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कैसे होता है बच्चे का नामकरण संस्कार, जानिए पौराणिक महत्व और विधि

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नामकरण संस्कार के बारे में स्मृति संग्रह में लिखा है-नामकरण संस्कार से आयु एवं तेज में वृद्धि होती है। नाम की प्रसिद्धि से व्यक्ति का लौकिक व्यवहार में एक अलग अस्तित्व उभरता है।
 
नामकरण संस्कार संपन्न करने के संबंध में अलग-अलग स्थानों पर समय की विभिन्नताएं सामने आई हैं। जन्म के 10वें दिन सूतिका का शुद्धिकरण यज्ञ कराकर नामकरण संस्कार कराया जाता है।
 

गोभिल गह्यसूत्रकार के अनुसार 100 दिन या 1 वर्ष बीत जाते के बाद भी नामकरण संस्कार कराने का प्रचलन है।
 
दो तरह के नाम रखने का विधान है। एक गुप्त नाम जिसे सिर्फ जातक के माता पिता जानते हों तथा दूसरा प्रचलित नाम जो लोक व्यवहार में उपयोग में लाया जाये। नाम गुप्त रखने का कारण जातक को मारक , उच्चाटन आदि तांत्रिक क्रियाओं से बचाना है। प्रचलित नाम पर इन सभी क्रियाओं का असर नहीं होता विफल हो जाती हैं।
 
गुप्त नाम बालक के जन्म के समय ग्रहों की खगोलीय स्थिति के अनुसार नक्षत्र राशि का विवेचन कर के रख जाता है। इसे राशि नाम भी कहा जाता है। बालक की ग्रह दशा भविष्य फल आदि इसी नाम से देखे जाते हैं। विवाह के समय जातक जातिकवों के कुंडली का मिलाप भी राशि नाम के अनुसार होता है। सही और सार्थक नामकरण के लिए बालक के जन्म का समय, जनक स्थान, और जन्म तिथि का सही होना अति आवश्यक है।
 
 
दूसरा नाम लोक प्रचलित नाम - योग्य ब्राह्मण या ऋषि बालक के गुणों के अनुरुप बालक का नामकरण करते हैं। जैसे राम, लक्षमण, भरत और शत्रुघ्न का गुण और स्वभाव देख कर ही महर्षि वशिष्ठ ने उनका नामकरण किया था। लेकिन आजकल यह लोक प्रचलित नाम सामान्यतः माता पिता नाना नानी के रूचि के अनुसार रख जाता है। इस नाम से बालक के व्यवसाय, व्यवसाय में किसी पुरुष से शत्रुता और मित्रता के ज्ञान के लिए किया जाता है।
 
गृह्यसुत्र के परामर्श के अनुसार  दशम्यामुत्थाप्य पिता नामकरनम करोति। इस सूत्र के अनुसार दसवें दिन सूतक निवृति के बाद नामकरण संस्कार कर देना चाहिए। किसी किसी ग्रन्थ में 100 वें दिन या एक वर्ष के अंदर इस संस्कार को करने का विधान  है। गोभिल गृह्यसुत्र के अनुसार "जननादृशरात्रे व्युष्टे शतरात्रे संवत्सरे वा नामधेयकरणम्"
 
अर्थात जन्म के 10 वें दिन में 100 वें दिन में या 1 वर्ष के अंदर जातक का नामकरण संस्कार कर देना चाहिए।
 
नामकरण-संस्कार के संबंध में स्मृति-संग्रह में निम्नलिखित श्लोक उक्त है-
 
आयुर्वेडभिवृद्धिश्च सिद्धिर्व्यवहतेस्तथा ।
नामकर्मफलं त्वेतत् समुद्दिष्टं मनीषिभिः ।।
 
अर्थात नामकरण-संस्कार से तेज़ तथा आयु की वृद्धि होती है। लौकिक व्यवहार में नाम की प्रसिद्धि से व्यक्ति का अस्तित्व बनता है।
 
इसके पश्चात् प्रजापति, तिथि, नक्षत्र तथा उनके देवताओं, अग्नि तथा सोम की आहुतियां दी जाती हैं। तत्पश्चात् पिता, बुआ या दादी शिशु के दाहिने कान की ओर उसके नाम का उच्चारण करते हैं। इस संस्कार में बच्चे को शहद चटाकर और प्यार-दुलार के साथ सूर्यदेव के दर्शन कराए जाते हैं।

इस अवसर पर कामना की जाती है कि बच्चा सूर्य की प्रखरता एवं ते‍जस्विता धारण करे। गुलाब की पंखुरियां उस पर बरसा कर स्वस्ति वाचन किया जाता है। ध्यान रखें बच्चे पर चावल न बरसाएं, छोटा बच्चा बहुत नाजुक होता है चावल से उसे परेशानी हो सकती है साथ ही आंख, कान में चावल जा सकते हैं। गुलाब पंखुरियां भी सावधानी से ही बरसाएं। 


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