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भारतीय संस्कृति देती है शुद्ध पर्यावरण का शुभ संदेश, पढ़ें दिलचस्प जानकारी

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पं. देवेन्द्रसिंह कुशवाह

* पर्यावरण का संदेश देते हैं भारतीय ज्योतिष और अध्यात्म
 
विश्व की प्राचीनतम् संस्कृति भारतीय सनातन हिन्दू संस्कृति में पर्यावरण को देवतुल्य स्थान दिया गया है। यही कारण है कि पर्यावरण के सभी अंगों को जैसे जल, वायु, भूमि को देवताओं से जोड़ा गया है, देवता ही माना गया है। हिन्दू दर्शन में मूल इकाई जीव में मनुष्य में पंच तत्वों का समावेश माना गया है। मनुष्य पांच तत्वों जल, अग्नि, आकाश, पृथ्वी और वायु से मिलकर बना है।
 
वैदिक काल से इन तत्वों के देवता मान कर इनकी रक्षा का करने का निर्देश मिलता है, इसलिए वेदों के छठे अंग ज्योतिष की बात करें तो ज्योतिष के मूल आधार नक्षत्र, राशि और ग्रहों को भी पर्यावरण के इन अंगों जल-भूमि-वायु आदि से जोड़ा गया है और अपने आधिदैविक और आधिभौतिक कष्टों के निवारण के लिए इनकी पूजा पद्धति को बताया गया है। 
 
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं गीता में कहा है–
अश्वत्थ: सर्व वृक्षा वृक्षाणां अर्थात् वृक्षों में पीपल मैं हूं...
 
मां जगदम्बा ने स्वयं कहा है-
अहं ब्रह्म-स्वरूपिणी
मत्तः प्रकृति पुरुषात्मकं जगत 
शून्यं चाशून्यं च
अर्थात्- प्रकृति पुरुषमय विश्व मुझी में,
मैं हूं शून्य-अशून्य
मैं हूं ब्रह्म-स्वरूपिणी
सर्वमयी मुझको जो जाने,
वही मनुज है धन्य... 
 
पीपल-बरगद-तुलसी, गंगा-जमुना.. जैसी पुण्यसलिला के बारे में जो जन मान्यता और स्वीकार्यता से आप परिचित है..। जानिए नक्षत्रों और ग्रहों को जिन्हें प्रकृति से जोड़ा गया है। 
 
नक्षत्र वृक्षों की तालिका जानिए -
 
नक्षत्र और वृक्ष
 
* अश्विनी- कुचिला
* भरणी- आमला
* कृत्तिका- गूलर
* रोहिणी- जामुन
* मृगशिरा- खैर
* आर्द्रा-शीशम
* पुनर्वसु- बांस
* पुष्य- पीपल
* आश्लेषा- नागकेशर
* मघा- बरगद
* पूर्व फाल्गुनी- पलाश
* उत्तर फाल्गुनी- पाठड़
* हस्त- अरीठा
* चित्रा- बेलपत्र
* स्वाती- अर्जुन
* विशाखा- कटाई
* अनुराधा- मौल श्री
* ज्येष्ठा- चीड़
* मूल- साल
* पूर्वाषाढ़ा- जलवन्त
* उत्तराषाढ़ा- कटहल
* श्रवण- मंदार
* घनिष्ठा- शमी
* शतभिषा-कदम्ब
* पूर्वभाद्रपद- आम
* उत्तरभाद्रपद- नीम
* रेवती- महुआ। 
 
इसी प्रकार ग्रहों से संबंधित वृक्ष इस प्रकार है...

* ग्रह और वृक्ष के नाम 
 
* सूर्य- मंदार
* चंद्र- पलाश
* मंगल- खैर
* बुध- लटजीरा, आंधीझाड़ा 
* गुरु- पारस पीपल
* शुक्र- गूलर
* शनि- शमी
* राहु-केतु- दूब, चन्दन। 
 
भारतीय पौराणिक ग्रंथों, ज्योतिष ग्रंथों व आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार ग्रहों व नक्षत्रों से संबंधित पौधों का रोपण व पूजन करने से मानव का कल्याण होता है। आम लोगों को इन वृक्षों के वैज्ञानिक, आध्यात्मिक, ज्योतिषीय व आयुर्वेदिक महत्व के बारे में होना चाहिए, जिससे प्रकृति पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिले।

नक्षत्र वाटिका में लगाए गए अन्य पेड़-पौधे मौलश्री, कटहल, आम, नीम, चिचिड़ा, खैर, गूलर, बेल आदि पौधे विभिन्न प्रकार सकारात्मक ऊर्जा के साथ ही साथ अतिसार, रक्त विकार, पीलिया, त्वचा रोग आदि रोगों में लाभकारी औषधि के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। 
 
अध्यात्म और ज्योतिष से जुड़े विद्वान पर्यावरण के क्षेत्र में ज्योतिष तंत्र धार्मिक अनुष्ठान के माध्यम से कार्य करता है कि वह अपने पास आए हुए जातक की कुंडली का भली-भांति अध्ययन कर जो ग्रह या नक्षत्र निर्बल स्थिति में हैं उनसे संबंधित वृक्षों की सेवा करने उनकी जड़ों को धारण करने की सलाह देता है क्योंकि इनमें से कुछ वृक्ष ऐसे भी हैं जिन्हें घर में लगाना संभव नहीं होता है, तो ऐसे परिस्थिति में किसी मंदिर में इनका रोपण करें या जहां भी ये वृक्ष हो उनकी सेवा करें और और प्रकृति का आशीर्वाद ग्रहण करें...। यह एक उत्तम कार्य होगा आने वाली पीढ़ी और संस्कृति संरक्षण के लिए...। 

 

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