दुनियाभर में अलग-अलग तरीके से भाग्य या भविष्य बताया जाता है। भारत में ही लगभग 150 से ज्यादा ज्योतिष विद्या प्रचलित हैं। यहां प्रस्तुत हैं भविष्य बताने की प्रमुख 13 तरह की विद्याएं।
कुंडली ज्योतिष
यह कुंडली पर आधारित विद्या है। इसके अंतर्गत वैदिक ज्योतिष सहित अन्य कई विद्याएं प्रचलित हैं। कुंडली पर आधारित विद्या के 3 भाग हैं- सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र। इसमें 12 राशियों, 9 ग्रह और 27 नक्षत्रों के आधार पर जातक का भविष्य बताया जाता है। आधुनिक युग में इसके मुख्यत: 4 भाग हैं- नवजात ज्योतिष, कतार्चिक ज्योतिष, प्रतिघंटा या प्रश्न कुंडली और विश्व ज्योतिष विद्या। गणना ज्योतिष और फलित ज्योतिष भी इसी का अंग है।
लाल किताब की विद्या
इसे ज्योतिष के परंपरागत सिद्धांत से हटकर 'व्यावहारिक ज्ञान' माना जाता है। उक्त विद्या के जानकार लोगों ने इसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी संभालकर रखा था। लोकमानस में प्रचलित इस मौखिक विद्या के सिद्धांत को एकत्र कर सर्वप्रथम इस पर एक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसका नाम था 'लाल किताब के फरमान'। मान्यता अनुसार उक्त किताब को जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने सन् 1939 को प्रकाशित किया था।
गणितीय ज्योतिष
इस भारतीय विद्या को अंक विद्या भी कहते हैं। इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि के अंक निर्धारित हैं। फिर जन्म तारीख, वर्ष आदि के जोड़ अनुसार भाग्यशाली अंक और भाग्य निकाला जाता है।
नंदी नाड़ी ज्योतिष
यह मूल रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित विद्या है जिसमें ताड़पत्र द्वारा भविष्य जाना जाता है। इस विद्या के जन्मदाता भगवान शंकर के गण नंदी हैं, इसी कारण इसे नंदी नाड़ी ज्योतिष विद्या कहा जाता है।
पंच पक्षी सिद्धांत
दक्षिण भारत में प्रचलित इस ज्योतिष सिद्धांत के अंतर्गत समय को 5 भागों में बांटकर प्रत्येक भाग का नाम एक विशेष पक्षी पर रखा गया है। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई कार्य किया जाता है उस समय जिस पक्षी की स्थिति होती है उसी के अनुरूप उसका फल मिलता है। पंच पक्षी सिद्धांत के अंतर्गत आने वाले 5 पक्षियों के नाम हैं- गिद्ध, उल्लू, कौआ, मुर्गा और मोर। आपके लग्न, नक्षत्र, जन्म स्थान के आधार पर आपका पक्षी ज्ञात कर आपका भविष्य बताया जाता है।
हस्तरेखा ज्योतिष
हाथों की आड़ी-तिरछी और सीधी रेखाओं के अलावा हाथों के चक्र, द्वीप, क्रॉस आदि का अध्ययन कर व्यक्ति का भूत और भविष्य बताया जाता है। यह बहुत ही प्राचीन विद्या है और भारत के सभी राज्यों में प्रचलित है।
नक्षत्र ज्योतिष
वैदिक काल में नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिष विज्ञान ज्यादा प्रचलित था। जो व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता था उसके उस नक्षत्र अनुसार उसका भविष्य बताया जाता था। नक्षत्र 27 होते हैं। नक्षत्र पर आधारित ही दशा और महादशा की गणना की जाती है। कृष्णमूर्ति पद्धति भी नक्षत्र पर आधारित ही है।
अंगूठा शास्त्र
दक्षिण भारत में प्रचलित इस विद्या अनुसार अंगूठे की छाप लेकर उस पर उभरी रेखाओं का अध्ययन कर बताया जाता है कि जातक का भविष्य कैसा होगा?
सामुद्रिक विद्या
यह विद्या भी भारत की सबसे प्राचीन विद्या है। इसके अंतर्गत व्यक्ति के चेहरे, नाक-नक्श और माथे की रेखा सहित संपूर्ण शरीर की बनावट का अध्ययन कर व्यक्ति के चरित्र और भविष्य को बताया जाता है।
चीनी ज्योतिष
चीनी ज्योतिष में 12 वर्ष को पशुओं के नाम पर नामांकित किया गया है। इसे 'पशु-नामांकित राशि-चक्र' कहते हैं। यही उनकी 12 राशियां हैं जिन्हें 'वर्ष' या 'संबंधित पशु-वर्ष' के नाम से जानते हैं। ये वर्ष निम्न हैं- चूहा, बैल, चीता, बिल्ली, ड्रैगन, सर्प, अश्व, बकरी, वानर, मुर्ग, कुत्ता और सूअर। जो व्यक्ति जिस वर्ष में जन्मा उसकी राशि उसी वर्ष अनुसार होती है और उसके चरित्र, गुण और भाग्य का निर्णय भी उसी वर्ष की गणना अनुसार माना जाता है।
टैरो कार्ड
टैरो कार्ड में ताश की तरह 11 पत्ते होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति अपना भविष्य या भाग्य जानने के लिए टैरो कार्ड के जानकार के पास जाता है तो वह जानकार एक कार्ड निकालकर उसमें लिखा उसका भविष्य बताता है। इस तरह कुल तीन कार्ड निकालना होते हैं। यह उसी तरह हो सकता है, जैसा कि पिंजरे के तोते से कार्ड निकलवाकर भविष्य जाना जाता है।
गुह्य विद्या
इस विद्या के अंतर्गत तंत्र, त्राटक, त्रिकाल, मधु विद्या, इन्द्रजाल, परा, अपरा, दर्पण विद्या जैसी आदि सैकड़ों विद्याएं आती हैं जिनके माध्यम से व्यक्ति का भूत व भविष्य जाना जा सकता है। 'गुह्य' का अर्थ है रहस्य।
प्राण विद्या
प्राण विद्या को ही सम्मोहन विद्या या त्रिकाल विद्या के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में इस विद्या के माध्यम से व्यक्ति की मानसिक चिकित्सा ही नहीं की जाती बल्कि उसके व्यक्तित्व को भी निखारा जाता है। लेकिन इस विद्या द्वारा आप अपना और दूसरों का भविष्य भी जान सकते हैं। यह एक चमत्कारिक विद्या है। पहले इस विद्या का इस्तेमाल भारतीय साधु-संत सिद्धियां और मोक्ष प्राप्त करने के लिए करते थे।
रमल प्रश्नावली
रमल प्रश्नावली की उत्पत्ति भारत में ही हुई थी लेकिन इसका प्रचलन भिन्न रूप में अरब में ज्यादा रहा। कहते हैं कि सती के वियोग से व्याकुल भगवान शिव के समक्ष भैरव ने चार बिंदु बना दिए और उनसे उसी में अपनी इच्छित प्रिया सती को खोजने के लिए कहा। विशेष विधान से उन्होंने इसे सिद्ध करके 7वें लोक में अपनी प्रियतमा को देखा। तभी से इस तरह से भविष्य देखने का प्रचलन शुरू हुआ। दूसरी कथा के अनुसार एक बार एक व्यक्ति अरब के रेगिस्तान में भटक गया। तब साक्षात शक्ति ने आकर उसके सामने चार रेखा और चार बिंदु बना दिए। उसे एक ऐसी विधि बताई कि वह गंतव्य स्थान का मार्ग जान गया, तभी से इस शास्त्र की उत्पत्ति हुई।
क्या है रमल प्रश्नावली?
रमल प्रश्नावली के अंतर्गत चंदन की लकड़ी का चौकोर पाट बनवाकर उस पर 1, 2, 3 और 4 खुदवा लिया जाता है। फिर उसी लकड़ी के 3 पासे बने होते हैं जिस पर इसी तरह से अंक लिखे होते हैं। फिर मां कूष्मांडा का ध्यान करते हुए तीनों पासों को छोड़ा जाता है। उसका जो अंक आता है उसी अंक पर फल लिखा होता है। इस तरह कम से कम 444 तक के प्रश्नों के फल होते हैं। रमल शास्त्र में पासा डालने के उपरांत प्रस्तार अर्थात 'जायचा' बनाया जाता है। प्रस्तार में 16 घर होते हैं। 13, 14, 15 और 16 पर गवाहन अर्थात साक्षी घर होते हैं। प्रस्तार के 1, 5, 7, 13 अग्नि तत्व के होते हैं। 2, 6, 10, 14, 13, 7, 11, 15 घर जल तत्व के होते हैं। राम शलाका भी इसी तरह की विद्या है।