Mauni Amavasya 2023 : इस बार मौनी अमावस्या की तिथि शनिवार, 21 जनवरी 2023 को है। मान्यता नुसार सभी अमावस्याओं में माघ मास की अमावस्या को बहुत ही पवित्र और शुभ माना जाता है। आइए जानते हैं मौनी अमावस्या के बारे में खास जानकारी-
मौनी अमावस्या : शुभ मुहूर्त, महत्व, उपाय और कथा
वर्ष 2023 में माघ मास की मौनी अमावस्या (Mauni Amavasya 2023) 21 जनवरी, दिन शनिवार को मनाई जा रही है। इस बार पूरे दिन सर्वार्थसिद्धि योग रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन पवित्र संगम में देवताओं का निवास होता है, इसलिए इस दिन गंगा स्नान और पवित्र तीर्थस्थलों पर स्नान का विशेष महत्व माना गया है।
मौनी अमावस्या के शुभ मुहूर्त-Mauni Amavasya Shubha Muhurt
मौनी अमावस्या 2023 : शनिवार, 21 जनवरी 2023 को
माघ कृष्ण अमावस्या का प्रारंभ- सुबह 06.19 मिनट से।
अमावस्या की समाप्ति- 22 जनवरी 2023 रात 02.25 मिनट पर।
- ब्रह्म मुहूर्त: प्रात: 05:27 से 06:20 तक।
- अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:11 से 12:54 तक।
- गोधूलि मुहूर्त : शाम 05:48 से 06:15 तक।
मौनी अमावस्या का महत्व (Mauni Amavasya Importance)-
हिन्दू धर्म के अनुसार यह दिन बहुत पवित्र माना गया है। बता दें कि माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को मौनी अथवा माघी अमावस्या के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत-उपवास रखकर मौन व्रत धारण करने का बहुत महत्व है।
प्राचीन धर्मग्रंथों में भगवान श्रीहरि को पाने का सरल मार्ग माघ मास के पुण्य स्नान को बताया गया है, खास कर मौनी अमावस्या के दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार माघ महीने में आने वाली हर तिथि एक पर्व मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मनु ऋषि का जन्म हुआ था।
मौनी अमावस्या के दिन जो लोग गंगा, कुंभ, नदी या सरोवर तट पर जाकर स्नान नहीं कर सकते, वो घर में गंगा जल डालकर स्नान करें तब भी उन्हें अनंत फल की प्राप्ति होती है। इस दिन पूरे विधिपूर्वक गंगा स्नान तथा पितृ तर्पण और दान करने से जीवन की परेशानियों का अंत होकर सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
उपाय- Mauni Amavasya Ke Upay
1. मौनी अमावस्या के दिन सूर्य नारायण को अर्घ्य देने से गरीबी दूर होती है।
2. माघ मास में पवित्र नदियों में स्नान करने से एक विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है।
3. इस दिन मौन रहकर आचरण करने तथा उपवास रखकर स्नान-दान करने का विशेष महत्व है।
4. अमावस्या के दिन 108 बार तुलसी परिक्रमा करना चाहिए।
5. इस दिन मंत्र जाप, सिद्धि साधना एवं दान देकर मौन व्रत को धारण करने से पुण्य प्राप्ति और भगवान का आशीर्वाद मिलता है।
6. मौनी माघी अमावस्या के दिन जप-तप, ध्यान-पूजन करने से विशेष धर्मलाभ प्राप्त होता है।
7. जो लोग घर पर स्नान करके अनुष्ठान करना चाहते हैं, उन्हें पानी में थोड़ा-सा गंगा जल मिलाकर तीर्थों का आह्वान करते हुए स्नान करना चाहिए।
8. जिन लोगों का चंद्रमा कमजोर है, वह गाय को दही और चावल खिलाएं, मानसिक शांति प्राप्त होगी।
9. माघ मास में अमावस्या पर नदी स्नान एवं पूजन करने से भगवान श्रीहरि की कृपा प्राप्त की जा सकती है। माघ मास में नदी स्नान से स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग मिलता है।
मौनी अमावस्या कथा-Mauni Amavasya katha
मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा के अनुसार कांचीपुरी में एक ब्राह्मण रहता था। उसका नाम देवस्वामी तथा उसकी पत्नी का नाम धनवती था। उनके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों को विवाह करके बेटी के लिए वर खोजने अपने सबसे बड़े पुत्र को भेजा।
उसी दौरान किसी पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और बताया, सप्तपदी (सात वचन) होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी। तब उस ब्राह्मण ने पंडित से पूछा- पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा?
पंडित ने कहा- सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा। फिर सोमा का परिचय देते हुए उसने बताया, वह एक धोबिन है। उसका निवास स्थान सिंहल द्वीप है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उसे यहां बुला लो।
तब देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिहंल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया। सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए। उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहता था। उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे। गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे। सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया।
वह अपनी मां से बोले- नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे। तब दया और ममता के वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली - मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है।
इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन कर लीजिए। मैं प्रात:काल आपको सागर पार करा कर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे। वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़ कर लीप देते थे।
एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा, हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है? सबने कहा, हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा? किंतु सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। एक दिन उसने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सबकुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ। भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी।
सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया। मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी।
चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा - मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इंतजार करना और फिर सोमा बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई।
दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुरंत अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई।
उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं की। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे।
Mauni Amavasya
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