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मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही क्यों, जानिए कारण

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पं. सोमेश्वर जोशी

मकर संक्रांति ही एक ऐसा पर्व है जिसका निर्धारण सूर्य की गति के अनुसार होता है। इसी कारण मकर संक्रांति पर्व प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, उस काल विशेष को ही 'संक्रांति' कहते हैं। यूं तो प्रति मास ही सूर्य 12 राशियों में एक से दूसरी में प्रवेश करता रहता है। मकर राशि में प्रवेश करने के कारण यह पर्व 'मकर संक्रांति' व 'देवदान पर्व' के नाम से जाना जाता है।


 
 
धर्मसिंधु के अनुसार जब रात्रि में संक्रांति हो तो पुण्य काल दूसरे दिन होता है। इस प्रकार इस वर्ष मकर संक्रांति 14 को होगी, क्योंकि सूर्य 14 जनवरी को आधी रात 1.25 बजे मकर राशि में प्रवेश करेगा, लेकिन उसका पुण्यकाल 15 जनवरी को ही माना जाएगा। संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को सूर्योदय से सायंकाल 5.26 बजे तक रहेगा। वर्ष की 12 संक्रांतियों में यह सबसे महत्वपूर्ण है।
 


हर दो साल में अंतर

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मकर संक्रांति मनाए जाने का यह क्रम हर 2 साल के अंतराल में बदलता रहेगा। लीप ईयर आने के कारण मकर संक्रांति 2017, 2018 व 2021 में वापस 14 जनवरी को व साल 2019 व 2020 में 15 जनवरी को मनाई जाएगी। यह क्रम 2030 तक चलेगा। इसके बाद 3 साल 15 जनवरी को व 1 साल 14 जनवरी को संक्रांति मनाई जाएगी। 2080 से 15 जनवरी को ही संक्रांति मनाई जाएगी।
 
क्यों होता है ऐसा?
 
पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए प्रतिवर्ष 55 विकला या 72 से 90 सालों में 1 अंश पीछे रह जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में 1 दिन देरी से प्रवेश करता है। करीब 1,700 साल पहले 22 दिसंबर को मकर संक्रांति मानी जाती थी। इसके बाद पृथ्वी के घूमने की गति के चलते यह धीरे-धीरे दिसंबर के बजाय जनवरी में आ गई है।
 
मकर संक्रांति का समय हर 80 से 100 साल में 1 दिन आगे बढ़ जाता है। 19वीं शताब्दी में कई बार मकर संक्रांति 13 और 14 जनवरी को मनाई जाती थी। पिछले 3 साल से लगातार संक्रांति का पुण्यकाल 15 जनवरी को मनाया जा रहा है। 2017 और 2018 में संक्रांति 14 जनवरी को शाम को अर्की होगी, मकर संक्रांति से कई पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं।


 
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कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करेंगे तथा 2 माह तक रहेंगे। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं अत: इस दिन को 'मकर संक्रांति' के नाम से जाना जाता है। इसी कारण इसे पिता-पुत्र पर्व के रूप में भी देखा जाता है। इस दिन पुत्र द्वारा पिता को तिलक लगाकर उनका स्वागत करना चाहिए। इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्रारंभ होने के कारण लोग दान-पुण्य कर अपनी खुशी मनाते हैं। 
 
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा उनसे मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद इस दिन गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थीं इसलिए मकर संक्रांति पर गंगासागर (कोलकाता : प. बंगाल) में मेला लगता है। 


 
महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। 
 
इस त्योहार को अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है। मकर संक्रांति तमिलनाडु में 'पोंगल' के रूप में तो आंध्रप्रदेश, कर्नाटक व केरल में यह पर्व केवल 'संक्रांति' के नाम से जाना जाता है। 
 
इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
 

यह करें विशेष
 
दान करने का अनंत गुना फल मिलता है। इस दिन तिल, कंबल, सर्दियों के वस्त्र, आंवला, धन-धान्य आदि का दान करें व नदी में स्नान करें। 



 

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