प्रत्येक हिन्दू माह में 2 चतुर्थी होती है। एक कृष्ण पक्ष की और दूसरी शुक्ल पक्ष की। इस तरह वर्ष में 24 चतुर्थी और प्रत्येक तीन वर्ष बाद अधिमास की मिलाकर 26 चतुथियां होती हैं। सभी चतुर्थी की महिमा और महत्व अलग-अलग है। चतुर्थी तिथि भगवान गणेशजी को समर्पित है। चतुर्थी (चौथ) के देवता हैं शिवपुत्र गणेश। इस तिथि में भगवान गणेश का पूजन से सभी विघ्नों का नाश हो जाता है। माह में दो चतुर्थियां होती हैं। पहली विनायकी या विनायक और दूसरी संकष्टी। आओ जानते हैं दोनों में क्या है अंतर।
1. अंतर : अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
2. संकष्टी चतुर्थी : माघ मास के कृष्ण पक्ष को आने वाली चतुर्थी महत्वपूर्ण रहती है। इसे संकष्टी चतुर्थी, माघी चतुर्थी या तिल चौथ कहा जाता है। बारह माह के अनुक्रम में यह सबसे बड़ी चतुर्थी मानी गई है। चतुर्थी के व्रतों के पालन से संकट से मुक्ति मिलती है और आर्थिक लाभ प्राप्त होता है।
3. विनायक चतुर्थी : भाद्र माह की चतुर्थी को गणेशजी का जन्म हुआ था, जिसे विनायक चतुर्थी कहते हैं। कई स्थानों पर विनायक चतुर्थी को 'वरद विनायक चतुर्थी' और 'गणेश चतुर्थी' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की आराधना सुख-सौभाग्य की दृष्टि से श्रेष्ठ है।
चतुर्थी की विशेषता : यह खला तिथि हैं। तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं। यदि चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है। चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य है।