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भद्रा दोष निवारण का पूजन-विधान और प्रार्थना...

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* भद्रा दोष निवारण के लिए ऐसे करें पूजन, करें ये प्रार्थना... 
 
पौराणिक धार्मिक शास्त्रों के अनुसार जब भी उत्सव-त्योहार या पर्व काल पर चौघड़िए तथा पाप ग्रहों से संबंधित काल की बेला में निषेध समय दिया जाता है, वह समय शुभ कार्य के लिए त्याज्य होता है।

पौराणिक मान्यता के आधार पर देखें तो भद्रा का संबंध सूर्य और शनि से है। जिस दिन भद्रा हो और परम आवश्यक परिस्थितिवश कोई शुभ कार्य करना ही पड़े तो उस दिन उपवास करना चाहिए।
 
ऐसे करें पूजन :- प्रातः स्नानादि के उपरांत देव, पितृ आदि तर्पण के बाद कुशाओं की भद्रा की मूर्ति बनाएं और पुष्प, धूप, दीप, गंध, नैवेद्य आदि से उसकी पूजा करें, फिर भद्रा के 12 नामों से हवन में 108 आहुतियां देने के पश्चात तिल और खीरादि सहित ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भी मौन होकर तिल मिश्रित कुशरान्न का अल्प भोजन करना चाहिए। 
 
फिर पूजन के अंत में इस प्रकार मंत्र द्वारा प्रार्थना करते हुए कल्पित भद्रा कुश को लोहे की पतरी पर स्थापित कर काले वस्त्र का टुकड़ा, पुष्प, गंध आदि से पूजन कर प्रार्थना करें-
 
'छाया सूर्य सुते देवि विष्टिरिष्टार्थदायिनी।
पूजितासि यथाशक्त्या भदे भद्रप्रदा भव।।'
 
फिर तिल, तेल, सवत्सा, काली गाय, काला कंबल और यथाशक्ति दक्षिणा के साथ ब्राह्मण को दें। भद्रा मूर्ति को बहते पानी में विसर्जित कर देना चाहिए। 
 
इस प्रकार विधिपूर्वक जो भी व्यक्ति भद्रा व्रत का उद्यापन करता है, उसके किसी भी कार्य में विघ्न नहीं पड़ते। 

 

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