर्मों का चयन कर लेते हैं और सोने की खदान की ओर सोना, चांदी की ओर चांदी और लोहे की खदान की ओर लोहा आकर्षित होता है, ठीक उसी प्रकार पृथ्वी के जीवधारी विश्व चेतना के अथाह सागर में रहते हुए भी अपनी-अपनी प्रकृति के अनुरूप भले-बुरे प्रभावों से प्रभावित होते हैं।
कोई-सा भी ग्रह न तो खराब होता है और न अच्छा। ग्रहों का धरती पर प्रभाव पड़ता है लेकिन उस प्रभाव को कुछ लोग हजम कर जाते हैं और कुछ नहीं। प्रकृति की प्रत्येक वस्तु का प्रभाव अन्य सभी जड़ वस्तुओं पर पड़ता है। ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार ग्रहों के पृथ्वी के वातावरण एवं प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन-विश्लेषण भी किया जाता है।
ग्रह, ग्रह है या देवता?
प्रकाशयुक्त अंतरिक्ष पिंड को नक्षत्र कहा जाता है। हमारा सूर्य भी एक नक्षत्र है। ये नक्षत्र कोई चेतन प्राणी नहीं हैं, जो किसी व्यक्ति विशेष पर प्रसन्न या क्रोधित होते हों। कालांतर में प्रत्येक ग्रह का एक देवता नियुक्त कैसे हो गया, यह शोध का विषय है। कुछ लोग कहते हैं कि जब हमारे ऋषियों के समक्ष ग्रहों की चाल, दशा और दिशा बताने का कोई ठोस उपाय नहीं था तब उन्होंने इस संपूर्ण घटनाक्रम को एक कथा में पिरोया। अब किसी देवता की कहानी को ग्रह की कहानी से निकालकर देखना और किसी ग्रह की कहानी को देवता की कहानी से निकालकर देखना जरूरी है। ऋषियों ने तारामंडल के इस संपूर्ण डाटा को संरक्षित रखने के लिए प्रत्येक ग्रह का एक देवता नियुक्त कर उस आधार पर पंचांग, कैलेंडर आदि बनाए और ग्रहों की चाल को बताने के लिए कथा का भी सृजन किया।
निश्चित ही देवता और ग्रह दोनों अलग-अलग हैं। जो देवता जिस ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है या जिस देवता का चरित्र जिस ग्रह के समान है या यह कहें कि ग्रहों की प्रकृति को दर्शाने के लिए उसकी प्रकृति अनुसार ग्रहों के नाम उक्त देवताओं पर रखे गए, जो उस प्रकृति के हैं तो उचित रहेगा। राहु और केतु एक दानव थे जिन्होंने अमृत मंथन के समय चोरी से अमृत का स्वाद चख लिया था। सभी ग्रहों की छाया को राहु और केतु की छाया माना जाता है। इस छाया का भी धरती पर प्रभाव पड़ता है। कुछ ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि यह दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव का प्रतीक है। ज्योतिष के अनुसार केतु और राहु आकाशीय परिधि में चलने वाले चन्द्रमा और सूर्य के मार्ग के प्रतिच्छेदन बिंदु को निरूपित करते हैं इसलिए राहु और केतु को क्रमश: उत्तर और दक्षिण चन्द्र आसंधि कहा जाता है। यह तथ्य कि ग्रहण तब होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा इनमें से एक बिंदु पर होते हैं।
ज्योतिष का धर्म से क्या संबंध है?
अंधकार काल में व्यक्ति मौसम और प्रकृति से डरता था। बस इसी डर ने एक ओर ज्योतिष को जन्म दिया, तो दूसरी ओर धर्म को। जिन लोगों ने बिजली के कड़कने या गिरने को बिजली देव माना, वे धर्म को गढ़ रहे थे और जिन्होंने बिजली को बिजली ही माना, वे ज्योतिष के एक भाग खगोल विज्ञान को गढ़ रहे थे। जिज्ञासुओं में एक विज्ञान खोज रहा था, तो दूसरा धर्म। इसी तरह आगे चलकर धर्म और ज्योतिष अलग होते हुए जुड़ते गए। बाद में सब गड्ड-गड्ड होता गया।
'ज्योतिषम् नेत्रमुच्यते'- इसका अर्थ होता है कि वेद को समझने के लिए, सृष्टि को समझने के लिए 'ज्योतिष शास्त्र' को जानना आवश्यक है। ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा गया है। कहते हैं कि ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। ज्योतिष को 6 वेदांगों में शामिल किया गया है। ये 6 वेदांग हैं- 1. शिक्षा, 2. कल्प, 3. व्याकरण, 4. निरुक्त, 5. छंद और 6. ज्योतिष।
*प्राचीनकाल में उचित जगह पर घर, आश्रम, मंदिर, मठ या गुरुकुल बनाने के लिए ज्योतिष विद्या की सहायता ली जाती थी, जैसे मिस्र के पिरामिड, महाकाल का मंदिर, अजंता-एलोरा का कैलाश मंदिर, ज्योतिर्लिंग आदि।
वैदिक ज्ञान के बल पर भारत में एक से बढ़कर एक खगोलशास्त्री या ज्योतिष हुए हुए हैं। इनमें गर्ग, आर्यभट्ट, भृगु, बृहस्पति, कश्यप, पाराशर, वराह मिहिर, पित्रायुस, बैद्यनाथ आदि प्रमुख हैं। उस काल में खगोलशास्त्र ज्योतिष विद्या का ही एक अंग हुआ करता था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ज्योतिष के 18 महर्षि प्रवर्तक या संस्थापक हुए हैं। कश्यप के मतानुसार इनके नाम क्रमश: सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, पाराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमेश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक हैं।
*दरअसल, प्रारंभ में यह ज्ञान राजा, पंडित, आचार्य, ऋषि, दार्शनिक और विज्ञान की समझ रखने वालों तक ही सीमित था। ये लोग इस ज्ञान का उपयोग मौसम को जानने, वास्तु रचना करने तथा सितारों की गति से होने वाले परिवर्तनों को जानने के लिए करते थे। इस ज्ञान के बल पर वे राज्य को प्राकृतिक घटनाओं से बचाते थे और ठीक समय पर ही कोई कार्य करते थे। धीरे-धीरे यह विद्या जनसामान्य तक पहुंची तो राजा और प्रजा सहित सभी ने इस विद्या में मनमाने विश्वास और धारणाएं जोड़ीं। अंध धारणाओं के कारण धीरे-धीरे इसमें विकृतियां आने लगीं, लोग इसका गलत प्रयोग करने लगे। राजा भी इस विद्या के माध्यम से लोगों को डराकर अपने राज्य में विद्रोह को दबाना चाहता था और पंडित ने भी अपना चोला बदल लिया था।
*इस सब कारण के चलते विद्धान ज्योतिषाचार्य व ज्योतिष ग्रंथ समाप्त हो गए। शोध कार्य मृतप्राय होकर बंद हो गए। अज्ञानी लोगों ने ज्योतिष का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। इसे व्यापार का रूप देकर धन कमाने के लालच में झूठी भविष्यवाणी करके शोषक वर्ग शोषण के धंधे में लग गया। जो भविष्यवाणी सच नहीं होती, उसके भी मनमाने कारण निर्मित कर लिए जाते और जो सच हो जाती, उसका बढ़ा-चढ़ाकर बखान किया जाता। इसके चलते भारत में ज्योतिष का जन्म होने के बावजूद अब यह विद्या भारत से ही लुप्त हो चली है। अब इस विद्या की जगह एक नई विद्या है कुंडली पर आधारित फलित ज्योतिष। ज्योतिषाचार्यों की महंगी फीस, महंगे व गलत उपायों से जनसामान्य आज भी धोखे में जी रहा है। आज ज्योतिष मात्र खिलवाड़ का विषय बन गया है। टीवी चैनलों के माध्यम से तो इस विद्या के दुरुपयोग का और भी विस्तार हो गया है। अब इसे विज्ञान कहना गलत होगा।
*ज्योतिष के त्रिस्कंध हैं यानी इसके 3 प्रमुख स्तंभ हैं- गणित (होरा), संहिता और फलित। कुछ लोग सिद्धांत, संहिता और होरा बताते हैं। एक जमाना था जबकि सारा रेखागणित, बीजगणित, खगोल विज्ञान सब ज्योतिष की ही शाखाएं था, लेकिन अब यह विज्ञान फलित ज्योतिषियों के कारण अज्ञान में बदल गया है। ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत बीजगणित, अंकगणित, भूगोल, खगोल और भूगर्भ विधा आती है जिनमें ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, ऋतुएं, उत्तरायन, दक्षिणायन, दिन, मास, वर्ष, युग, मन्वंतर, कल्प, प्रलय आदि अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता है, परंतु इस ज्योतिष के नाम पर फलित ज्योतिष खड़ा किया गया है जिसका संबंध जीवों के कर्मफल से जोड़ा गया है।
इस फलित ज्योतिष का उद्देश्य ही जीवों का भविष्य जानना, ईष्ट लाभ और अनिष्ट परिहार (नष्ट करना) है। फलित ज्योतिष में भविष्य जानने के लिए जन्म पत्रिका, हस्तरेखा, राशि, ग्रह, नक्षत्र, शकुन, अंग स्फुरण, तिल और स्वप्न आदि को आधार बनाया जाता है। फलित ज्योतिष का वर्तमान में अत्यधिक प्रचार-प्रसार होने से 'ज्योतिष' शब्द का अर्थ फलित ज्योतिष के अर्थ में रूढ़ (निश्चित) हो गया है। अशिक्षितजनों से लेकर शिक्षितजनों तक फलित ज्योतिष के द्वारा भविष्यफल देखने-दिखाने की प्रवृत्ति देखी जाती है, जो समाज में ज्योतिष विषयक फैले अज्ञान का परिचायक है।
फलित ज्योतिष द्वारा धूर्त लोग अनेक मिथ्या ग्रंथ बना, लोगों को सत्य ग्रंथों से विमुख कर अपने जाल में फंसाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। इन्हीं लोगों ने ग्रहों की पूजा को प्रचलन में लाया है और अब तो ग्रह और नक्षत्रों के मंदिर भी बन गए हैं। कोई मूर्ख ही होगा, जो ग्रह शांति और ग्रहों की पूजा का कार्य करता होगा।