जब पंचक का प्रारंभ रविवार के दिन होता है तो ऐसे पंचक को रोग पंचक कहते हैं। रोग पंचक के कारण आने वाले 5 दिन विशेष रूप से कष्ट और मानसिक परेशानियां तथा बीमारी को बढ़ावा देने वाले होते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्र ग्रह का धनिष्ठा नक्षत्र के तृतीय चरण और शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती नक्षत्र के चारों चरणों में भ्रमण काल पंचक काल कहलाता है। इस तरह चंद्र ग्रह का कुंभ और मीन राशि में भ्रमण पंचकों को जन्म देता है।
पंचक का समय- इस बार रविवार, 25 अक्टूबर दोपहर 3.24 मिनट से पंचक काल शुरू हो गया है तथा यह पंचक 30 अक्टूबर दोपहर 2.56 मिनट तक जारी रहेगा।
शास्त्रों में निम्नलिखित पांच कार्य ऐसे बताए गए है जिन्हें करने से नुकसान हो सकता है। जानिए पंचक की खास बातें...
1. इस दिन यदि लकड़ी खरीदना अनिवार्य हो तो पंचक काल समाप्त होने पर गायत्री माता के नाम का हवन कराएं अन्यथा नुकसान होगा।
2. यदि मकान पर छत डलवाना अनिवार्य हो तो मजदूरों को मिठाई खिलने के पश्चात ही छत डलवाने का कार्य करें अन्यथा नुकसान होगा।
3. यदि पंचक काल में शव दाह करना अनिवार्य हो तो शव दाह करते समय पांच अलग पुतले बनाकर उन्हें भी आवश्य जलाएं अन्यथा मान्यता अनुसार परिवार या कुटुंब में पांच और व्यक्तियों पर मृत्यु का खतरा मंडराता है।
4. यदि पंचक काल में दक्षिण दिशा की यात्रा करना अनिवार्य हो तो हनुमान मंदिर में फल चढ़ाकर यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं। ऐसा करने से पंचक दोष दूर हो जाता है।
5. यदि पंचक काल में पलंग या चारपाई लाना जरूरी हो तो पंचक काल की समाप्ति के पश्चात ही इस पलंग या चारपाई का प्रयोग करें अन्यथा नुकसान होगा। इन दिनों में अन्य कुछ कार्य विशेष नहीं किए जाते हैं, जैसे लंबी दूरी की यात्रा, व्यापार, लेन-देन, नया कार्य आदि। इस पंचक में शुभ कार्यों को त्यागना चाहिए क्योंकि यह समय हर तरह के शुभ कार्यों के लिए अशुभ माना गया हैं।