नवीनता, उत्साह और आनंद का प्रतीक है नया वर्ष। इसे नव संवत्सर, नव वर्ष, न्यू ईयर, नवरोज आदि के नाम से भी जाना जाता है। काल-गणना में कल्प, मनवंतर, युग आदि के पश्चात संवत्सर का नाम आता है। संवत शब्द संवत्सर का अपभ्रंश है।
भारत का सबसे प्राचीन संवत है कल्पाब्ध, इसके बाद सृष्टि संवत और प्राचीन सप्तर्षि संवत का उल्लेख मिलता है। युग भेद से सतयुग में ब्रह्म-संवत, त्रेता में वामन-संवत एवं परशुराम-संवत तथा श्रीराम-संवत, द्वापर में युधिष्ठिर संवत और कलि काल में कलि संवत एवं विक्रम संवत प्रचलित हुए।
आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ कैलेंडर और नव वर्ष के बारे में :-
विक्रम संवत : हिन्दू पंचांग पर आधारित विक्रम संवत या संवत्सर उज्जयिनी के सम्राट विक्रमादित्य ने प्रारंभ किया था। ब्रह्म पुराण के अनुसार भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन से सृष्टि की रचना प्रारंभ की थी। इसे युगादि या उगाड़ी नाम से भी भारत के अनेक क्षेत्रों में मनाया जाता है।
विक्रम संवत की शुरुआत 58 ईस्वी पूर्व हुई थी। यह संवत हिंदू माह चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी गुड़ी पड़वा से शुरू होता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ था। बारह राशियां बारह सौर मास हैं। बारह माह बारह चंद्र मास है। चंद्र की 15 कलाएं तिथियां हैं। यह कैलेंडर हिन्दू पंचाग और उसकी सभी धार्मिक गतिविधियों में उचित बैठता है इसीलिए इसे हिन्दू कैलेंडर के रूप में मान्यता मिली हुई है।
शक संवत : ऐसा माना जाता है कि इसे शक सम्राट कनिष्क ने 78 ई. में शुरू किया था। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने इसी शक संवत में मामूली फेरबदल करते हुए इसे राष्ट्रीय संवत के रूप में घोषित कर दिया। राष्ट्रीय संवत का नव वर्ष 22 मार्च से शुरू होता है जबकि लीप ईयर में यह 21 मार्च होता है। यह संवत सूर्य के मेष राशि में प्रवेश से शुरू होता है।
बौद्ध संवत : बौद्ध धर्म के कुछ अनुयाई बुद्ध पूर्णिमा के दिन 17 अप्रैल को नया साल मनाते हैं। कुछ 21 मई को नया वर्ष मानते हैं। थाईलैंड, बर्मा, श्रीलंका, कंबोडिया और लाओ के लोग 7 अप्रैल को बौद्ध नव वर्ष मनाते हैं।
ईसाई नव वर्ष : 1 जनवरी को मनाया जाने वाला नव वर्ष दरअसल ग्रेगोरियन कैलेंडर पर आधारित है। इसकी शुरुआत रोमन कैलेंडर से हुई, जबकि पारंपरिक रोमन कैलेंडर का नव वर्ष एक मार्च से शुरू होता है। दुनिया भर में आज जो कैलेंडर प्रचलित है उसे पोप ग्रेगोरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगोरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान किया था।
ईसाइयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडाक्स चर्च तथा इसके अनुयायी ग्रेगोरियन कैलेंडर को मान्यता न देकर पारंपरिक रोमन कैलेंडर को ही मानते हैं। ग्रेगोरी कालदर्शक की मूल इकाई दिन होता है। 365 दिनों का एक वर्ष होता है, किन्तु हर चौथा वर्ष 366 दिन का होता है, जिसे अधिवर्ष या लीप ईयर कहते हैं। भारत में ईस्वी संवत का प्रचलन अंग्रेजी शासकों ने 1752 में किया था।
इस्लामिक कैलेंडर : इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी साल के नाम से जाना जाता है। हिजरी सन की शुरुआत मोहर्रम माह के पहले दिन से होती है। इसकी शुरुआत 622 ईस्वी में हुई थी। हजरत मोहम्मद ने जब मक्का से निकलकर मदीना में बस गए तो इसे हिजरत कहा गया। इसी से हिज्र बना और जिस दिन वो मक्का से मदीना आए उस दिन हिजरी कैलेंडर शुरू हुआ। हिजरी कैलेंडर के बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह है कि इसमें चंद्रमा की घटती-बढ़ती चाल के अनुसार दिनों का संयोजन नहीं किया गया है। लिहाजा इसके महीने हर साल करीब 10 दिन पीछे खिसकते रहते हैं।
जैन संवत : जैन नव वर्ष दीपावली से अगले दिन प्रारंभ होता है। भगवान महावीर स्वामी की मोक्ष प्राप्ति के अगले दिन यह शुरू होता है। इसे वीर निर्वाण संवत कहते हैं। लगभग 527 ईसा पूर्व महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था।
सिख नव वर्ष : पंजाब में नया साल वैशाखी पर्व के रूप में मनाया जाता है जो कि अप्रैल में आती है। सिख नानकशाही कैलेंडर के अनुसार होला मोहल्ला (होली के दूसरे दिन) से नए साल की शुरुआत होती है।
पारसी नव वर्ष : पारसी धर्म में नव वर्ष यानी नवरोज मनाने की शुरुआत करीब 3000 साल पहले हुई थी। आमतौर पर 19 अगस्त को पारसी धर्मावलंबी नवरोज का उत्सव मनाते हैं। नवरोज का अर्थ ही दरअसल नया दिन होता है। इस दिन पारसी मंदिर अज्ञारी में विशेष प्रार्थनाएं होती हैं।
चीनी कैलेंडर : चीन का कैलेंडर चंद्र गणना पर आधारित है। इसका नया साल 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच पड़ता है। चीनी वर्ष के नाम 12 जानवरों के नाम पर रखे गए हैं। चीनी ज्योतिष में लोगों की राशियां 12 जानवरों के नाम पर होती हैं। यदि किसी की बंदर राशि है और नया वर्ष भी बंदर आ रहा हो तो वह साल उस व्यक्ति के लिए विशेष तौर पर भाग्यशाली माना जाता है।
अन्य कैलेंडर : यहूदी नव वर्ष ग्रेगरी के कैलेंडर के मुताबिक 5 सितंबर से 5 अक्टूबर के बीच आता है। हिब्रू मान्यताओं के अनुसार ईश्वर द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे।
इनके अलावा भारत में ही कई संवत अथवा नव वर्ष प्रचलित हैं। इनमें प्रमुख रूप से फसली संवत, युधिष्ठिर संवत, बांग्ला संवत बौद्ध संवत, सिंधी संवत, तमिल संवत, कश्मीरी संवत, मलयालम संवत, तेलुगू संवत आदि कई संवत प्रचलित हैं।
इसी तरह हर देश का अपना एक अलग नव वर्ष है, लेकिन लगभग सभी का नव वर्ष या तो सूर्य के उत्तरायण होने पर शुरू होता है या दक्षिणायन होने पर।