प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। जब रविवार के दिन यह व्रत आता है, तो इसे रवि प्रदोष व्रत कहा जाता है। वर्ष 2022 में 26 जून को रवि प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2022 Date) पड़ रहा है। शिव के परम भक्तों के लिए यह दिन बेहद ही खास माना गया है।
इस व्रत में पूजन सूर्यास्त के समय करने का महत्व है। इस दिन प्रदोष व्रतार्थी को नमकरहित भोजन करना चाहिए। अत: जो लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर हमेशा परेशान रहते हैं, किसी न किसी बीमारी से ग्रसित होते रहते हैं, उन्हें रवि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए, क्योंकि यह व्रत करने वाले की स्वास्थ्य से संबंधित परेशानियां दूर होती हैं...। यहां जानिए कथा, पूजा विधि, मंत्र और उपाय-
पूजा विधि-puja vidhi
- प्रात: नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- व्रतधारी को रवि प्रदोष व्रत के दिन एक जल से भरा हुआ कलश, बेलपत्र, धतूरा, भांग, कपूर, सफेद पुष्प व माला, आंकड़े का फूल, सफेद मिठाई, सफेद चंदन, धूप, दीप, घी, सफेद वस्त्र, आम की लकड़ी, हवन सामग्री तथा आरती के लिए थाली आदि सामग्री एकत्रित कर लें।
- अब शिव जी का पूजन विधिपूर्वक पूजन करें।
- दिनभर मन ही मन शिव का प्रिय मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' का जाप करना चाहिए।
- इसके बाद नंदीश्वर (बछड़े) को जल एवं दूर्वा खिलाकर स्पर्श करें।
- इस दिन निराहार रहें।
- तत्पश्चात सूर्यास्त के पश्चात पुन: स्नान करके भगवान शिव का षोडषोपचार से पूजन करना चाहिए।
- रवि प्रदोष व्रत पूजा का समय शाम 4.30 से शाम 7.00 बजे के बीच पूजा की जानी चाहिए।
- नैवेद्य में जौ का सत्तू, घी एवं शकर का भोग लगाएं।
- तत्पश्चात आठों दिशाओं में 8 दीपक रखकर प्रत्येक की स्थापना कर उन्हें 8 बार नमस्कार करें।
- शिव-पार्वती एवं नंदकेश्वर की प्रार्थना करें।
मंत्र- Pradosh Vrat Mantra
- 'ॐ नम: शिवाय'
- 'शिवाय नम:'
- ॐ त्रिनेत्राय नम:
- ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ॐ
- 'ॐ ऐं नम: शिवाय।
- 'ॐ ह्रीं नम: शिवाय।'
- 'ऐं ह्रीं श्रीं 'ॐ नम: शिवाय' : श्रीं ह्रीं ऐं
- शिव गायत्री मंत्र- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
उपरोक्त मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें।
इन तरीकों से प्रसन्न होंगे शिवशंकर-
1. इस दिन शिवलिंग को गाय के कच्चे दूध से स्नान कराने पर विद्या प्राप्त होती है।
2. शिवलिंग पर बेलपत्र, अक्षत, दूध, पुष्प और मौसमी फल चढ़ाना चाहिए।
3. सायंकाल के समय शिव मंदिर में दीपक जलाने से अपार धन-संपत्ति एवं ऐश्वर्य प्राप्त होता हैं।
4. शिव जी को गन्ने के रस से स्नान कराने पर लक्ष्मी प्राप्त होती है।
5. जूही के पुष्प से शिव जी का पूजन करने से घर में अन्न-धान्य भरा रहता है, दरिद्रता नहीं आती है।
6. प्रदोष काल में स्फटिक के शिवलिंग पर गंगा जल, दूध, दही, घी, शहद और शकर से स्नान कराने एवं धूप-दीप जलाकर मंत्र जाप करने से समस्त बाधाओं का शमन होता है।
7. शिव जी शुद्ध जल से स्नान कराने पर सभी इच्छाएं पूरी होती है।
रवि प्रदोष व्रत कथा-Ravi Pradosh Katha
रवि प्रदोष व्रतकथा के अनुसार एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो।
बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहां है? तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है?
बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं। यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया।
ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई। अगले दिन प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र की कुशलता की प्रार्थना करने लगी। भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा।
प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया। बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके माता-पिता को राजदरबार में बुलाया। उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण को पांच गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें।
भगवान शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा। अत: जो मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है तथा उसके जीवन में खुशहाली आती है।