प्रति सोमवार भगवान शिव को प्रसन्न करने के प्रयास किए जाते हैं। लेकिन हम में से बहुत कम लोग जानते हैं कि कुछ पूजन सामग्री ऐसी है जो भगवान भोलेनाथ पर नहीं चढ़ाई जाती हैं। आइए जानें विस्तार से ...
शंख से जल: भगवान शिव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध किया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है जो भगवान विष्णु का भक्त था। इसलिए विष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है शिव की नहीं।
तुलसी: जलंधर नामक असुर की पत्नी वृंदा के अंश से तुलसी का जन्म हुआ था जिसे भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया है। इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं होती। क था यह है कि जलंधर नामक राक्षस से सब त्रस्त थे लेकिन उसकी हत्य नहीं हो सकती थी क्यों कि उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा के तप से उसका कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता था। तब विष्णु ने छल से वृंदा के पति का वेष धारण किया और उसका धर्म भ्रष्ट कर दिया उधर भगवान शिव ने जलंधर का वध किया। तब पवित्र तुलसी ने स्वयं भगवान शिव को अपने स्वरूप से वंचित कर यह शाप दिया था कि आपकी पूजन सामग्री में मैं नहीं रहूंगी।
तिल: यह भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ माना जाता है इसलिए इसे भगवान शिव को नहीं अर्पित किया जाना चाहिए।
खंडित चावल: भगवान शिव को अक्षत यानी साबूत चावल अर्पित किए जाने के बारे में शास्त्रों में लिखा मिलता है। टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है इसलिए यह शिव जी को नहीं चढ़ता।
कुमकुम: यह सौभाग्य का प्रतीक है जबकि भगवान शिव वैरागी हैं इसलिए शिव जी को कुमकुम नहीं चढ़ता।
हल्दी: हल्दी का संबंध भगवान विष्णु और सौभाग्य से है इसलिए यह भगवान शिव को नहीं चढ़ती है।
नारियल पानी: नारियल देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है जिनका संबंध भगवान विष्णु से है इसलिए शिव जी को नहीं चढ़ता।
केतकी फूल :फूल केतकी को भगवान शिव ने क्यों त्याग दिया, इसका उत्तर शिवपुराण में बताया गया है। शिवपुराण के अनुसार एक बार ब्रह्माजी और भगवान विष्णु में विवाद हो गया कि दोनों में कौन अधिक बड़े हैं।