कुछ ग्रह हर माह परिवर्तित होते हैं और कुछ ग्रहों को परिवर्तित होने के लिए एक माह से भी ज्यादा का समय लगता है। आओ संक्षिप्त में जानते हैं कि कौनसा ग्रह कब परिवर्तित होकर शुभ और अशुभ प्रभाव देता है।
1. सूर्य : यह ग्रह एक राशि में एक माह रहने के बाद दूसरी राशि में गमन करता है। यह जिस भी राशि में होता है उस आधार पर ही किसी जातक की सूर्य राशि निर्धारित होती है। यह जब शनि की राशियों जैसे मकर, कुंभ में होता है तो पीड़ित होता है। सिंह राशि का स्वामी सूर्य हमारी जन्मकुंडली में गोचर लग्न राशि से तीसरे, छठे, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ फल देता है जबकि शेष भावों में सूर्य का फल अशुभ देता है।
2. चंद्रमा : यह ग्रह प्रत्येक ढाई दिन में एक राशि से निकलकर दूसरी राशि में जाता है। यह जिस भी राशि में होता है उस आधार पर ही किसी जातक की चंद्र राशि निर्धारित होती है। यह ग्रह भी जब शनि की राशियों में होता है तब बुरा प्रभाव देता है। कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा का गोचर जन्मकुंडली में लग्न राशि से पहले, तीसरे, सातवें, दसवें, और ग्यारहवें भाव में शुभ फल जबकि चौथे, आठवें और बारहवें भाव में चंद्रमा के गोचर का प्रभाव अशुभ होता है।
3. मंगल : मंगल लगभग डेढ़ माह एक राशि में रहकर दूसरी राशि में गमन करता है। कभी वक्री होकर यह तीन माह तक रहता है। मेष और वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल का गोचर जातक की लग्न राशि से तीसरे, छठे और ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में इसके अशुभ फल होते हैं।
4. बुध : बुध ग्रह एक राशि में लगभग 14 दिन रहता है। वक्री होकर यह 27 दिन तक रहता है। मिथुन और कन्या राशि का स्वामी बुध का गोचर जन्म कुंडली स्थित लग्न राशि से दूसरे, चौथे, छठे, आठवें, दसवें और ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
5. बृहस्पति : बृहस्पति अर्थात गुरु ग्रह एक राशि में एक वर्ष तक रहता है। धनु और मीन राशि का स्वामी बृहस्पति का गोचर लग्न राशि से दूसरे, पांचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल होते हैं।
6. शुक्र : शुक्र ग्रह लगभग 23 दिन तक एक राशि में रहता है। शुक्र वक्री होकर डेढ़ से 2 माह तक रहता है। वृषभ और तुला राशि का स्वामी शुक्र ग्रह का गोचर लग्न राशि से पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, आठवें, नौवें, ग्यारहवें और बारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
7. शनि : शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के लिए 30 माह यानी ढाई वर्ष का समय लगता है। मकर और कुंभ राशि का स्वामी शनि का गोचर जन्मकालीन राशि से तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
8. राहु : राहु छाया ग्रह है जो एक राशि में डेढ़ वर्ष तक रहता है। राहु का गोचर जन्मकालीन राशि से तीसरे, छठे, ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल होते हैं।
9. केतु : केतु भी छाया ग्रह है जो एक राशि में डेढ़ वर्ष तक रहता है। केतु का गोचर जन्माकलीन लग्न राशि से पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें और ग्यारहवें भाव में शुभ और शेष भावों में अशुभ फल देता है।
नौ ग्रहों में सूर्य व चंद्र ही ऐसे दो ग्रह हैं जो कभी वक्री (विपरीत गति) नहीं होते, जबकि राहु व केतु सदैव वक्री गति से ही चलते हैं। मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि ग्रह कई बार सीधी गति से चलते हुए वक्री होकर पुनः सीधी गति पर लौटते हैं।