लीलावती गणित का नाम हममें से अधिकांश लोगों ने सुना है। आज की पीढ़ी उन्हें बहुत अधिक नहीं जानती।
आइए जानते हैं महान गणितज्ञ लीलावती के बारे में जिनके नाम से गणित को पहचाना जाता था। लीलावती गणित विद्या की आचार्या थीं; जिस समय विदेशी क-ख-ग भी नहीं जानते थे, उस समय उसने गणित के ऐसे-ऐसे सिद्धांत सोच डाले, जिन पर आधुनिक गणितज्ञों की भी बुद्धि चकरा जाती है।
दसवीं सदी की बात है, दक्षिण भारत में भास्कराचार्य नामक गणित और ज्योतिष विद्या के एक बहुत बड़े पंडित थे। उनकी कन्या का नाम लीलावती था। वही उनकी एकमात्र संतान थी। उन्होंने ज्योतिष की गणना से जान लिया कि 'वह विवाह के थोड़े दिनों के ही बाद विधवा हो जाएगी।' उन्होंने बहुत कुछ सोचने के बाद ऐसा लग्न खोज निकाला, जिसमें विवाह होने पर कन्या विधवा न हो। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। जलघड़ी से ही समय देखने का काम लिया जाता था। एक बड़े कटोरे में छोटा-सा छेद कर पानी के घड़े में छोड़ दिया जाता था। सूराख के पानी से जब कटोरा भर जाता और पानी में डूब जाता था, तब एक घड़ी होती थी।
विधाता का ही सोचा होता है। लीलावती सोलह श्रृंगार किए सजकर बैठी थी, सब लोग उस शुभ लग्न की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक मोती लीलावती के आभूषण से टूटकर कटोरे में गिर पड़ा और सूराख बंद हो गया; शुभ लग्न बीत गया और किसी को पता तक न चला। विवाह दूसरे लग्न पर ही करना पड़ा; लीलावती विधवा हो गई, पिता और पुत्री के धैर्य का बांध टूट गया!
पुत्री का वैधव्य-दु:ख दूर करने के लिए भास्कराचार्य ने उसे गणित पढ़ाना आरंभ किया। उसने भी गणित के अध्ययन में ही शेष जीवन की उपयोगिता समझी। थोड़े ही दिनों में वह उक्त विषय में पूर्ण पंडिता हो गई। पाटीगणित, बीजगणित और ज्योतिष विषय का एक ग्रंथ 'सिद्धांतशिरोमणि' भास्कराचार्य ने बनाया है। इसमें
गणित का अधिकांश भाग लीलावती की रचना है। पाटीगणित के अंश का नाम ही भास्कराचार्य ने अपनी कन्या को अमर कर देने के लिए 'लीलावती' रखा है।
मनुष्य के मरने पर उसकी कीर्ति ही रह जाती है। लीलावती ने गणित के आश्चर्यजनक और नवीनतम सिद्धांत स्थिर कर विश्व का उपकार किया है।