* शास्त्रों में वर्णित हैं पुरोहित के लिए मर्यादाएं व नियम, जानिए
कर्मकांड हमारी सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है। बिना पूजा-पाठ व कर्मकांड के कोई भी हिन्दू उत्सव पूर्ण नहीं होता है। बिना श्रेष्ठ व योग्य पुरोहित के कोई भी कर्मकांड संपन्न होना असंभव है। यदि किसी कर्मकांड को संपन्न करवाने वाला आचार्य व पुरोहित शास्त्रीय रीति अनुसार योग्य व श्रेष्ठ हो तो कर्मकांड की सफलता सुनिश्चित होती है।
शास्त्रानुसार केवल ब्राह्मण ही कर्मकांड को करवाने का अधिकारी माना गया है। किंतु केवल ब्राह्मण वर्ण में उत्पन्न होने से मात्र से वह कर्मकांड करवाने का अधिकारी हो, ऐसा भी नहीं है। कर्मकांड करवाने वाले आचार्य व पुरोहित के लिए शास्त्र ने कुछ मर्यादाएं व नियम सुनिश्चित किए हैं। उन नियमों के अनुपालन करने वाले विप्र ही कर्मकांड करवाने के अधिकारी हैं। यदि किन्हीं कारणवश कर्मकांड करवाने हेतु ऐसे विप्र उपलब्ध न हों, तब केवल ब्राह्मण वर्ण में जन्मे विप्रों से कर्मकांड संपन्न करवाए जा सकते हैं।
आइए, जानते हैं कि कर्मकांड करवाने वाले आचार्य व पुरोहित कैसे होने चाहिए? शास्त्रानुसार तिलक, शिखा, जनेऊधारी, त्रिकाल संध्या करने वाले, गायत्री का जप करने वाले एवं जिनका मंत्रोच्चारण शुद्ध हो, ऐसे विप्र ही पौरोहित्य कर्म के लिए उत्तम माने गए हैं। किंतु यह पुरोहित की सामान्य योग्यता है, इसके अतिरिक्त शास्त्र में श्रेष्ठ पुरोहित की योग्यता का वर्णन करते हुए कहा गया है-
'काम क्रोध विहीनश्च पाखण्ड स्पर्श वर्जित:।
जितेन्द्रिय: सत्यवादी च सर्व कर्म प्रशस्यते।।'
अर्थात कर्मकांड करवाने वाले पुरोहित को काम-क्रोध आदि विकारों से निर्लिप्त होना चाहिए। उसे पाखंड एवं छल-कपट से रहित होना चाहिए। कर्मकांड करवाने वाले पुरोहित का अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण होना भी आवश्यक है। कर्मकांड करवाने वाले आचार्य व पुरोहित को सत्यवादी अर्थात सत्य बोलने वाला होना चाहिए। शास्त्रानुसार उपर्युक्त गुणों से युक्त विप्र ही कर्मकांड करवाने के लिए उत्तम व श्रेष्ठ माना गया है।
-ज्योतिर्विद् पं हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केंद्र