Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

आज है कृष्णपिंगाक्ष संकष्टी चतुर्थी, जानिए शुभ मुहूर्त, कथा, मंत्र, उपाय और पूजा विधि

हमें फॉलो करें Sankat Chaturthi 2022
17 जून, शुक्रवार को कृष्णपिंगाक्ष संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi 2022) मनाई जा रही है। इस दिन में विघ्नहर्ता श्री गणेश का पूजन करके पूरे व्रत किया जाता है और शाम को चंद्रोदय होने पर चंद्रमा का पूजा करके व्रत पूर्ण होता है। संतान प्राप्ति की कामना करने वाले व्यक्ति को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। इस बार संकष्टी चतुर्थी सर्वार्थ सिद्धि और इंद्र योग में मनाई जा रही है। उदयातिथि 17 जून को होने से कृष्णपिंगाक्ष संकष्टी चतुर्थी शुक्रवार को मनाई जाएगी। 
 
कृष्णपिंगाक्ष संकष्टी चतुर्थी 2022 शुभ मुहूर्त-Sankashti Chaturthi Muhurt
चंद्रोदय का समय- 17 जून को रात्रि 10.03 मिनट पर। 
आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी का प्रारंभ- 17 जून 2022, शुक्रवार, सुबह 06.10 मिनट से
18 जून 2022, शनिवार, तड़के 02.59 मिनट पर खत्म।
अभिजीत मुहूर्त- 17 जून को 11.30 से दोपहर 12.25 तक। 
 
Katha कथा- द्वापर युग में महिष्मति नगरी का महीजित नामक राजा था। वह बड़ा ही पुण्यशील और प्रतापी राजा था। वह अपनी प्रजा का पालन पुत्रवत करता था। किन्तु संतानविहीन होने के कारण उसे राजमहल का वैभव अच्छा नहीं लगता था। वेदों में निसंतान का जीवन व्यर्थ माना गया हैं। यदि संतानविहीन व्यक्ति अपने पितरों को जल दान देता हैं तो उसके पितृगण उस जल को गरम जल के रूप में ग्रहण करते हैं।
 
इसी उहापोह में राजा का बहुत समय व्यतीत हो गया। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए बहुत से दान, यज्ञ आदि कार्य किए। फिर भी राज को पुत्रोत्पत्ति न हुई। जवानी ढल गई और बुढ़ापा आ गया किंतु वंश वृद्धि न हुई। तदनंतर राजा ने विद्वान ब्राह्मणों और प्रजाजनों से इस संदर्भ में परामर्श किया।
 
राजा ने कहा कि हे ब्राह्मणों तथा प्रजाजनों! हम तो संतानहीन हो गए, अब मेरी क्या गति होगी? मैंने जीवन में तो किंचित भी पाप कर्म नहीं किया। मैंने कभी अत्याचार द्वारा धन संग्रह नहीं किया। मैंने तो सदैव प्रजा का पुत्रवत पालन किया तथा धर्माचरण द्वारा ही पृथ्वी शासन किया। मैंने चोर-डाकुओं को दंडित किया। इष्ट मित्रों के भोजन की व्यवस्था की, गौ, ब्राह्मणों का हित चिंतन करते हुए शिष्ट पुरुषों का आदर सत्कार किया। फिर भी मुझे अब तक पुत्र न होने का क्या कारण हैं? 
 
विद्वान् ब्राह्मणों ने कहा कि, हे महाराज! हम लोग वैसा ही प्रयत्न करेंगे जिससे आपके वंश कि वृद्धि हो। इस प्रकार कहकर सब लोग युक्ति सोचने लगे। सारी प्रजा राजा के मनोरथ की सिद्धि के लिए ब्राह्मणों के साथ वन में चली गई।
 
वन में उन लोगों को एक श्रेष्ठ मुनि के दर्शन हुए। वे मुनिराज निराहार रहकर तपस्या में लीन थे। ब्रह्माजी के सामान वे आत्मजित, क्रोधजित तथा सनातन पुरुष थे। संपूर्ण वेद-विशारद एवं अनेक ब्रह्म ज्ञान संपन्न वे महात्मा थे। उनका निर्मल नाम लोमश ऋषि था। प्रत्येक कल्पांत में उनके एक-एक रोम पतित होते थे। 
 
इसलिए उनका नाम लोमश ऋषि पड़ गया। ऐसे त्रिकालदर्शी महर्षि लोमेश के उन लोगों ने दर्शन किए। सब लोग उन तेजस्वी मुनि के पास गए। उचित अभ्यर्थना एवं प्रणामदि के अनंतर सभी लोग उनके समक्ष खड़े हो गए। मुनि के दर्शन से सभी लोग प्रसन्न होकर परस्पर कहने लगे कि हम लोगों को सौभाग्य से ही ऐसे मुनि के दर्शन हुए। इनके उपदेश से हम सभी का मंगल होगा, ऐसा निश्चय कर उन लोगों ने मुनिराज से कहा। 
 
हे ब्रह्मऋषि! हम लोगों के दुःख का कारण सुनिए। अपने संदेह के निवारण के लिए हम लोग आपके पास आए हैं। हे भगवन! आप कोई उपाय बतलाइए। महर्षि लोमेश ने पूछा-सज्जनों! आप लोग यहां किस अभिप्राय से आए हैं? मुझसे आपका क्या प्रयोजन हैं? स्पष्ट रूप से कहिए। मैं आपके सभी संदेहों का निवारण करूंगा।
 
प्रजाजनों ने उत्तर दिया- हे मुनिवर! हम महिष्मति नगरी के निवासी हैं। हमारे राजा का नाम महीजित है। वह राजा ब्राह्मणों का रक्षक, धर्मात्मा, दानवीर, शूरवीर एवं मधुरभाषी है। उस राजा ने हम लोगों का पालन पोषण किया है, परंतु ऐसे राज को आज तक संतान की प्राप्ति नहीं हुई। 
 
हे भगवान्! माता-पिता तो केवल जन्मदाता ही होते हैं, किंतु राज ही वास्तव में पोषक एवं संवर्धक होता हैं। उसी राजा के निमित हम लोग ऐसे गहन वन में आए है। हे महर्षि! आप कोई ऐसी युक्ति बताइए जिससे राजा को संतान की प्राप्ति हो, क्योंकि ऐसे गुणवान राजा को कोई पुत्र न हो, यह बड़े दुर्भाग्य की बात हैं। हम लोग परस्पर विचार-विमर्श करके इस गंभीर वन में आए हैं। उनके सौभाग्य से ही हम लोगों ने आपका दर्शन किया हैं। 
 
हे मुनिवर! किस व्रत, दान, पूजन आदि अनुष्ठान कराने से राजा को पुत्र होगा। आप कृपा करके हम सभी को बतलाएं। प्रजा की बात सुनकर महर्षि लोमेश ने कहा- हे भक्तजनो! आप लोग ध्यानपूर्वक सुनो। मैं संकटनाशन व्रत को बता रहा हूं। यह व्रत निसंतान को संतान और निर्धनों को धन देता हैं। 
 
आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को ‘एकदंत गजानन’ नामक गणेश की पूजा करें। राजा व्रत करके श्रद्धायुक्त हो ब्राह्मण भोज करवाकर उन्हें वस्त्र दान करें। गणेश जी की कृपा से उन्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी। महर्षि लोमश की यह बात सुनकर सभी लोग करबद्ध होकर उठ खड़े हुए। नतमस्तक होकर दंडवत प्रणाम करके सभी लोग नगर में लौट आए। वन में घटित सभी घटनाओं को प्रजाजनों ने राजा से बताया। प्रजाजनों की बात सुनकर राज बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने श्रद्धापूर्वक विधिवत गणेश चतुर्थी का व्रत करके ब्राह्मणों को भोजन वस्त्रादि का दान दिया। रानी सुदक्षिणा को श्री गणेश जी कृपा से सुंदर और सुलक्षण पुत्र प्राप्त हुआ। श्रीकृष्ण जी भी कहते हैं इस व्रत का ऐसा ही प्रभाव हैं। जो व्यक्ति इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करेंगे वे समस्त सांसारिक सुख के अधिकारी होंगे।
 
मंत्र-Ganesh Mantra
1. ॐ गजाननाय नम:  
2. ॐ श्री गणेशाय नम:
3. गं गणपतये नम:
4. ॐ गं गणपतये नम:
5. ॐ गं ॐ गणाधिपतये नम: 
6. ॐ एकदंताय नमो नम: 
 
उपाय- Chaturthi ke upay 
 
1. संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश को गेंदे का फूल और मोदक का नैवेद्य अर्पित करें। इस उपाय से आपको हर कार्य में सिद्धि प्राप्त होगी।
 
2. घर खरीदने की तमन्ना है तो श्री गणेश पंचरत्न स्तोत्र का पाठ करें अवश्य लाभ होगा।
 
3. श्री गणेश जी को सिंदूर अत्यंत प्रिय है। संकष्टी चतुर्थी पर श्री गणेश को पूजन के समय सिंदूर का तिलक करके खुद भी तिलक करें। फिर श्री गणेश का पूजन करें। मान्यतानुसार सिंदूर को सुख-सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है साथ ही यह श्री गणेश को प्रिय होने के कारण जीवन सुखमय बनेगा। 
 
4. श्री गणेश पूजन के बाद मंत्र- 'ॐ गं गौं गणपतये विघ्न विनाशिने स्वाहा' का 108 बार जाप करने से जीवन में आनेवाली सभी बाधाएं दूर होती हैं।
 
5. संकष्टी चतुर्थी पर शमी के पेड़ का पूजन करने से श्री गणेश प्रसन्न होते हैं। उन्हें शमी के पत्ते अर्पित करने से दुख, दरिद्रता दूर होती है।
 
6. अपार धन-संपत्ति चाहिए तो आज धनदाता गणेश स्तोत्र का पाठ करें। मंत्र- 'ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नमः' की 11 माला का जाप करें। 
 
7. शीघ्र विवाह के लिए मंत्र- 'ॐ ग्लौम गणपतयै नमः' की 11 माला जपें तथा गणेश स्तोत्र का पाठ करके श्री गणेश मोदक का भोग लगाएं, कार्य सफल होगा।
 
8. चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश पूजन और चंद्रदेव की उपासना करने से मन को शांति मिलती है तथा विघ्नहर्ता गणेश अपने भक्तों के सभी कष्ट हर लेते हैं। 
 
9. इस दिन 'ॐ गं गणपतये नमः' मंत्र जपते हुए श्री गणेश को 17 बार दूर्वा अर्पित करने से जीवन की बड़ी से बड़ी परेशानियों से निजात मिलती है। 
 
10. चतुर्थी पर श्री गणेश को प्रिय उनके 1008 या 108 नामों को पढ़ने से जीवन में शुभता आती है। 
 
Pujan Vidhi सरल पूजा विधि- कृष्णपिंगाक्ष संकष्टी चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नानादि करके सफेद रंग के साफ-स्वच्छ धुले हुए वस्त्र धारण करके चतुर्थी व्रत का संकल्प लें। फिर पूजा स्थान की साफ-सफाई करें। तत्पश्चात एक पटिए पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान श्री गणेश की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके उन्हें तिलक लगाकर अक्षत चढ़ाएं। अब पंचोपचार पूजन करें। दीप, अगरबत्ती और धूप जलाएं। आरती करें और चतुर्थी कथा पढ़ें। फिर ऋतु फल और मिठाई, मोदक या लड्‍डू का भोग अर्पित करें। पूरे दिन उपवास रखें। सायं को चंद्रमा निकलने पर चंद्रदेव की पूजा और अर्घ्य देकर पुन: श्री गणेश का पूजन करें और व्रत खोलें। 

webdunia
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

18 जून से लगेगा मृत्यु पंचक, जानिए इस काल की 6 खास बातें