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क्या आप जानते हैं कितनी वैज्ञानिक है हमारी नमस्कार की परंपरा

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-डॉ. कुमुद दुबे
 
आजकल नमस्कार करने की परिभाषा बदल रही है, ऐसे में हम बच्चों को संस्कारित कैसे करें। अत: यह बताना आवश्यक है कि नमस्कार कब, क्यों और कैसे करें। एक समय था कि नमस्कार की एक विशेष प्रथा थी जिस कारण प्राय: सभी स्वस्थ रहते थे। जब घरों में कोई अतिथि आते हैं तो कुछ खाना-पीना अवश्य होता है। उन अतिथि के साथ परिवार के सदस्य भी खाते हैं, जो कि विशेष रूप से मेहमान के लिए बनाया जाता है, जबकि दैनिक दिनचर्या में हम सात्विक एवं हल्का भोजन ही खाते हैं। इस विशेष रूप से बनाए जाने वाले भोजन को पचाने के लिए व्यायामयुक्त नमस्कार करने की प्रथा बनाई गई है।
 
नमस्कार करने से हमारा अहंकार नष्ट होता है। विनय गुण नम्रता विकसित होती है एवं मन शुद्ध होता है।
 
अत: प्रथम नमस्कार अपनी ओर से ही करना चाहिए। बड़ों को प्रणाम अथवा चरण स्पर्श करने से आयु, सम्मान, तेज और शुभ कार्यों में वृद्धि होती है।
 
संत-महात्माओं के दर्शन मात्र और चरण स्पर्श से तीन जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। हमारा कल्याण होता है। संत-महात्माओं ने जिस तप को बड़ी मेहनत करके एवं त्याग-तपस्या से प्राप्त किया है, उस तप को वे खुले दिल से देने के लिए तैयार बैठे हैं। कोई लेता है तो खुश होते हैं। ठीक उसी प्रकार से जैसे दुकानदार का जितना भी माल बिकता है वह उतना ही खुश होता है। संत-महात्मा जग का कल्याण होने से प्रसन्न होते हैं।
 
विदेशों में हाथ मिलाते हैं जिससे संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका बढ़ जाती है। नमस्कार से सेहत की दृष्टि से हम सुरक्षित रहते हैं। नमस्कार से पांचों अंगुलियां आपस में जुड़ती हैं इससे भी शरीर में नाड़ी दोष दूर होता हैं। सरल शब्दों में नमस्कार से शरीर के सुर, ताल और लय सुधर जाते  हैं। 

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