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कालसर्प दोष शांति का पूर्ण व प्रामाणिक विधान

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पं. हेमन्त रिछारिया

नागमंडल पूजन के बिना अधूरी है कालसर्प दोष की शांति 
 
'कालसर्प दोष' एक ऐसा दुर्योग है जो यदि जन्मपत्रिका में हो तो जातक का जीवन संघर्षमय व्यतीत होता है। वर्तमान समय में कालसर्प को लेकर बहुत भ्रम व संशय उत्पन्न किया जा रहा है। इसके पीछे मुख्य कारण है इस दोष की विधिवत् शांति के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव, जिसके चलते कुछ लोग इसे मान्यता ही नहीं देते हैं। जो लोग इसकी शांति के नाम पर कुछ कर्मकाण्ड करा चुके होते हैं वे भी कालसर्प दोष पर प्रश्नचिन्ह लगाते नज़र आते हैं। इसके पीछे उनका तर्क होता है कि शांति के उपरान्त भी कोई लाभ नहीं हुआ। कालसर्प दोष की शांति के साथ कुछ भ्रान्तियां जुड़ी हुई हैं जैसे किसी विशेष स्थान पर ही इसकी शान्ति होना आवश्यक है। हमारे अनुसार "कालसर्प दोष" की शान्ति किसी भी स्थान पर हो सकती है।

कालसर्प दोष की शांति हेतु तीन बातों का होना अनिवार्य है- 1. किसी पवित्र नदी का तट 2. शिवालय 3. शांति विधान जानने वाले विप्र। बहरहाल, यहां पाठकों की सुविधा हेतु कालसर्प दोष शांति का पूर्ण व प्रामाणिक विधान दे रहे हैं।
नागमंडल पूजन -
 
कालसर्प दोष की शान्ति नागमंडल पूजन के बिना अधूरी है। नागमंडल निर्माण के लिए द्वादश नाग प्रतिमाओं की आवश्यकता होती है, जिनमें दस नाग प्रतिमाएं चांदी की, एक नाग प्रतिमा स्वर्ण की व एक नाग प्रतिमा तांबे की होना अनिवार्य है। सभी नाग प्रतिमाओं को एक मंडल (चक्र) के आकार में चावल की ढेरियों पर रखकर नागमंडल का निर्माण करें एवं लिंगतोभद्रमंडल बनाकर विधिवत् प्रतिष्ठा एवं षोडषोपचार पूजन करें। पूजन क्रम में अपनी जन्मपत्रिका में उपस्थित कालसर्प दोष वाली नाग प्रतिमा का ध्यान रखें क्योंकि इसका ही विसर्जन किया जाता है। तत्पश्चात् राहु-केतु, सर्पमन्त्र, मनसा देवी मन्त्र, महामृत्युंजय की एक माला मन्त्रों से हवन करें।
विसर्जन-
 
हवन के उपरान्त अपनी जन्मपत्रिका में उपस्थित कालसर्प दोष वाली नाग प्रतिमा को पत्ते के दोने में रखकर उसे गौ-दुग्ध से पूरित करें। अब इस दोने को पवित्र नदी में प्रवाहित कर एक डुबकी लगाकर बिना पीछे देखे वापस आएं। तट पर आकर पूजन के समय धारण किए गए वस्त्रों को वहीं छोड़ कर नवीन वस्त्र धारण करें।
 
शेष नाग प्रतिमाएं-
विसर्जन के उपरान्त शिवालय में आकर तांबे वाली नाग प्रतिमा को शिवलिंग पर अर्पण करें। स्वर्ण नाग प्रतिमा मुख्य आचार्य को दक्षिणा से साथ दें अन्य प्रतिमाओं को आचार्य के सहयोगी विप्रों को दान देकर प्रणाम करें।
 
मुहूर्त-
 
सामान्यत: कालसर्प दोष शांति हेतु लगभग प्रतिमाह मुहूर्त बनते हैं किन्तु श्रावण मास, नागपंचमी व श्राद्ध पक्ष कालसर्प दोष की शांति हेतु सर्वोत्तम होते हैं।
 
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
सम्पर्क: [email protected]

 
 

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