इस बार 25 मई को ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को शनि जयंती पर मंगलादित्य सहित कई योगों का संयोग बन रहा है, जो शनि की साढ़े साती व ढैय्या वाले जातकों के लिए विशेष लाभकारी रहेगा। शनि जयंती पर ग्रह गोचर के अनुसार मंगलादित्य सहित बृहस्पति का नवम पंचम, शनि का खड़ा अष्टक व गुरु-शुक्र के समसप्तक योग बन रहे हैं, जो सभी के लिए लाभदायक रहेगा।
शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या पीड़ित जातक शनि की कृपा के लिए शनि स्त्रोत का पाठ, महाकाल शनि मृत्यंजय स्त्रोत का जाप करें। इससे कार्य में अनुकूलता व दान से लाभ की प्राप्ति होगी।
इस बार वट सावित्री व्रत यानि वर अमावस्या और शनि जयंती एक साथ आने से विशेष संयोग बन रहे हैं, तो दूसरी तरफ इस दिन से नवतपा की शुरूआत हो रही है। इन तीनों योगों के एक साथ बनने से विशेष संयोग 16 साल बाद देखने को मिलेगा। 25 मई को यह संयोग है। इससे पहले 2001 में ऐसा संयोग बना था।
महिलाओं के लिए विशेष
महिलाओं के साथ ही शनि भक्तों के लिए ये दिन बहुत खास है। जहां महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट सावित्री व्रत वट वृक्ष की पूजा और 108 परिक्रमा करेंगी। वही शनि भक्त इस दिन शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना करेंगी।
इस संयोग से काल नामक मेघ के कारण बारिश में वर्षाजनित रोग उत्पन्न होंगे। देश के कुछ क्षेत्रों में अल्पवृष्टि की स्थिति बनेगी। वर्षा ऋतु में हेममाली नाम नाग योग देश के कुछ हिस्सों में अतिवृष्टि की स्थिति निर्मित करेगा। इससे जनधन की हानि होने की संभावना रहेगी। ज्येष्ठ मास में जब शनि, मंगल का सम सप्तक योग बनता है तो अग्नि तत्व प्रबल होते हैं। इससे भीषण गर्मी के साथ आगजनी की घटनाएं हो सकती हैं।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस तरह का संयोग बहुत कम होता है, जब ये तीनों पर्व एक ही दिन आए हैं। भगवान शनिदेव का जन्म अर्थात शनि जयंती वैशाख अमावस्या को दिन में बारह बजे माना गया। इसलिए वैशाख अमावस्या का दिन शनेश्वर जयंती के रूप में मनाया जाता है। शनि मकर और कुंभ राशि के स्वामी, तथा इनकी महादशा 19 साल की होती है। शनि के अधिदेवता प्रजापिता ब्रह्रा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। ये एक-एक राशि में तीस-तीस महीने रहते हैं। शनि जयंती के अवसर पर शनिदेव के निमित विधि-विधान से पूजा तथा व्रत किया जाता है। शनि संबंधित दान एवं पूजा पाठ सभी कष्ट दूर करने में सहायक होते हैं।