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ज्योतिष में भरोसा रखने वाली जयललिता का अंतिम संस्कार 4.30 बजे क्यों?

हमें फॉलो करें ज्योतिष में भरोसा रखने वाली जयललिता का अंतिम संस्कार 4.30 बजे क्यों?

राजश्री कासलीवाल

* ज्योतिष को बहुत मानती थीं जयललिता, पढ़ें क्यों...



तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता 'अम्मा' ने 75 दिन बीमारी से जंग लड़ने के बाद 5 दिसंबर, सोमवार रात 11.30 बजे अंतिम सांस ली। 68 वर्षीय जयललिता इस साल सितंबर से चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती थीं।
 
माना जाता है कि जयललिता ज्योतिष को बहुत मानती थीं। उनका हर बड़ा फैसला ज्योतिषी से चर्चा के बाद ही होता था। जयललिता ज्योतिष को कितना मानती थीं, यह इस बात से सिद्ध होता है कि उनके शपथ ग्रहण के दौरान ‘शुभ मुहूर्त’ का इंतजार करने और शपथ के समय हरे रंग का ‘टोटका’ इस्तेमाल करने से प्रकट होता है।
 
जयललिता के ‘शुभ समय’ पर शपथ ग्रहण के क्रम में विलंब से बचने के लिए राष्ट्रगान के 52 सेकंड के मानक संस्करण के बजाय 20 सेकंड वाला संस्करण गाया गया। इसको लेकर विवाद भी हुआ था और इसे राष्ट्रगान का अपमान बताया गया। यह पहला मौका नहीं था जब किसी राजनीतिज्ञ ने शुभ मुहूर्त पर शपथ-ग्रहण या कोई अन्य कार्य किया हो, जैसे चुनाव के समय पर्चा भरना आदि। शुभ मुहूर्त के प्रति दक्षिण भारत के लोग ज्यादा सचेत हैं। वे प्रतिदिन सभी महत्वपूर्ण कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त का ध्यान रखते हैं और ‘राहु कालम्’ में कोई शुभ कार्य नहीं करते। 
 
यहां त‍क कि जब एक बार ज्योतिषीय चर्चा के दौरान उन्हें ‍ज्यो‍तिष ने यह सुझाव दिया था कि अगर वो 'अमुक समय से उक्त समय' तक चुनाव के लिए नामांकन करती हैं तो निश्चित ही जीत उनकी होगी, तो ज्योतिषी के इस सुझाव को ध्यान में रखते हुए जयललिता एवं पार्टी के अन्य नेताओं ने मात्र 20 मिनट में 233 नामांकन पत्र भरे थे। जयललिता पार्टी की 234वीं उम्मीदवार थीं, जिन्होंने अपना नामांकन भरा था। 
 
 
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इतना ही नहीं जयललिता की दिल्‍ली यात्रा एक कुर्सी को लेकर भी चर्चित है। उनकी इस यात्रा के लिए एक अलग कुर्सी होती थी, जिसे दिल्‍ली में वे जहां भी जाती वहां ले जाया करती थीं। पिछली बार जब वे नरेंद्र मोदी से मुलाकात करने दिल्‍ली पहुंची थीं, तब एक स्‍पेशल कुर्सी नॉर्थ ब्‍लॉक पहुंची। वे अरुण जेटली, राष्‍ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलने के दौरान भी इसी स्‍पेशल कुर्सी पर बैठी नजर आई थीं। उनकी ये कुर्सी तमिलनाडु भवन में रखी रहती है। जानकारी के अनुसार यह कुर्सी सागौन की लकड़ी की बनी है और गठिया की बीमारी के चलते जयललिता इसी पर बैठती हैं। हालांकि इसी कुर्सी पर बैठने के पीछे ज्‍योतिष को भी कारण माना जाता है।
 
पंचक : सोमवार रात्रि से पंचक लग गया है और ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पंचक के दिनों में यह सबसे ध्यान रखने वाली बात है कि इस दौरान शव का अंतिम संस्कार नहीं करना चाहिए। ज्योतिषियों के अनुसार कहा जाता है कि पंचक में जो भी काम किया जाता है उसे 5 बार करना पड़ सकता है। अगर किसी भी कारण से दाह-संस्कार करना पड़े तो शव के साथ 5 कुशा के पुतले बनाकर उनका भी दाह-संस्कार किया जाता है।  
 
राहु काल : राहुकाल स्थान और तिथि के अनुसार अलग-अलग होता है अर्थात प्रत्येक वार को अलग समय में शुरू होता है। यह काल कभी सुबह, कभी दोपहर तो कभी शाम के समय आता है, लेकिन सूर्यास्त से पूर्व ही पड़ता है। राहुकाल की अवधि दिन (सूर्योदय से सूर्यास्त तक के समय) के 8वें भाग के बराबर होती है यानी राहुकाल का समय डेढ़ घंटा होता है। वैदिक शास्त्रों के अनुसार इस समय अवधि में शुभ कार्य आरंभ करने से बचना चाहिए।
 
कब होता है राहुकाल- 

रविवार : शाम 04:30 से 06 बजे तक,

सोमवार : 07:30 से 09 बजे तक,

मंगलवार : 03:00 से 04:30 बजे तक,

बुधवार : 12:00 से 01:30 बजे तक,

गुरुवार : 01:30 से 03:00 बजे तक,

शुक्रवार : 10:30 बजे से 12 बजे तक 

शनिवार : सुबह 09 बजे से 10:30 बजे तक।
 
जिस दिन जयललिता का निधन हुआ उस दिन षष्ठी तिथि थी और आज सप्तमी है, चूंकि जयललिता अष्टमी तिथि को बहुत बुरा मानती थी, इसीलिए उनका अंतिम संस्कार आज ही किया गया। आज राहु काल का समय मंगलवार : 03:00 से 04:30 बजे तक का था। ज्योतिष में यह बात स्षष्ट है कि राहुकाल में अंतिम संस्कार करना शुभ नहीं माना जाता, इसके चलते राहुकाल समाप्त होने के बाद ही जयललिता का अंतिम संस्कार 04:30 बजे के बाद किया गया। 


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