27 नक्षत्र होते हैं। उसमें से मूल या गंड नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक कुछ विशेष होते हैं। मतलब इन नक्षत्रों के जिन चरणों में जन्म हुआ है उसके आधार पर उनका भविष्य तय होता है। परंतु यदि कहते हैं कि यदि माता-पिता या सगे भाई-बहन के नक्षत्र में किसी बालक का जन्म हुआ है तो उसको मरणतुल्य कष्ट होता है। आओ जानते हैं इसके उपाय।
उदाहरणार्थ यदि यदि पिता का जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है और जातक का जन्म भी भरणी में हुआ है तो दोनों के नक्षत्र समान हुए। ऐसे में जातक को कष्ट होगा।
उपाय : इस दोष निवारण हेतु किसी शुभ लग्न में अग्निकोण से ईशान कोण की तरफ जन्म नक्षत्र की सुंदर प्रतिमा बनाकर कलश पर स्थापित करें फिर लाल वस्त्र से ढंककर उपरोक्त नक्षत्रों के मंत्र से पूजा-अर्चना करें फिर उसी मंत्र से 108 बार घी और समिधा से आहुति दें तथा कलश के जल से पिता, पुत्र और सहोदर का अभिषेक करें। यह कार्य किसी पंडित के सान्निध्य में विधिपूर्वक करें।
27 नक्षत्रों के नाम : 1.आश्विन, 2.भरणी, 3.कृतिका, 4.रोहिणी, 5.मृगशिरा, 6.आर्द्रा 7.पुनर्वसु, 8.पुष्य, 9.आश्लेषा, 10.मघा, 11.पूर्वा फाल्गुनी, 12.उत्तरा फाल्गुनी, 13.हस्त, 14.चित्रा, 15.स्वाति, 16.विशाखा, 17.अनुराधा, 18.ज्येष्ठा, 19.मूल, 20.पूर्वाषाढ़ा, 21.उत्तराषाढ़ा, 22.श्रवण, 23.धनिष्ठा, 24.शतभिषा, 25.पूर्वा भाद्रपद, 26.उत्तरा भाद्रपद और 27.रेवती। चन्द्रमा इन सभी नक्षत्रों में भृमण करता रहता है।
मूल नक्षत्र के नाम : मूल, ज्येष्ठा और आश्लेषा इन तीन नक्षत्रों को मूल नक्षत्र कहा जाता है और आश्विन, मघा और रेवती को सहायक मूल नक्षत्र होते हैं।